scorecardresearch
Friday, 20 December, 2024
होमडिफेंसरक्षा मंत्रालय के कोस्ट गार्ड चॉपर डील को रद्द करने के बाद नौसेना के NUHs के लिए मैदान में आ सकती है HAL

रक्षा मंत्रालय के कोस्ट गार्ड चॉपर डील को रद्द करने के बाद नौसेना के NUHs के लिए मैदान में आ सकती है HAL

पिछले हफ्ते रक्षा खरीद परिषद ने वैश्विक खरीद श्रेणी के तहत, डबल-इंजिन वाले 14 हेलिकॉप्टर्स की खरीद का कार्यक्रम रद्द कर दिया. दूसरे प्रोजेक्ट्स की भी समीक्षा हो रही है.

Text Size:

नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि रक्षा मंत्रालय सरकारी उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लि. (एचएएल) को नौसेना के 111 नेवल यूटिलिटी हेलिकॉप्टर्स (एनयूएच) खरीदने के कार्यक्रम के लिए बोली लगाने की अनुमति दे सकता है, चूंकि नरेंद्र मोदी सरकार स्वदेशी सिस्टम्स के पक्ष में सभी विदेशी खरीद कार्यक्रमों की समीक्षा कर रही है.

नौसेना का प्रस्तावित एनयूएच कार्यक्रम ‘सामरिक भागीदारी’ मार्ग के तहत आता है, जिससे एक चुना हुआ विदेशी मूल उपकरण निर्माता (ओईएम), एक नामित भारतीय कंपनी के साथ साझेदारी करके देश के अंदर ही चॉपर्स का निर्माण कर सकता है.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि जैसे ही सरकार स्वदेशी प्रोजेक्ट्स के पक्ष में ‘वैश्विक खरीद’ श्रेणी के प्रोजेक्ट्स की सूची में कटौती करेगी नौसेना कार्यक्रम पर चर्चा शुरू हो जाएगी.

‘वैश्विक खरीद’ श्रेणी के तहत विदेशी ओईएम से सीधे खरीद की जाती है.

एनयूएच घटनाक्रम से कुछ दिन पहले ही दिप्रिंट ने खबर दी थी कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) ने वैश्विक खरीद श्रेणी के तहत डबल-इंजिन वाले 14 हेलिकॉप्टर्स की खरीद का कोस्ट गार्ड कार्यक्रम रद्द कर दिया है, जिसके लिए एयरबस एक प्रमुख दावेदार थी.


यह भी पढ़े: ब्रह्मोस मिसाइल का पहला एक्सपोर्ट ऑर्डर- भारत और फिलीपींस अगले हफ्ते करेंगे समझौते पर हस्ताक्षर


NUH कार्यक्रम पर फोकस

नौसेना की 111 एनयूएच की ख़रीद उन बड़े कार्यक्रमों में से एक है, जो काफी समय से लंबित पड़े हैं.

सूत्रों ने कहा कि इस कार्यक्रम को रद्द तो नहीं किया जाएगा- चूंकि ये वैश्विक ख़रीद श्रेणी में नहीं है- लेकिन एचएएल को एक ओईएम के नाते बोली लगाने की अनुमति दे दी जाएगी.

2019 में, एचएएल ने भारतीय निजी उद्योग और विदेशी खिलाड़ियों को चौंका दिया था, जब उसने नौसेना द्वारा एनयूएच कार्यक्रम के लिए जारी पसंद की अभिव्यक्ति के जवाब में दो बोलियां दाखिल कीं थीं- एक स्वयं और दूसरी रशियन हेलिकॉप्टर्स के साथ अपने संयुक्त उद्यम के जरिए- जिसका काम कामोव चॉपर का उत्पादन करना है.

उद्योग ने तब एचएएल के शामिल किए जाने का तीखा विरोध किया था और आरोप लगाया था कि ये ‘सामरिक भागीदारी के उस आधार को ही खत्म कर देता है, जिसका मकसद निजी क्षेत्र में क्षमताएं पैदा करना था, जो सार्वजनिक क्षेत्र में मौजूद क्षमताओं के इतर और अतिरिक्त होंगी’.

