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Thursday, 14 November, 2024
होमडिफेंसचीन समर्थित थाई कनाल में भारत को नज़र आ रही है ऋण कूटनीति, बढ़ा चढ़ा कर गिनाए जा रहे हैं इसके फायदे

चीन समर्थित थाई कनाल में भारत को नज़र आ रही है ऋण कूटनीति, बढ़ा चढ़ा कर गिनाए जा रहे हैं इसके फायदे

क्रा कनाल परियोजना में एक ऐसी कनाल की परिकल्पना है, जो थाईलैण्ड से होते हुए, थाईलैण्ड खाड़ी को अंडमान सागर से जोड़ेगी. इससे व्यस्त मलक्का स्ट्रेट के लिए, एक वैकल्पिक रास्ता मिल जाएगा.

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नई दिल्ली: भारत सरकार के प्रारंभिक आंतरिक मूल्यांकन में कहा गया है, कि थाईलैण्ड के साथ क्रा कनाल बनाने का चीन का प्रयास, जिससे व्यस्त मलक्का जलडमरूमध्य के लिए, एक वैकल्पिक रास्ता मिल जाएगा, बीजिंग की ‘ऋण कूटनीति’ का हिस्सा है, और ये एक ‘सफेद हाथी परियोजना’ में तब्दील हो सकती है.

क्रा कनाल परियोजना में एक ऐसी कनाल की परिकल्पना है, जो थाईलैण्ड से होते हुए, थाईलैण्ड खाड़ी को अंडमान सागर से जोड़ेगी.

दूसरी कई परियोजनाओं की तरह, क्रा कनाल प्रोजेक्ट भी चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव का हिस्सा है और शेख़ी बघारी जा रही है, कि ये चीन की 21 वीं सदी की मेरीटाइम सिल्क रोड का, नया द्वार होगा.

ये विश्वास बढ़ता जा रहा है कि ये कनाल, भारत-चीन गतिरोध में नया मोर्चा बन सकती है.

लेकिन नई दिल्ली का मानना है कि ये कनाल एक और ‘सफेद हाथी परियोजना’ में तब्दील हो सकती है, एक ऐसे मुहावरे की ओर इशारा, जिसका मतलब किसी ऐसी चीज़ से है, जिसकी लागत उनकी उपयोगिता से कहीं ज़्यादा होती है.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान द्वारा इस परियोजना के आंतरिक मूल्यांकन में कहा गया है, ‘साफ ज़ाहिर है कि चीन ऋण कूटनीति की चाल चल रहा है, और ये एक ‘सफेद हाथी परियोजना’ साबित हो सकती है. हंबनटोटा और ग्वादर की बंदरगाहें, जिन्हें श्रीलंका और पाकिस्तान ने चीन को दे दिया है, क्रा कनाल के पीछे के असली उद्देश्य को दर्शाती हैं- ऋण के बदले में क्रा इस्थमुस पर अपना प्रभुत्व जमाना- एक ऐसा परिदृश्य जो एक राष्ट्र के तौर पर थाईलैण्ड की व्यवहारिकता पर ही चोट पहुंचा सकता है’.

परियोजना का थाईलैण्ड पर विपरीत असर होगा: मूल्यांकन

मूल्यांकन में कहा गया है, कि चीन ने क्रा कनाल को एक ड्रीम प्रोजेक्ट के तौर पर पेश किया है, जिससे इस क्षेत्र में समुद्री परिवहन में सुधार होगा, जैसे कि सुएज़ और पनामा कनाल्स से हुआ था.

उसमें आगे कहा गया है कि अपनी दूसरी परियोजनाओं की तरह, बीजिंग बड़ी शान के साथ इसे थाईलैण्ड के लिए, एक शानदार अवसर बता रहा है, जिसमें समुद्री व्यापारियों को वित्तीय फायदे पहुंचाकर, और टोल फीस व पोर्ट के इस्तेमाल का ख़र्च लेकर, थाईलैण्ड अपनी आर्थिक क्षमता को बढ़ा सकता है. चीन ये भी दावा करता है, कि इस प्रोजेक्ट से क्रा इस्थमुस क्षेत्र का विकास होगा, और स्थानीय निवासियों के लिए, रोज़गार के बड़े अवसर पैदा होंगे.


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भारत सरकार के आंतरिक मूल्यांकन में कहा गया है, ‘ये दावा भी किया जा रहा है, कि इस कनाल से पूर्वी एशियाई देशों, और आईओआर (इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन) के तटीय इलाक़ों को बहुत फायद पहुंचेगा, चूंकि कनाल से समुद्री परिवहन की लागत कम हो जाएगी’. उसमें ये भी कहा गया है, ‘बताया जा रहा है कि हिंद महासागर तक पहुंचने के लिए, ये बचत फासले में क़रीब 1,200 किलोमीटर, और समय में 72 घंटे की होगी’.

परियोजना का भू-सामरिक महत्व बताते हुए, मूल्यांकन में कहा गया है कि थाईलैण्ड, जो दक्षिणपूर्व एशिया में है, के पूर्व में दक्षिण चीन सागर (एससीएस), और पश्चिम में अंडमान सागर हैं.

