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Thursday, 21 November, 2024
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भारत-चीन आज पहली बार एलएसी पर सैन्य-कूटनीतिक वार्ता करेंगे, सभी क्षेत्रों से सैन्य वापसी पर होगी बात

भारत एलएसी स्थित चुशुल-मोल्दो मीटिंग प्वाइंट पर वार्ता के लिए चीन से जुड़े मामले देख रहे विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव और कोर कमांडरों को भेज रहा है.

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नई दिल्ली: भारत और चीन सोमवार सुबह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के हिस्से में स्थित चुशुल-मोल्दो मीटिंग प्वाइंट पर पहली बार संयुक्त सैन्य और कूटनीतिक स्तर की वार्ता करने जा रहे हैं. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक यह बातचीत विवाद का विषय बने सभी क्षेत्रों से पूरी तरह सैन्य वापसी पर केंद्रित होगी न कि सिर्फ पैंगोंग त्सो के दक्षिणी छोर पर, जिस पर चीन जोर दे रहा है.

भारत का प्रतिनिधित्व 14वीं कोर के कमांडर मेजर जनरल हरिंदर सिंह के साथ दो अन्य मेजर जनरल रैंक के अधिकारी, चार ब्रिगेडियर और कर्नल-स्तर के कुछ अधिकारी और ट्रांसलेटर करेंगे. उनके साथ होंगे विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव जो चीन मामलों को देखते हैं. भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में महानिरीक्षक दीपम सेठ भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होंगे.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि सुबह 9 बजे शुरू होने वाली बातचीत, तनाव घटाने के नए नियमों के तहत होगी, जो ‘तर्कसंगत सैन्य वापसी’ की पूर्व अवधारणा से हटकर है. सूत्रों ने यह भी स्पष्ट किया कि सैन्य वापसी पर पहले चीन को उपयुक्त कदम उठाने होंगे, फिर भारत भी उन पर अमल करेगा.


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उन्होंने कहा कि अगस्त के अंत में भारत की पहल वाले अभियान, जिसमें चीनी सैनिकों को पीछे छोड़ भारतीय जवानों ने पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर स्थित चोटियों पर कब्जा जमा लिया था, के बाद से चीन कई ब्रिगेडियर-स्तरीय वार्ता के दौरान इस पर जोर देता रहा है कि भारत इस क्षेत्र से पीछे हटे.

सूत्रों ने कहा, ‘हालांकि, हम बहुत स्पष्ट हैं कि सैन्य वापसी और तनाव घटाने के सभी कदम हर जगह एक साथ उठाए जाने चाहिए. इसके अलावा, पहला कदम चीन की तरफ से उठाए जाने की जरूरत है क्योंकि उसकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ही है जिसने सीमा समझौतों का उल्लंघन किया था और एलएसी पर भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण किया.’

सैन्य वापसी को लेकर चीन की सबसे बड़ी चुनौती है एलएसी पर शांति के लिए किए गए अपने वादों पर अमल करना. यह इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) की 19वीं केंद्रीय समिति का पांचवां पूर्ण सत्र अक्टूबर में होने वाला है.

सैन्य वापसी कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता के पिछले पांच चरणों के दौरान परस्पर सहमति से समान दूरी तक वापसी पर आधारित थी. ये कदम गलवान घाटी और हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र के लिए तो ठीक था लेकिन पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर यह सफल नहीं रहा, जहां चीनी सैनिक भारतीय क्षेत्र में 8 किलोमीटर तक घुस आए थे. दरअसल भारत उस क्षेत्र को छोड़कर पीछे नहीं हट सकता जहां उसका आधार है और एक लंबे समय से उसका कब्जा बना हुआ है.

गौरतलब है कि दिप्रिंट ने 16 सितंबर को बताया था कि कई दिनों पहले ही सैद्धांतिक सहमति बन जाने के बावजूद चीन नए दौर की कमांडर स्तरीय वार्ता की तारीखों की पुष्टि नहीं कर रहा है.

इसने ही भारत को उसे कोई और मौका न देने और एलएसी, यहां तक कि नियंत्रण रेखा और पाकिस्तान से लगी पश्चिमी सीमा, को लेकर ‘अतिरिक्त संवेदनशील’ होने के लिए प्रेरित किया.

सर्दियां आने वाली हैं

सैन्य और कूटनीतिक स्तर की वार्ता ऐसे समय में होने जा रही है जब सर्दियां आने वाली हैं. भारत और चीन ने कभी भी सर्दियों में एलएसी पर इस तरह अग्रिम स्थानों तक सैनिकों को तैनात नहीं किया है, जब तापमान बेहद तेज हवाओं के साथ शून्य से 30 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है.

हालांकि, चीनी सैनिकों के विपरीत भारतीय जवान सियाचिन ग्लेशियर और एलओसी पर पाकिस्तान के साथ लगे अन्य क्षेत्रों में ऐसे मौसम में तैनाती के आदी है, जहां सेना पूरे साल सैनिकों को तैनात रखती है.


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