नई दिल्ली: खुफिया रिपोर्टों से पता चला है कि चीन की सेना ने सिक्किम से लगे सीमा पार के क्षेत्रों में ‘वॉलंटियर मिलिशिया’ (वॉलिंटियर मिलिशिया) तैयार करने के आशय से तिब्बत में स्थानीय, बेरोजगार युवाओं को सक्रिय रूप से भर्ती करना शुरू कर दिया है. हमारे सैन्य और खुफिया विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि भारत को इस घटनाक्रम के बारे में ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए, लेकिन हमें इस पर कड़ी नजर रखनी चाहिए.
चीन के साथ लगी भारत की 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा का अधिकांश भाग- एक छोर पर लद्दाख से लेकर दूसरे छोर पर अरुणाचल प्रदेश (जिसे चीन द्वारा दक्षिणी तिब्बत के रूप में दावा किया जाता है) तक – तिब्बत के सटे ही है.
वॉलंटियर मिलिशिया की भर्ती का अभियान लद्दाख में भारत और चीन के बीच गतिरोध के शुरू होने के तक़रीबन एक साल से भी अधिक समय के बीच हीं शुरू किया गया है.
खुफिया सूत्रों से मिली सूचनाओं के अनुसार, चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और पुलिस अधिकारी सिक्किम के ठीक सामने स्थित यादोंग काउंटी और इस क्षेत्र के अन्य पड़ोसी इलाकों से बेरोजगार युवाओं की भर्ती कर रहे हैं.
मिल रही जानकारी से यह भी पता चलता है कि इन कैडरों को सैन्य प्रशिक्षण और बाद में रोजगार प्रदान करने के लिए पुलिस और पीएलए केंद्रों में भेजा जाएगा.
सूत्रों का कहना है कि पुलिस केंद्रों में युवकों को वाहन चेक पोस्ट ड्यूटी, आव्रजन से संबंधित कार्यों और सीमांत शासन के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कथित तौर पर दूरगामी योजना के अनुसार समूची सीमा पर बनाए गए आदर्श प्रारूप वाले ‘ज़ियाओकांग’ गांवों में कानून व्यवस्था की बहाली के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा.
2013 में उन्हें (शी जिनपिंग को) यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि, ‘सारे देश को अच्छी तरह से संचालित करने के लिए हमें पहले सीमाओं पर अच्छी तरह से शासन करना चाहिए, और सीमाओं पर अच्छी तरह से शासन करने के लिए हमें पहले तिब्बत में स्थिरता सुनिश्चित करनी चाहिए.’
इसके अलावा खुफिया जानकारी के अनुसार पीएलए द्वारा प्रशिक्षित युवाओं को जरूरत पड़ने पर नियमित चीनी सेना इकाइयों के लिए अतिरिक्त सैन्य बल (रीइन्फोर्स्मन्ट) के रूप में तैनात किया जा सकता है.
खुफिया सूत्रों का कहना है कि कुछ रंगरूटों को पीएलए द्वारा एलएसी पर स्थित सीमावर्ती निवासियों पर नजर रखने- खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के उद्देश्य के लिए भी प्रशिक्षित किया जा रहा है और उन्हें सीमा स्थित बाजारों और ज़ियाओकांग गांवों में ड्यूटी हेतु लगाया सकता है.
इस साल अप्रैल में यह भी बताया गया था कि चीन ने तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र में एक विशेष तिब्बती सेना इकाई बनाने की योजना के साथ रंगरूटों की भर्ती का अभियान तेज कर दिया है.
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‘नजर रखना जरूरी है’
एक खुफिया सूत्र ने कहा कि वॉलंटियर मिलिशिया की भर्ती का भारत के ऊपर कोई बड़ा प्रभाव पड़ता नहीं दिखता है. हालांकि, सूत्र ने आगाह किया कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दोनों पक्षों की आबादी के बीच संबंध, यदि कोई हो तो, का किसी भी तरह से गलत लाभ नहीं उठाया जा सके.
जब दिप्रिंट ने इस बारे में टिप्पणी के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल एस.एल. नरसिम्हन (सेवानिवृत्त) से सम्पर्क किया तो उन्होंने हमें बताया कि इस क्षेत्र का सीमावर्ती इलाका ऐसा है कि किसी भी व्यक्ति के लिए किसी भी तरह की खुफिया जानकारी जुटाना निहायत ही मुश्किल काम होगा.
उनका कहना है कि ‘सबसे पहली बात यह है कि सीमावर्ती क्षेत्र काफी अच्छी तरह से हमारे सैनिकों के कब्जे में हैं इसलिए किसी के लिए भी हमारे इलाके में में आना और अहम जानकारी तक पहुंच बनाना आसान नहीं है. कुछ क्षेत्रों में, जहां हमारे सैनिक एलएसी तक नहीं पहुंच सकते हैं, इलाके इतने ऊबड़-खाबड़ हैं कि यह किसी भी तरह की खुफिया जानकारी को इकठ्ठा करने में मदद नहीं करेगा.’
लेफ्टिनेंट जनरल नरसिम्हन ने आगे कहा कि फ़िलहाल हमारे लिए इंतजार करना और नजर रखना ही समझदारी होगी, लेकिन उनका मानना था कि इस कदम के कोई बड़े परिणाम नहीं होने वाले हैं.
उन्होंने बताया कि ‘तिब्बत के साथ 1954 के व्यापार समझौते में यह स्पष्ट उल्लेख किया गया था कि तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र चीन का एक हिस्सा है. इसलिए, यदि चीन इस क्षेत्र में तिब्बती युवाओं की भर्ती कर रहा है, तो यह उसका निर्णय है. हमें एलएसी पर लगातार नजर रखनी होगी.‘
अपनी संस्कृति और परंपराओं पर चीनी सरकार द्वारा कथित दौर पर किये जा रहे आघात के बीच बीते कई दशकों में बहुत सारे तिब्बती भारत भाग आये हैं, वर्तमन में उनकी निर्वासित सरकार भी धर्मशाला से काम कर रही है.
हजारों तिब्बती शरणार्थी, जो अब भारत को अपना घर कहते हैं, अब एक विशेष रक्षा इकाई – जिसे स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एस.एस.एफ.) के रूप में जाना जाता है, में शामिल हैं जिसने पिछले साल एलएसी पर भारतीय सेना द्वारा किए गए कई अभियानों में भाग लिया था.
एस.एस.एफ. का गठन चीन के साथ 1962 के युद्ध – जिसमें भारत को हार का सामना करना पड़ा था – के तुरंत बाद किया गया था.
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