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Wednesday, 20 November, 2024
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भारत में बने टोड आर्टिलरी का जून में ट्रायल शुरू करेगा DRDO लेकिन सेना की अभी भी हैं कुछ ‘चिंताएं’

डीआरडीओ इस बात पर लगातार जोर दे रहा है कि एडवांस टोड ऑर्टिलरी गन सिस्टम इजरायली गन एथोस से कहीं बेहतर है फिर भी सेना ने इसके वजन और महत्वपूर्ण प्रदर्शन मानकों को पूरा करने के प्रति इसकी अक्षमता पर अपनी चिंता व्यक्त की है.

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नई दिल्ली: निजी व्यावसायिक कंपनियां भारत फोर्ज और टाटा पावर-एसईडी के साथ मिलकर रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित स्वदेशी एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस) की अंतिम पुष्टि के लिए परीक्षण जून महीने में शुरू करेगी.

एटीएजीएस विकास कार्यक्रम से जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इस साल के ग्रीष्मकालीन परीक्षणों के बाद इसके उत्पादन हेतु उद्योगों को आदेश दिए जा सकते हैं, जिसके बाद यह रक्षा प्रणाली सशस्त्र बलों में संचालन के लिए शामिल हो जाएगी.

उन्होंने बताया कि पथरीले और पहाड़ी इलाकों में इस गन सिस्टम के मोबिलिटी ट्रायल सहित ऊंची पहाड़ी वाले क्षेत्रों में इसके वैलिडेशन ट्रायल (सत्यापन हेतु परीक्षण) को भी पूरा कर लिया गया है.

एटीएजीएस सेना की फील्ड आर्टिलरी रैसनाइलाइजेसन प्लान- जिसे 1999 में तैयार किया गया था- का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इस योजना के अनुसार, सेना के पास टोड सिस्टम सहित एक अलग प्रकार की तोपें- यानि कि 155 मिमी x 52 कैलिबर की गन वाली तोपें होनी चाहिए.

कई बार के प्रयासों के बावजूद टोड गन के लिए वैश्विक स्तर पर खरीद के लिए जारी किये गए प्रस्तावों की विफलता के मध्य डीआरडीओ द्वारा एटीएजीएस के निर्माण के लिए एक परियोजना को 2010 के आसपास शुरू किया गया था.

एटीएजीएस, जिसे डीआरडीओ द्वारा दो निजी फर्मों के सहयोग से विकसित किया जा रहा है, को 2016 में पहली बार पूरी तरह से एकीकृत मॉडल में पेश किया गया था.

यह सब कुछ उस समय हुआ जब सेना ‘मेक इन इंडिया’ वाली पहल के तहत विदेशों से टोड आर्टिलरी की खरीद के लिए एक अलग प्रक्रिया अपना रही है.

इस प्रक्रिया के लिए आखिरकार जो आर्टलरी सिस्टम सबसे कम बोली लगाने वाले प्रस्ताव के रूप में सामने आया है उसे 2019 में इजरायली फर्म एल्बिट द्वारा ऐथोस गन के लिए पेश किया था.

यह सौदा पूरी तरह से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी) प्रक्रिया के तहत ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड द्वारा 400 तोपों की आपूर्ति और अन्य 1,180 तोपों के स्वदेशी उत्पादन के लिए था.

हालांकि, बाद में सेना ने अपनी योजनाओं में बदलाव किया है और अब वह केवल 400 एथोस गन की खरीद का इरादा रखता है, लेकिन डीआरडीओ इस पर भी आपत्ति जता रहा है और कह रहा है कि एटीएजीएस ऐथोस से कहीं बेहतर है और यह भविष्य का हथियार है.

28 मई तक की जानकारी के अनुसार एथोस के बारे में कोई अंतिम निर्णय अभी भी लंबित है.


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सेना की चिंताएं और तुलनात्मक अध्ययन

रक्षा सूत्रों का कहना है कि एटीएजीएस का विकास कार्य अब पूरा हो चुका है और वर्तमान में इस गन सिस्टम के अंतिम प्रारूप को तय करने के लिए प्रिलिमिनरी सर्विसेज क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट्स- पीएसक्यूआर (हथियार की खरीद और गुणवत्ता संबंधी आवश्यकताओं की रिपोर्ट) के लिए हो रहे परीक्षणों के तहत है.

हालांकि, सेना के पास इस बारे में ‘चिंता के लिए कुछ मुद्दे’ अभी भी हैं.

सूत्रों ने बताया कि इनमें से पहली चिंता इसके अतिरिक्त वजन वाले पहलू को लेकर है, जो पहाड़ी और ऊंचाई वाले इलाकों में इस गन सिस्टम के परिचालन प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है.

