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Friday, 29 November, 2024
होमडिफेंस‘औपनिवेशिक प्रथा का अंत’, खत्म की जाएगी देश की 62 सैन्य छावनियां, हिमाचल का योल सबसे आगे

‘औपनिवेशिक प्रथा का अंत’, खत्म की जाएगी देश की 62 सैन्य छावनियां, हिमाचल का योल सबसे आगे

छावनियों के भीतर सैन्य क्षेत्र को अब एक सैन्य स्टेशन में बदल दिया जाएगा, जबकि नागरिक क्षेत्रों को नगरपालिका में मिला दिया जाएगा. भारत में कुल 62 सैन्य छावनियां हैं.

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नई दिल्ली: देश की बासठ छावनियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और सभी फौजी क्षेत्रों को एक सैन्य स्टेशन के रूप में बदल दिया जाएगा. जबकि नागरिक क्षेत्र स्थानीय नगर पालिकाओं के तहत आ जाएंगे. इसकी जानकारी दिप्रिंट को मिली है.

रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले का योल छावनी का टैग छोड़ने वाला पहला छावनी बनेगा.

छावनी के भीतर सैन्य क्षेत्र को एक सैन्य स्टेशन में बदल दिया जाएगा जबकि नागरिक क्षेत्र को नगरपालिका में मिला दिया जाएगा. सूत्रों ने कहा कि छावनी बोर्ड के कर्मचारियों और संपत्ति को पड़ोसी नगर पालिकाओं द्वारा ले लिया जाएगा.

उन्होंने कहा, “यह ‘छावनियां बनाने की पुरातन औपनिवेशिक प्रथा’ में एक बड़ा बदलाव होगा.”

यह पूछे जाने पर कि यह कैसे फायदेमंद है, सूत्रों ने कहा कि धारणा के विपरीत यह कदम सभी के लिए समान रूप से फायदेमंद साबित होगा.

सूत्रों ने कहा, ‘नागरिक जो अब तक, नगरपालिका के माध्यम से राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंच नहीं बना रहे थे, अब उनका लाभ उठाने की स्थिति में होंगे. जहां तक सेना का संबंध है, वह भी अब सैन्य स्टेशन के विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकती है.’

सूत्रों ने कहा कि योल के बाद राजस्थान का नसीराबाद छावनी इस कतार में है.

यह पूछे जाने पर कि इसमें कितना समय लगेगा, उन्होंने कहा कि जिन छावनियों का सीमांकन आसान है, उन्हें जल्दी किया जाएगा जबकि अन्य को करने में समय लगेगा.

आजादी के समय देश में 56 छावनियां थीं और 1947 के बाद 6 और अधिसूचित की गईं. 1962 में आखिरी छावनी अजमेर में बनाई गई थी.

रक्षा सम्पदा कार्यालयों द्वारा रखे गए रिकॉर्ड के अनुसार, रक्षा मंत्रालय देश में सबसे बड़ा भूस्वामी है, जिसके पास लगभग 17.99 लाख एकड़ जमीन है.

इसमें से लगभग 1.61 लाख एकड़ 62 अधिसूचित छावनियों के भीतर है. शेष भूमि, लगभग 16.38 लाख एकड़, देश भर में और छावनियों के बाहर फैली हुई है.

छावनियों से संबंधित मामले, जिनमें नए भवनों का निर्माण, भवन की ऊंचाई, वाणिज्यिक रूपांतरण, सीवेज और बाकी सभी शामिल हैं, छावनी बोर्ड द्वारा नियंत्रित किए जाते थे.

सूत्रों ने कहा कि अंबाला और आगरा में पहले ही छावनियां हो चुकी हैं, जबकि धर्मशाला, सीतापुर जैसी छावनियों को 1947 से पहले डी-नोटिफाई कर दिया गया था.

उन्होंने बताया, ‘छावनियों को नगर पालिका माना जाता है और नगर पालिकाओं को चलाना राज्य का विषय है. छावनियों में रहने वाले निवासियों को राज्य कल्याणकारी योजनाओं से लाभ नहीं मिलता है क्योंकि छावनियों को रक्षा मंत्रालय के रक्षा संपदा विभाग के माध्यम से छावनी बोर्डों द्वारा शासित किया जाता है.’

उन्होंने कहा कि इसलिए निवासी नागरिकों और छावनियों को हटाने के लिए राज्यों की एक पुरानी मांग है. 

सूत्रों ने कहा कि रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा छावनियों के नागरिक क्षेत्रों के विकास पर खर्च किया जाता है.

उन्होंने कहा, ‘छावनियों के नागरिक क्षेत्रों के लगातार बढ़ते विस्तार के कारण भी A1 रक्षा भूमि पर दबाव है. छावनियां औपनिवेशिक सोच है और सैन्य स्टेशनों को बेहतर तरीके से प्रशासित किया जाता है.’

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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