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Sunday, 22 December, 2024
होमडिफेंसचीन से गतिरोध बने रहने के बीच सेना ने LAC की निगरानी के लिए भारत में निर्मित और अधिक ड्रोन्स ऑर्डर किए

चीन से गतिरोध बने रहने के बीच सेना ने LAC की निगरानी के लिए भारत में निर्मित और अधिक ड्रोन्स ऑर्डर किए

पिछले साल मुम्बई स्थित फर्म आईडियाफोर्ज के स्विच 1.0 ने विदेशी और भारतीय बोलीकर्त्ताओं को पछाड़ते हुए अनुबंध प्राप्त कर लिया था. उसका उन्नत वर्जन लद्दाख़ में फोर्स मल्टीप्लायर टेक्नॉलजी के तौर पर काम करेगा.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर नज़र रखने के लिए, पिछले साल ख़रीदे गए देश में निर्मित, अधिक ऊंचाई पर काम करने वाले सामरिक ड्रोन्स के प्रदर्शन से उत्साहित होकर, सेना ने उनके उन्नत वर्जन के लिए निर्माता कंपनी को एक ताज़ा ऑर्डर दिया है.

रक्षा व सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने बताया कि हाल ही में आइडियाफोर्ज के साथ, सेना के विशेष बलों तथा इन्फेंट्री में इस्तेमाल किए जा रहे स्विच सामरिक ड्रोन्स के उन्नत वर्जन के लिए- जिसमें ज़्यादा टिकाव और अतिरिक्त तकनीकी विशेषताएं होंगी, एक ताज़ा अनुबंध पर दस्तख़त किए गए.

सूत्रों ने कहा कि खुफिया जानकारी, निगरानी, और टोह लेने के लिए (आईएसआर) ड्रोन्स के सेट की डिलीवरी पूरी की जा चुकी है, जिसके लिए मुम्बई स्थित कंपनी को पिछले साल जनवरी में ऑर्डर दिया गया था और उसे लद्दाख़ में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है, जहां भारत और चीन मई 2020 से, एक सैन्य गतिरोध में उलझे हुए हैं.

उन्होंने इसे एक ‘फोर्स मल्टीप्लायर टेक्नॉलजी’ बताया, कहा कि हर एक प्वॉइंट पर गश्त लगाने के लिए, सैनिकों के कड़कड़ाती ठंड में शारीरिक रूप से बाहर रहने की बजाय, ड्रोन्स की मदद से उन जगहों पर नज़र रखी जाएगी.

सामरिक ड्रोन्स के अलावा, सेना ने पूरी एलएसी पर निगरानी बढ़ा दी है, जिसके लिए वहां बड़े मानव रहित विमान (यूएवीज़) लगाए गए हैं, जैसे कि नियमित इज़राइली हेरोन और चार उन्नत हेरोन 2, जो पिछले साल ख़रीदे गए थे.

भारतीय सेना सेटेलाइट्स के ज़रिए निगरानी का काम कर रही है, और भारतीय नौसेना के पी8आई जैसे विशेष विमानों का इस्तेमाल कर रही है.


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‘स्विच की वर्ग-अग्रणी क्षमताओं का साक्षी’

लेकिन पिछले साल ऐसा पहली बार हुआ था कि सेना ने निगरानी के लिए विशेष स्वदेशी ड्रोन्स की ख़रीद की थी.

पिछले साल ये कॉन्ट्रेक्ट मुम्बई स्थित कंपनी आइडियाफोर्ज को मिला था, जिसके लिए उसे टाटा समूह, डाइनामैटिक टेक्नॉलजीज़ लिमिटेड और वीटोल एविएशन के अलावा, इज़राइल की शीर्ष यूएवी निर्माता एल्बिट से भी टक्कर लेनी पड़ी थी.

सूत्रों ने नए अनुबंध के मूल्य या ऑर्डर किए गए ड्रोन्स की संख्या को लेकर चुप्पी साधे रखी. 2021 के अनुबंध का मूल्य क़रीब 2 करोड़ डॉलर (लगभग 140 करोड़ रुपए) आंका गया था, और किसी भी भारतीय कंपनी को मिलने वाला, ऊंचे मूल्य के ड्रोन्स का वो पहला अनुबंध था.

संपर्क करने पर, आइडियाफोर्ज के सीईओ अंकित मेहता ने नए ऑर्डर की पुष्टि की और कहा कि ये स्विच 1.0 की वर्ग-अग्रणी क्षमताओं का सबूत है, जिसका मुज़ाहिरा न सिर्फ विश्व के दर्जन भर प्रतिस्पर्धियों के सामने उत्पाद परीक्षण के दौरान, बल्कि परिचालन वातावरण में भी देखने को मिला’.

डिलीवरी शेड्यूल के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अतिरिक्त ऑर्डर भी निर्धारित समय सीमा के भीतर ही होगा.

उन्होंने कहा, ‘हमारे देश की सेवा करने और भारतीय क्षेत्र की संप्रभुता बनाए रखने में, स्विच यूएवीज़ द्वारा पैदा किए गए प्रभाव से हम सब रोमांचित हैं’.

नवंबर में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्विच यूएवीज़ को औपचारिक रूप से भारतीय सेना के हवाले किया था.

लंबी दूरी के लक्ष्य की पकड़, HD ऑप्टिकल ज़ूम पेलोड

जैसा कि दिप्रिंट ने ख़बर दी थी, मानव-चालित पोर्टेबल स्विच का वज़न 6.5 किग्रा. होता है, और ये हेलिकॉप्टर की तरह खड़े-खड़े उड़ान भरने में सक्षम होता है, और अधिक ऊंचाइयों पर भी कम तापमान, तेज़ हवाओं तथा हवा के कम घनत्व के बीच दो घंटे तक उड़ान में बने रह सकता है.

इस ड्रोन को एक सैनिक की पीठ पर लादकर तैनात किया जा सकता है. ये 15 किलोमीटर की दूरी तक निगरानी करने में सक्षम होता है, इसे 4,000 मीटर की ऊंचाई से लॉन्च किया जा सकता है और 10.8 नॉट्स या 20 किमी प्रति घंटे के हवा प्रतिरोध के साथ, ये अधिकतम 1,000 मीटर की ऊंचाई पर काम कर सकता है.

सेना द्वारा ऑर्डर किए गए नए ड्रोन्स एक उन्नत वर्जन हैं, जिनका विस्तारित टिकाव होता है और जो हर टेक-ऑफ पॉइंट से 700 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र कवर करते हैं. इनका संचार भी कूट रूप में होता है, ये लंबी दूरी का लक्ष्य पकड़ सकते हैं, और एचडी ऑप्टिकल ज़ूम पेलोड से लैस होते हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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