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Friday, 22 November, 2024
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भारतीय नौसेना के साथ कांट्रैक्ट की रेस में फ्रांस का राफेल जेट सबसे आगे

भारतीय नौसेना के इस करार की दिशा में आगे बढ़ने का मतलब होगा कि भारतीय वायुसेना के लिए और राफेल जेट खरीदने के प्रस्ताव में भी तेजी आ सकती है.

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नई दिल्ली: फ्रांसीसी विमान निर्माता कंपनी दसॉल्ट एविएशन का राफेल-एम भारतीय नौसेना के लिए 27 लड़ाकू विमानों की खरीद संबंधी मेगा कांट्रैक्ट के मामले में सबसे बड़ा दावेदार बनकर उभरा है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, राफेल ने अमेरिकी फर्म बोइंग के एफ/ए-18 सुपर हॉर्नेट को पीछे छोड़ दिया है.

रक्षा एवं सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि डेमॉन्सट्रेशन के दो सेट के बाद नौसेना ने सुपर हॉर्नेट्स और राफेल-एम के प्रदर्शन पर एक विस्तृत रिपोर्ट रक्षा मंत्रालय को सौंप दी है. ये विमान भारतीय वायु सेना में पहले से ही इस्तेमाल हो रहे लड़ाकू विमानों के समुद्री संस्करण हैं.

अमेरिकी फर्म बोइंग और फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट एविएशन ने क्रमशः सुपर हॉर्नेट्स और राफेल-एम का ऑपरेशनल डेमॉन्सट्रेशन किया. भारतीय विमान वाहक से ऑपरेट करने की क्षमता के प्रदर्शन के लिए इनकी स्की जंपिंग— जो टेकऑफ क्षमता को दर्शाने के लिहाज से बेहद अहम होती है— गोवा स्थित शोर-बेस्ड फैसलिटी में आईएनएस हंसा से की गई.

कोई खास ब्योरा देने से इनकार करते हुए सूत्रों ने कहा कि नौसेना मुख्यालय की तरफ से रक्षा मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट काफी ‘सकारात्मक’ है, और यह कि राफेल-एम सभी मानदंडों को पूरा करता है.

नौसेना मुख्यालय की तरफ से दोनों विमानों के प्रदर्शन का विस्तृत विश्लेषण किए जाने के बाद ही रक्षा मंत्रालय को रिपोर्ट भेजी गई है. टेस्ट में हिस्सा लेने वालों ने एक ‘ट्रायल रिपोर्ट’ तैयार की थी जिसे प्रदर्शन पर विस्तृत विश्लेषण और विमानों की शॉर्टलिस्टिंग के लिए नौसेना मुख्यालय को भेजा गया था.

यह पूछे जाने पर कि क्या भारत के स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत का लिफ्ट साइज कोई एक मुद्दा होगा, सूत्रों ने कहा कि दोनों विमानों को एक निश्चित कोण पर ऊपर और नीचे लाना पड़ा था. यद्यपि राफेल के विपरीत सुपर हॉर्नेट्स के पंख मुड़े हुए हैं फिर भी इन्हें एक निश्चित कोण पर ऊपर और नीचे लाया जाना था. दोनों विमानों में पंखों को मोड़ने की एक अलग प्रक्रिया भी होती है.

लिफ्ट साइज का डिजाइन और स्पेस एक समस्या रही क्योंकि समझा जाता है कि इसे मिग 29के और तेजस विमानों के नौसैनिक संस्करण को ध्यान में रखकर बनाया गया है.

नौसेना अभी आईएनएस विक्रमादित्य से रूसी मिग 29के विमान ऑपरेट करती है. लेकिन आईएनएस विक्रांत के शामिल होने के बाद नौसेना और अधिक लड़ाकू विमानों की मांग कर रही है.

नया कांट्रैक्ट एक अंतरिम व्यवस्था के लिए है क्योंकि नौसेना ने अपनी नजरें स्वदेशी लड़ाकू विमानों पर टिका रखी हैं. नौसेना प्रमुख एडमिरल हरि कुमार ने गत शनिवार को ही कहा था कि भारतीय नौसैनिक विमानन का भविष्य स्वदेशी ट्विन इंजन डेक आधारित फाइटर (टीईडीबीएफ) है, जिसका प्रोटोटाइप 2026-27 तक तैयार होने और उत्पादन 2032 के आसपास शुरू होने की उम्मीद है.

उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा नौसैनिक लड़ाकू विमान मिग 29-के एक सीमित संख्या में ही हैं और रूस की तरफ से इसके अतिरिक्त कलपुर्जों की आपूर्ति की ‘आगे कोई गुंजाइश’ नजर नहीं आ रही है.


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भारतीय वायुसेना के लिए लड़ाकू विमान

सूत्रों ने कहा कि गेंद अब रक्षा मंत्रालय के पाले में है और वहीं इस बारे में आगे कोई फैसला करेगा. उन्होंने कहा कि अनुबंध पूर्व में वायुसेना के लिए राफेल जेट सौदे की तरह सरकार से सरकार के बीच खरीद सौदे की तरह ही होने की संभावना है.

यह जानकारी भी मिली है कि फ्रांस ने अपने खुद के नौसैनिक बेड़े से कुछ विमानों को ट्रांसफर करने की पेशकश भी की है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भारतीय नौसेना उन्हें तेजी से ऑपरेट कर पाएगी. हालांकि, सभी फाइटर प्लेन ऑफ-द-शेल्फ खरीदे जाने की संभावना है.

भारतीय नौसेना के इस करार की दिशा में आगे बढ़ने का मतलब होगा कि भारतीय वायुसेना के लिए और राफेल जेट खरीदने के प्रस्ताव में भी तेजी आ सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अधिक संख्या में विमान लेने के मद्देनजर अधिक विवेकपूर्ण ढंग से वित्तीय फैसले लिए जा सकेंगे और लागत में भी कमी आएगी.

दिप्रिंट जैसा पहले ही बता चुका है, सरकार वायुसेना के लिए 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) की मेगा डील को विभाजित करने पर विचार कर रही है. एक बार में 114 लड़ाकू विमान लेने—जैसी पहली योजना बनाई गई थी, के बजाये सरकार भारतीय वायुसेना के लिए 54 विमानों के शुरुआती ऑर्डर पर विचार कर रही है.

इसके लिए विदेशी मूल निर्माता (ओईएम) से 18 विमान ऑफ-द-शेल्फ खरीदे जाएंगे और फिर मेक इन इंडिया के तहत एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से 36 विमान भारत में निर्मित करने का प्रस्ताव है.

यह एक ऐसा ऑर्डर होगा जो सीधे विदेशी ओईएम को दिया जाएगा. ज्वाइंट वेंचर को फॉलो-ऑन ऑर्डर दिया जाएगा और यह डील भारतीय मुद्रा में होगी.

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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