नई दिल्ली: ‘जल्दी मिलते हैं’, यही वो आखिरी शब्द हैं जो चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने पिछले शनिवार को नौसेना दिवस के मौके पर नौसेना प्रमुख एडमिरल हरि कुमार के घर पर हुई एक मुलाकात के दौरान मुझसे कहे थे.
ठीक एक घंटे पहले वह राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के मंच पर आने का इंतजार कर रहे थे और उन्होंने मुझे अपने सामने मौजूद कुछ लोगों के बीच देखा तो इशारा करके बुलाया और पूछा कि कैसा हूं, क्या कर रहा हूं.
मैंने सिर थोड़ा झुकाते हुए उन्हें नमस्ते कहा और बताया कि सब ठीकठाक है. फिर उन्होंने मुझे बगल में ही खड़े टाइम्स नाउ के श्रृंजॉय चौधरी का कंधा थपथपाकर बुलाने को कहा.
जनरल रावत ने श्रृंजॉय से भी पूछा कि वह कैसे हैं. उस दिन वह काफी अच्छे मूड में नजर आ रहे थे. राष्ट्रपति के जाने के बाद वे मंच से नीचे उतरे और वहां मौजूद अधिकारियों और पूर्व सैनिकों से बातचीत की.
मेरे साथ कई और पत्रकार इंतजार ही कर रहे थे कि वह हमारी तरफ मुखातिब हुए और हमेशा की तरह पूछा कि हम सब क्या कर रहे हैं.
मेरे साथ कई और पत्रकार इंतजार कर रहे थे कि कब वह हमारी तरफ मुखातिब हों और हमेशा की तरह पूछें कि हम सब क्या कर रहे हैं.
फिर उन्होंने हल्के-फुल्के माहौल में बात करते हुए चुटकुले सुनाए, चीन के मसले पर हमारी खिंचाई भी की और साथ ही बताया कि स्थिति से निपटने को लेकर उनका क्या नजरिया है.
यह सारी बातचीत करीब 15 मिनट तक चली, इस दौरान उनके रक्षा सलाहकार ब्रिगेडियर एल.एस. लिद्दर उनके कान में फुसफुसाते रहे कि अब उन्हें चलना चाहिए.
जब वह जा रहे थे तो मैंने मजाक में कहा, ‘सर, आप बहुत बिजी हो गए हैं.’ उन्होंने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराकर कहा, ‘जल्दी मिलते हैं.’
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1 जनवरी 2020 को देश के पहले सीडीएस के रूप में पदभार संभालने वाले जनरल रावत एक मिशन पर थे—तीनों सेनाओं के बीच साझी व्यवस्था बनाना और थिएटर कमांड के साथ उनका आधुनिकीकरण करना.
भले ही कोई भी सुधारों पर अपने विचारों को आगे बढ़ने की गति को लेकर उनकी आलोचना करे लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने वहीं किया जो उन्हें सुरक्षा बलों के लिए सबसे अच्छा लगा.
जनरल रावत ने जो कदम उठाए उसके लिए उन्हें प्रशंसा और सराहना ही मिली है.
एक बार उनसे बातचीत के दौरान मैंने पूछा कि क्या वे आलोचनाओं से प्रभावित होते हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं इससे अप्रभावित हुए बिना तो नहीं रह सकता. लेकिन मुझे पता है कि मैं अपने और अपने संगठन के प्रति निष्ठावान हूं. मेरे लिए यही सबसे ज्यादा मायने रखता है.’
मैंने उनकी तरफ से उठाए गए कुछ कदमों की अपने कॉलम ब्रह्मास्त्र में आलोचना की, लेकिन इस पर कभी भी उनकी नाराजगी नहीं दिखी. और जब मैंने अपने कॉलम में उनके कुछ विचारों का समर्थन किया तो भी उनकी प्रतिक्रिया समान ही थी.
जब भी हम मिलते थे, उनमें वही गर्मजोशी नजर आती थी और वह तमाम मुद्दों पर अपनी राय रखने के लिए तैयार रहते थे.
फ्रंट फुट पर बल्लेबाजी करने की उनकी आदत ऐसी थी कि उन्होंने कभी मीडिया के किसी सवाल को टाला नहीं. उनकी इस आदत ने उन्हें कई बार मुश्किल में डाल दिया, क्योंकि वह इसमें डिप्लोमैटिक टच देने के बजाये अपने मन की बात कह देते थे.
उन्हें सशस्त्र बलों और सरकार में ‘गो-गेटर’ के तौर पर जाना जाता था. उनके साथ काम करने वाले लोगों का कहना है कि वह कठिन से कठिन काम करने का माद्दा रखते थे और किसी भी बात पर ना कहना पसंद नहीं करते थे.
एक बार मुझे यह बताते हुए कि वह अपने अधिकारियों से क्या अपेक्षा रखते हैं, जनरल रावत ने कहा था, ‘मुझे यह मत बताओ कि समस्या क्या है. मुझे बताएं कि हम इससे निपट कैसे सकते हैं.’
2015 में बाल-बाल बचे
जनरल रावत 2015 में जब तीसरी कोर के कमांडर थे तब एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में बाल-बाल बचे थे.
वह उस समय सेना के चीता हेलीकॉप्टर में यात्रा कर रहे थे, जब वो नागालैंड के दीमापुर जिले के रंगपहाड़ हेलीपैड से उड़ान भरने के कुछ सेकंड बाद ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया.
इंजन ठप होने से हेलिकॉप्टर करीब 20 फीट की ऊंचाई से गिर गया. रावत के लिए अच्छी बात यही थी कि, हेलिकॉप्टर में आग नहीं लगी और उन्हें बस थोड़ी-बहुत मामूली चोटें ही आईं.
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