लेकिन, रक्षा सूत्रों ने कहा कि एचएएल ने नैसेना के सामने अपनी ब्लेड-फोल्डिंग क्षमता को साबित कर दिया है और अगर कोस्ट गार्ड एचएएल के पक्ष में विदेशी हेलिकॉप्टर्स खरीदने की योजना तर्क कर सकती है तो फिर एनयूएच की प्रतिस्पर्धा में एचएएल को शामिल न करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता.

दिप्रिंट ने 2020 में खबर दी थी कि एनयूएच कार्यक्रम, नरेंद्र मोदी सरकार के ‘आत्मनिर्भर’ बढ़ावे के सामने पहली बड़ी चुनौती साबित होगा.

एचएएल की दलील थी कि सामरिक भागीदारी मॉडल का जोर ऐसी तकनीक लाने पर था, जो भारत में मौजूद नहीं है जैसी कि ऊंचे भारोत्तोलन वर्ग में है.

एक वरिष्ठ एचएएल एग्ज़ीक्यूटिव ने उस समय कहा था, ‘लेकिन ऐसी चीज लाने का कोई मतलब नहीं बनता जो उसी भार श्रेणी में है जिसमें एएलएच (एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर) है’.

वैश्विक खरीद श्रेणी की समीक्षा क्यों हो रही है

कोस्ट गार्ड के लिए चॉपर सौदे के अलावा, रक्षा मंत्रालय ने वैश्विक ख़रीद श्रेणी के अंतर्गत दो और प्रोजेक्ट्स को भी रद्द किया है, जिनमें एक कम दूरी के मिसाइल और रक्षा बलों के लिए सभी क्षेत्रों में चलने लायक वाहनों की खरीद की जानी थी.

रक्षा मंत्रालय ने पहले थलसेना, नौसेना, वायुसेना और कोस्ट गार्ड से ऐसी विदेशी खरीद योजनाओं की सूची बनाने के लिए कहा था, जिनकी जगह स्वदेशी खरीद की जा सकती है. उसी हिसाब से हर सेवा ने ऐसे आईटम्स की सूची तैयार की थी.

सूत्रों ने कहा कि जल्द ही एक और समीक्षा बैठक की जाएगी, जिसमें ऐसे और आईटम्स पर नजर डाली जाएगी. उन्होंने बताया कि इन कार्यक्रमों का कुल मूल्य कई बिलियन डॉलर्स बैठता है.

उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि इन फैसलों का उन सौदों पर असर नहीं होगा, जिनपर वैश्विक खरीद मार्ग के तहत पहले ही दस्तख़त किए जा चुके हैं, या जिनपर सरकार से सरकार के स्तर पर और अमेरिका के साथ विदेशी सैन्य बिक्री के तहत काम चल रहा है.

सूत्रों ने बताया कि स्वदेशी प्रणालियों पर मोदी सरकार का विशेष ध्यान रहा है, और ऐसा महसूस किया गया था कि सीधे आयात में खासी कमी किए जाने की जरूरत है. मकसद ये है कि वो उपकरण औस प्रणालियां खरीदी जाएं जिन्हें भारतीय कंपनियां बनाती हैं या वो विदेशी ओईएम बनाते हैं, जिन्होंने यहां पर उत्पादन सुविधाएं स्थापित कर ली हैं.

हाल ही में अपने रूसी और फ्रांसीसी समकक्षों के साथ बातचीत में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग करने या सीधे से भारत में निर्माण करने’ की जरूरत पर बल दिया था. सूत्रों ने कहा कि वो चाहते थे कि उनके रिश्ते शुद्ध क्रेता-विक्रेता के नजरिए से हटकर, सह-विकास और निर्माण पर केंद्रित हो जाएं.

सूत्रों ने आगे कहा कि मोदी सरकार रक्षा को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में देखती है जिसमें निर्माण की विशाल संभावनाएं हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़े: चीन के साथ बातचीत जारी, नागालैंड घटना पर जांच रिपोर्ट के आधार पर होगी कार्रवाई: सेना प्रमुख नरवणे


share & View comments