नई दिल्ली: भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर ठंड में तैनाती रखने पर सहमत हो गए हैं, लेकिन दोनों देश इस बात पर राजी हुए है कि सैनिकों की संख्या में कमी की जाएगी. साथ ही यह भी लक्ष्य रखा गया कि गर्मियों में इसकी दोबारा वापसी न हो. इसके लिए एक योजना तैयार करने का लक्ष्य है ताकि इसको लेकर कोई परेशानी न हो. दिप्रिंट को पता चला है कि तब सैनिकों और उपकरणों में बढ़ोतरी हुई थी.
रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि 9-10 अक्टूबर को आयोजित 20वें दौर की सैन्य वार्ता के दौरान, दोनों पक्ष सर्दियों के महीनों के दौरान कोई भी उत्तेजक कार्रवाई नहीं करने और एक-दूसरे के साथ संचार बनाए रखने पर भी सहमत हुए.
सूत्रों ने कहा कि ग्रीष्मकालीन तैनाती योजनाओं को पूरा करने के लिए सर्दियों के दौरान वार्ता का एक और दौर आयोजित किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि सर्दियों में चरम जलवायु के कारण, दोनों देशों ने मोर्चे पर न्यूनतम सैनिकों के साथ क्षेत्र में तैनात सैनिकों की संख्या कम कर दी है. जबकि कुछ को गहराई वाले क्षेत्रों में वापस खींच लिया जाता है, जबकि अन्य पूरी तरह से बाहर चले जाते हैं. गर्मियों के दौरान, सैनिकों को परिचालन क्षेत्रों में वापस लाया जाता है.
एक सूत्र ने कहा, “योजना अगले दौर की बातचीत के दौरान गर्मियों के दौरान अतिरिक्त सैनिकों को वापस नहीं लाने पर सहमति बनाने की है.”
वर्तमान में, भारत और चीन दोनों तरफ लगभग 50,000 सैनिक और सैन्य उपकरण तैनात हैं. सर्दियों के दौरान तैनात सैनिकों की संख्या काफी कम हो जाती है.
जैसा कि दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट किया था, भारतीय वायु सेना (IAF) ने 2020 के गलवान संघर्ष के बाद लगभग 90 टैंकों और 300 से अधिक पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों के साथ 68,000 से अधिक अतिरिक्त सैनिकों को लद्दाख की बर्फीली ऊंचाइयों पर भेजा था.
तब से गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो, गोगरा (PP-17A) और हॉट स्प्रिंग्स (PP-15) से सैनिकों की वापसी के बावजूद दोनों सेनाओं ने LAC पर हजारों सैनिकों और उपकरणों को बनाए रखना जारी रखा है.
भारत उन क्षेत्रों में अप्रैल 2020 तक की यथास्थिति की बहाली की मांग कर रहा है, जहां मई 2020 से तनाव देखा गया था, इसके अलावा देपसांग मैदानों सहित पहले की असहमतियों का समाधान भी किया गया था.
(संपादनः ऋषभ राज)
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