एटीएजीएस का वजन लगभग 18 टन बताया जाता है. इसकी तुलना में एथोस का वजन 15 टन से भी कम है.

एटीएजीएस की वकालत करने वाले सूत्र भी यह मानते हैं कि इसका अतिरिक्त वजन एक मुद्दा है लेकिन उनका कहना है कि धनुष तोप जैसी अन्य प्रणालियों का इस्तेमाल पहाड़ों में भी किया जा सकता है. इसके अलावा हल्के हॉवित्जर तोप भी हैं, जो अमेरिका से विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों के लिए ही खरीदे गए थे.

एक रक्षा विशेषज्ञ ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘सभी तोपों को सभी इलाकों में एक ही तरह से संचालित नहीं किया जाता. टैंकों के मामले में हमारे पास T-90 और T-72 जैसे टैंक होते हैं जो पहाड़ों में आसानी से चल सकते हैं और वहां एयरलिफ्ट भी किए जा सकते हैं. लेकिन हमारे पास स्वदेश निर्मित अर्जुन भी है, जो वहां उस तरह से काम नहीं कर सकता जैसे कि रेगिस्तानी इलाकों में होता है.’

एटीएजीएस कार्यक्रम से जुड़े सूत्रों ने बताया कि इस प्रणाली की स्व-चालित गतिशीलता (सेल्फ प्रोपेल्ड मोबिलिटी) काफी अधिक है और यह सभी तरह के भारतीय पुलों और इलाकों को पार करने में सक्षम है.

उन्होंने यह भी कहा कि अपने भार वर्ग में यह दुनिया में मौजूद किसी भी अन्य गन सिस्टम के साथ पूरी तरह से तुलनीय है.

रक्षा सूत्रों ने कहा कि सेना की दूसरी चिंता महत्वपूर्ण प्रदर्शन मानकों- खासकर इसके गोले दागने की दरों के संबंध में- को पूरा करने के लिए इस गन सिस्टम की ‘अक्षमता’ को लेकर है.

एटीएजीएस कार्यक्रम से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इसकी गोले दागने की दर में एक मिनट में पांच राउंड फायरिंग, ढाई मिनट में 10 राउंड की तीव्र फायरिंग और साठ मिनट में 60 राउंड की निरंतर गोले दागने की दर भी शामिल है.

सकी तुलना में, एल्बिट सिस्टम्स का दावा है कि ऐथोस गन 30 सेकंड में तीन राउंड, तीन मिनट में 12 राउंड और साठ मिनट में 42 राउंड फायर कर सकता है.

तीसरी चिंता की वजह फायरिंग रेंज में एटीएजीएस के आंतरिक सत्यापन परीक्षणों के दौरान सितंबर 2020 में हुई दुर्घटना है. उस समय गोले दागते समय इस गन की नली (बैरल) फट गई थी.

संयोगवश, इसकी लागत भी एक अतिरिक्त कारक है. एथोस गन की कीमत जहां 11 करोड़ रुपये प्रति गन से कम होगी, वहीं एटीएजीएस की कीमत 16-18 करोड़ रुपये के बीच बताई जा रही है.

एक क्षेत्र जहां एटीएजीएस अपने सभी प्रतिद्वंदियों को पछाड़ देता है वह है इसकी गोले दागने की अधिकतम सीमा (फायरिंग रेंज). सब-बोर बोट टेल (ई आर एफ बी- टी ) वाले गोला-बारूद (ऐम्यनिशन) के साथ एटीएजीएस के विस्तारित फायरिंग रेंज की सीमा 35 किमी है और वहीं ई आर एफ बी- बीबी (बेस ब्लीड) गोला-बारूद के साथ यह रेंज 45 किमी है. 2017 में एटीएजीएस ने वास्तव में 47 किमी की दूरी तक भी फायरिंग की है.

ऐसा कहा जा रहा है कि जब एटीएजीएस को खरीद का आदेश दिया जाएगा, तो वैसे तो दोनों निजी फर्मों को भी आपूर्ति आदेश (सप्लाई आर्डर) मिल जाएगा, लेकिन सबसे कम बोली लगाने वाले फर्म को इसके बड़े हिस्से- 60 प्रतिशत या उससे अधिक का आर्डर मिलेगा.

दोनों फर्मों- भारत फोर्ज और टाटा के द्वारा बनाई गई गन में समान प्रदर्शन पैरामीटर हैं और अंतिम अनुबंध लागत के आधार पर तय की जाएगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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