नई दिल्ली: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की तरफ से शुक्रवार को ओडिशा तट के करीब व्हीलर द्वीप पर स्थित रेडिएशन टारगेट पर नई पीढ़ी की एंटी-रेडिएशन मिसाइल रुद्रम का सफल परीक्षण किए जाने के साथ ही भारत ने स्वदेशी रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में एक नई उपलब्धि हासिल कर ली.
लंबी दूरी की हवा से मार करने वाली इस मिसाइल को सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान से लॉन्च किया गया था.
एंटी-रेडिएशन मिसाइलें रडार, संचार साइटों और अन्य रेडियो फ्रीक्वेंसी उत्सर्जन वाले लक्ष्यों को भेदकर दुश्मन की वायु रक्षा प्रणालियों को ध्वस्त करने के लिए होती हैं, जिससे सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को लॉन्च करने की किसी भी योजना को नाकाम किया जा सकता है.
रुद्रम का सुखोई-30 से परीक्षण किए जाने की एक वजह यह भी है कि वायुसेना में सबसे बड़ा लड़ाकू बेड़ा इसी का है और इसे ले जाने की क्षमता के मामले में हाल में वायुसेना में शामिल राफेल के बाद दूसरा नंबर इसी लड़ाकू विमान का है.
मौजूदा समय में वायुसेना रूस निर्मित केएच-31आर एंटी-रेडिएशन मिसाइलों का उपयोग करती है, जिन्हें सुखोई-30 के साथ तैनात किया जाता है. अन्य एंटी-रेडिएशन मिसाइलें जमीन से ही काम करती हैं.
दिप्रिंट आपको एंटी-रेडिएशन मिसाइलों के बारे में और जानकारी दे रहा है.
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एक सफल परीक्षण
डीआरडीओ की तरफ से शुक्रवार को जारी बयान के अनुसार, रुद्रम देश की पहली स्वदेशी एंटी-रेडिएशन मिसाइल है, और इसमें लॉन्च किए जाने की स्थिति के आधार पर अलग-अलग रेंज में मार करने की क्षमता है.
इसमें निर्णायक हमले के लिए आईएनएस-जीपीएस नेविगेशन और साथ ही एक पैसिव होमिंग हेड भी है. पैसिव होमिंग हेड को इस तैयार प्रोग्राम किया गया है कि यह एक व्यापक फ्रीक्वेंसी बैंड पर लक्ष्यों की पहचान, वर्गीकरण और उन्हें निशाना बनाने की क्षमता रखता है.
डीआरडीओ ने शुक्रवार के अपने परीक्षण के बारे में कहा कि रुद्रम ने रेडिएशन टारगेट को एकदम सटीकता के साथ भेदा. इसने बताया, ‘यह मिसाइल व्यापक स्तर पर अलग-अलग रेंज से दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम को प्रभावी ढंग से नष्ट करने के लिए भारतीय वायुसेना के पास एक शक्तिशाली हथियार है.
डीआरडीओ सूत्रों ने कहा कि मिसाइल को भारतीय वायुसेना में शामिल किए जाने से पहले इसके और परीक्षण किए जाएंगे.
एंटी-रेडिएशन मिसाइल क्या होती है?
एंटी-रेडिएशन मिसाइल राडार और जैमर सहित रेडियो फ्रीक्वेंसी उत्सर्जित करने वाले विशेष तौर पर निर्धारित लक्ष्यों को भेद सकती है.
भारतीय वायुसेना के एक अधिकारी ने बताया कि जब एक एंटी रेडिएशन मिसाइल को किसी राडार को निशाना बनाकर छोड़ा जाता है तो यह उसकी ओर बढ़ती है, इसे निशाना बनाती है, और सतह से हवा में मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र लॉन्च करने की दुश्मन की क्षमता को नष्ट कर देती है.
मिसाइल सिस्टम में विभिन्न प्रकार की फ्रीक्वेंसी और सर्विलांस मिशन से जुटाई गई उपयोगी इलेक्ट्रॉनिक जानकारी को फीड किया जाता है. ट्रांसमिशन के विभिन्न स्रोतों और उनकी लोकेशन पता लगाने के लिए युद्धकाल के साथ-साथ शांतिकाल में भी विशेष विमानों और एरियल प्लेटफॉर्म की मदद से सिग्नल इंटेलिजेंस ऑपरेशन्स चलाए जाते हैं.
इसके बाद यह समझने के लिए कैसे उपकरण का पता चला है और उसका वर्गीकरण करने के लिए कैप्चर किए गए डाटा का विस्तृत विश्लेषण किया जाता है.
फिर इस डाटा को एंटी-रेडिएशन मिसाइलों में फीड किया जाता है और उसे विशेष रेडिएटिंग लक्ष्य को भेदने के लिए छोड़ा जाता है.
अधिकारी ने कहा, ‘एक पैसिव सीकर होने के नाते (मिसाइल किसी भी स्तर पर लक्ष्य भेदने के लिए खुद रेडिएशन का इस्तेमाल नहीं करती) और 100-150 किलोमीटर की दूरी से स्टैंड-ऑफ रेंज से लॉन्च किए जाने के कारण यह मिसाइल दुश्मन को संभलने का कोई मौका नहीं देती.’
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‘युद्ध के नतीजे तय करने में हो सकती है निर्णायक’
भारतीय वायुसेना से जुड़े कई लोगों का कहना है कि एंटी-रेडिएशन मिसाइलें ‘युद्ध के नतीजे तय करने में निर्णायक’ हो सकती है.
एक दूसरे वायुसेना अधिकारी ने कहा कि राडार किसी भी एयर डिफेंस सिस्टम के ‘आंख और कान’ की तरह होते हैं और एक बार उन्हें भेद दिया जाए तो दुश्मन किसी विदेशी विमान का पता लगाने में अक्षम हो सकता है.
अधिकारी ने आगे कहा, ‘किसी जंग की स्थिति में एक वायु सेना का लक्ष्य हवाई क्षेत्र पर हावी होना होगा. ऐसा होने से रोकने के लिए सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को तैनात किया जाता है, ताकि वायु सेना उस क्षेत्र में काम न कर पाए जहां मिसाइल प्रणाली तैनात है.’
अधिकारी ने कहा कि यही वजह है कि शुरुआत में कोई भी वायु सेना दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम का मुकाबला करने के लिए ‘सप्रेशन ऑफ एनमी एयर डिफेंस (एसईएडी)’ और ‘डिस्ट्रक्शन ऑफ एनमी एयर डिफेंस (डीआईएडी)’ मिशन संचालित करती है.
अधिकारी ने कहा, ‘एक बार जब दुश्मन के हवाई हमले से बचाव वाले कवच को तोड़ दिया जाता है तो फिर अभियान चलाना आसान हो जाता है और इसके बाद दुश्मन को कम दूरी के हथियारों से भी निशाना बनाया जा सकता है.’ अधिकारी ने कहा कि लंबी दूरी के हथियार महंगे होते हैं. इसलिए, दुश्मन के लंबी दूरी के एयर डिफेंस सिस्टम को नाकाम कर देने के बाद उसे कम दूरी और कम लागत वाले बम और रॉकेटों से निशाना बनाने की सुविधा मिल जाती है.
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