मूल्यांकन में कहा गया है, ‘इस इलाक़े में तीन प्रमुख जलडमरूमध्य हैं: मलाक्का, सुंडा और लोम्बोक. अधिकतर समुद्री व्यापार मलाक्का स्ट्रेट से होकर गुज़रता है, जो दुनिया में सबसे व्यस्त है’. आगे ये भी कहा गया है, ‘अगर प्रस्तावित क्रा कनाल बन गई, तो ये क्रा इस्थमुस को दो हिस्सों में बांट देगी, और मलाक्का स्ट्रेट से बचते हुए, एससीएस और अंडमान सागर को सीधे जोड़ देगी’.

मूल्यांकन में कहा गया है कि क्रा कनाल के प्रस्तावक, जिन फायदों के दावे कर रहे हैं, हो सकता है वो पूरी तरह सही न हों, और ‘ज़ाहिरी तौर पर बढ़ा-चढ़ाकर’ बताए जा रहे हों.

इसमें कहा गया है कि ये परियोजना, थाईलैण्ड के सामने बड़ी पर्यावरण समस्याएं खड़ी कर सकती है, और समुद्री पर्यावरण व पर्यटन स्थलों पर भी बुरा असर डाल सकती है (थाईलैण्ड की 20 प्रतिशत से अधिक जीडीपी पर्यटन पर आधारित है).

मूल्यांकन में ये भी कहा गया, कि भू-राजनीतिक रूप से ये परियोजना, पहले से ही नाज़ुक दक्षिणपूर्व एशिया में, एक और विवाद की जड़ बन सकती है, चूंकि इससे सिंगापुर और मलेशिया की अर्थव्यवस्थाओं पर विपरीत असर पड़ सकता है.

‘बढ़ा-चढ़ाकर बताए फायदे’

मूल्यांकन में कहा गया है कि क्रा कनाल के बारे में, सबसे बढ़ाकर किया हुआ दावा है, इसकी वित्तीय व्यावहारिकता और समुद्री व्यापार में अपेक्षित, फासले और समय की बचत.

‘पहले तो ये कि समुद्री ट्रैफिक को मलाक्का स्ट्रेट की बजाय, क्रा कनाल से निकालने में जो फासले की बचत होगी, वो 500 किलोमीटर से कम है. इससे भी ख़राब ये है कि अगर इस फासले को, व्यापारी जहाजों के पारगमन समय में बदला जाए, तो उसमें जो समय बचेगा, वो 10 घंटे से कम है.

इसमें कहा गया है, ‘ऐसा इसलिए है कि कहीं अधिक चौड़े मलाक्का स्ट्रेट से गुज़रते हुए, व्यापारी जहाज़ लगातार 25 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक गति से पास होते हैं. लेकिन क्रा कनाल को क्रा इस्थमुस को खोदते हुए बनाया जाएगा, और वो पानी का एक बहुत तंग रास्ता होगा, जिससे जहाज़ों को क़रीब 10-12 किलोमीटर प्रति घंटा की, ‘कनाल गति’ से गुज़रना होगा.

मूल्यांकन में ये भी कहा गया है, कि पायलट्स के जहाज़ पर चढ़ने और उतरने में भी देरी हो सकती है. पायलट्स एक्सपर्ट जहाज़ी होते हैं, जो जहाज़ों को कनाल से गुज़ारने में गाइड करते हैं, और उस समय भी, जब जहाज़ कनाल में घुसने की, अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं.

लागत का विश्लेषण करते हुए, मूल्यांकन में कहा गया है कि इसमें वित्तीय व्यवहारिकता, और लागत में शुद्ध बचत को भी देखना होगा, जो समुद्री व्यापार को प्राप्त होंगी.

मूल्यांकन में ये भी कहा गया है, ‘आपको ये भी ध्यान रखना होगा, कि मलाक्का स्ट्रेट से होकर जाने वाले समुद्री परिवहन में कुछ ख़र्च नहीं होता, चूंकि ये एक स्ट्रेट है. दूसरी ओर, क्रा कनाल की 30 बिलियन डॉलर्स की अपेक्षित लागत की वजह से, कनाल से होकर जाने वाले व्यापारी जहाज़ों से, भारी पैसा वसूला जाएगा, जैसा कि पनामा और सुएज़ कनाल्स में होता है’. उसमें आगे कहा गया है, ‘फिलहाल ये दोनों कनाल्स एक औसत साइज़ के व्यापारी जहाज़ से, एक ट्रांज़िट के लिए 500,000 डॉलर्स से अधिक वसूलती हैं, और इस बात की काफी संभावना है, कि क्रा कनाल अगर ज़्यादा नहीं, तो कम से कम इतने रेट तो ज़रूर लेगी’.

मूल्यांकन में आगे कहा गया, ‘मलाक्का स्ट्रेट की बजाय, क्रा कनाल से होकर गुज़रने में, व्यापारी परिवहन को सिर्फ 10 घंटे का समय बचेगा, जिसमें क़रीब 25,000 डॉलर का ईंधन बचने की संभावना है, जो 5 लाख डॉलर की ट्रांज़िट लागत का, एक छोटा सा हिस्सा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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