नई दिल्ली: हथियारों के उपकरणों, कल-पुर्जों और घटकों की बिक्री पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का असर न केवल इस देश द्वारा हथियारों के निर्माण पर पड़ रहा है, बल्कि इसका प्रभाव म्यांमार जैसे देशों में भी देखा जा रहा है.
समाचार वेबसाइट ‘द इरावदी’ द्वारा छापी गई एक खबर के अनुसार जे एफ -17 विमान – एक हल्का, एक-इंजन वाला, मल्टीरोल लड़ाकू विमान, जिसे पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स और चीन के चेंगदू एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित किया गया है और जिसे साल 2018 में म्यांमार द्वारा अपनी वायु सेना में शामिल किया गया था, तकनीकी कठिनाइयों के कारण उड़ान नहीं भर पा रहा है.
इस खबर में कहा गया है कि साल 2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद से पश्चिमी देशों द्वारा आपूर्ति किये जाने वाले प्रतिबंधों, विशेष रूप से एवियोनिक्स के क्षेत्र में, के बाद स्पेयर पार्ट्स की भारी कमी ने जे एफ -17 के पूरे बेड़े को जमीन पर खड़ा कर दिया है. इसके अलावा, म्यांमार की वायु सेना भी इन्हीं प्रतिबंधों के कारण मिसाइल और बम खरीदने में असमर्थ रही है.
लंदन स्थित स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के एसोसिएट प्रोफेसर अविनाश पालीवाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘निश्चित रूप से, यह इस बात को दर्शाता है कि पश्चिमी प्रतिबंध स्पष्ट रूप से काम कर रहे हैं.’
हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि म्यांमार का जे एफ -17 बेड़ा हमेशा के लिए जमीन पर ही खड़ा रहेगा. उन्होंने कहा कि जल्द ही इन समस्याओं को हल करने में चीन या पाकिस्तान के तकनीशियनों को शामिल किया जाएगा.
उन्होंने आगे कहा, ‘लंबे समय की अवधि के दौरान रूस पर लगाए गए ये प्रतिबंध चीन द्वारा हथियारों की आपूर्ति करने का अवसर पैदा कर सकते हैं, विशेष रूप से म्यांमार जैसे देशों के लिए जो अब तक रूसी हथियारों पर बहुत अधिक निर्भर रहें हैं..’
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चीन के लिए अवसर और एक नई कशमकश
जैसा कि लेखक बर्टिल लिंटनर ने इस साल की शुरुआत में लिखे अपने आलेख में समझाया था, यूक्रेन और रूस म्यांमार के सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ता रहें हैं और वर्तमान में चल रहे युद्ध की वजह से से इन स्रोतों से इस देश को हथियारों की बिक्री कम हो जाएगी.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के आंकड़ों से पता चलता है कि म्यांमार ने साल 2001 से 2021 के बीच 1.7 बिलियन डॉलर के हथियार खरीदे थे . साल 2018 में, म्यांमार रूस से 6 एसयू -30 लड़ाकू विमान खरीदने पर सहमत हुआ था.
पालीवाल ने कहा, ‘रूस से हथियारों के निर्यात पर लगी पाबन्दी को चीन अपने हथियार उद्योग के लिए एक अवसर के रूप में देख रहा है. बीजिंग रूसी हथियारों की बिक्री को अपने उत्पादों से बदलना चाहेगा.’
खबरों से पता चलता है कि रूस से होने वाली आपूर्ति की कमी की भरपाई के लिए म्यांमार को हथियारों की आपूर्ति करने में चीन पाकिस्तान को सहारा दे रहा है. प्रतिबंधों की तरफ से सावधान रहते हुए चीन इस मार्ग का उपयोग कर रहा है क्योंकि वह म्यांमार के बाजार में रूस से मात खाना नहीं चाहता है.
पालीवाल ने कहा कि पश्चिमी प्रतिबंधों से प्रभावित देशों को हथियारों की आपूर्ति पर एक नई कशमकश अगले वर्षों के दौरान भी जारी रहेगी और जैसा कि हम म्यांमार के मामले में देखते हैं, चीन और रूस इसके केंद्र होंगे.
पश्चिमी तकनीक पर निर्भर हैं 27 रूसी हथियार प्रणालियां
लंदन स्थित थिंकटैंक रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूशन (आरयूएसआई) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यूक्रेन युद्ध में रूस द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली 27 हथियार प्रणालियां बड़े पैमाने पर अमेरिका, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे पश्चिमी देशों में निर्मित माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक पर निर्भर करती हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक तक रूस की पहुंच को रोकने के लिए विभिन्न प्रयास पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित निर्यात-नियंत्रण उपायों का हिस्सा हैं.
माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक का संबंध विशेष रूप से सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक कणों और घटकों के निर्माण से होता है. आमतौर पर, माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक सेमीकंडक्टर सामग्री से बने होते हैं.
आरयूएसआई की इस रिपोर्ट में, ‘ इन 27 प्रणालियों में 450 विभिन्न प्रकार के अनूठे विदेशी निर्मित घटक पाए गए हैं, जिनमें से अधिकांश उन अमेरिकी कंपनियों द्वारा निर्मित किए गए थे, जो अमेरिकी सेना के लिए परिष्कृत माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक के डिजाइन और निर्माण के काफी अधिक ख्याति प्राप्त रहे हैं.’
आरयूएसआई ने जिन 27 हथियार प्रणालियों का विश्लेषण किया था, उन्हें या तो युद्ध के दौरान पकड़ लिया गया था या रुसी सेना द्वारा दागा गया था. इनमें क्रूज मिसाइल, संचार प्रणाली और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर कॉम्पेक्स शामिल हैं.
इन 450 घटकों में से 80 सीधे अमेरिकी निर्यात नियंत्रणों और विनियमों के अधीन आती हैं. हालांकि, यह भी कहा जाता है कि रूस ने प्रतिबंधों से बचने और माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक सहित इन पश्चिमी तकनीकों तक अपनी पहुंच स्थापित के लिए वर्षों से अवैध और गुप्त व्यापार नेटवर्क तैयार किए हैं.
पश्चिमी प्रतिबंधों के बढ़ते हुए पैमाने को देखते हुए, विशेष रूप से माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक पर, रूस ने आयात-प्रतिस्थापन (विदेशी उत्पादों के आयात को समाप्त करना और उनका घरेलू बाजार में उत्पादन को प्रोत्साहित करना) रणनीति अपनाने की कोशिश की है. हालांकि, यह रणनीति ‘गैर-व्यावहारिक’ साबित हुई है. नतीजतन, जैसा कि आरयूएसआई ने आकलन किया है, प्रतिबंधों से बचना और उनके लिए अवैध नेटवर्क का उपयोग करना रूस के लिए ‘महत्वपूर्ण प्राथमिकता’ बन गया है.
इस रिपोर्ट में तर्क दिया गया कि यदि पश्चिमी जगत निर्यात नियमों को लागू करने और माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक को रूस तक पहुंचने से रोकने के लिए एकजुट हो सकता है, तो ‘रूसी सैन्य क्षमता में आई गिरावट को स्थायी बनाया जा सकता है.’
(अनुवाद: राम लाल खन्ना)
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