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Saturday, 2 November, 2024
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वायुसेना पट्टे पर लेना चाहती है मिड-एयर रिफ्यूलर, एयरबस, बोइंग से प्रस्ताव मांगे

भारत के रिफ्यूलर बेड़े में मौजूदा समय में छह रूसी इल्यूसिन-78 टैंकर शामिल हैं, जिन्हें पहली बार 2003 में शामिल किया गया था और अब रखरखाव और सर्विसिंग क्षमता में समस्याओं का सामना कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना (आईएएफ) ने भारत में उड़ान के दौरान विमानों में ईंधन भरने की क्षमता में खासी कमी को देखते हुए कम से कम दो टैंकरों को पट्टे पर लेने के उद्देश्य से अमेरिका की विमानन कंपनी बोइंग और यूरोपीय एयरोस्पेस की दिग्गज एयरबस से फाइनेंशियल कोट संबंधी प्रस्ताव मांगे हैं.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि वायुसेना ने एयरबस से दो मिड-एयर रिफ्यूएलर्स के लिए लीजिंग कोट्स मांगे हैं जबकि बोइंग से केवल एक के लिए कोटेशन मांगा गया है.

इससे यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि भारत तीन टैंकरों को पट्टे पर ले सकता है और इनके उपयोग के अनुभव के आधार पर छह रिफ्यूलर का एक बड़ा ऑर्डर दिया जा सकता है.

सूत्रों ने कहा कि वायुसेना दोनों कंपनियों के साथ बातचीत कर रही है और इस संबंध में जल्द ही कोई निर्णय लिया जाएगा.

सूत्रों ने आगे बताया कि एयरबस के ट्विन इंजन ए330 पैसेंजर एयरक्राफ्ट के डेरिवेटिव ए330 मल्टी-रोल टैंकर ट्रांसपोर्ट (एमआरटीटी) एयरक्राफ्ट और बोइंग 767 पैसेंजर जेट के डेरिवेटिव केसी-46 टैंकर पर विचार किया जा रहा है.

पहले माना जा रहा था कि वायुसेना ने एयरबस टैंकर के लिए अपना मन बना लिया है और बोइंग इसके विकल्पों में शामिल नहीं है.

यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी तो पिछले साल नवंबर के बाद से भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा यह रक्षा उपकरणों को पट्टे पर लेने का यह दूसरा बड़ा मौका होगा. तब नौसेना ने अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक से दो सी गार्जियन ड्रोन पट्टे पर लिए थे जो कि घातक प्रीडेटर सीरिज के निशस्त्र वर्जन हैं.

रक्षा उपकरणों को पट्टे पर लेना एक नया विकल्प है जिसे 2020 की रक्षा खरीद प्रक्रिया में शामिल किया गया है.


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‘अभूतपूर्व रेंज बढ़ाने वाली क्षमता’

भारत के रिफ्यूलर बेड़े में मौजूदा समय में छह रूसी इल्यूसिन-78 टैंकर शामिल हैं, जिन्हें पहली बार 2003 में शामिल किया गया था और अब रखरखाव और सर्विसिंग क्षमता में समस्याओं का सामना कर रहे हैं.

मिड-एयर रिफ्यूएलर्स की अहमियत समझाते हुए सूत्रों ने कहा कि टैंकर किसी भी आधुनिक वायु सेना के लिए बहुत जरूरी हैं क्योंकि वे लड़ाकू विमानों को अभूतपूर्व रेंज-बढ़ाने की क्षमता प्रदान करते हैं.

मिड-एयर रिफ्यूएलर्स के साथ पायलट लंबी दूरी तक हमले कर सकते हैं और बार-बार जमीन पर उतरने और ईंधन भरने की आवश्यकता के बिना लंबे समय तक उड़ान भर सकते हैं.

एक सूत्र ने कहा, ‘राफेल विमान में लंबी दूरी की क्षमता है क्योंकि उसमें बीच हवा में फिर से ईंधन भरा जा सकता है. हम अब तेजस एमके-1ए की तरफ रुख कर रहे हैं जो चार प्रमुख सुधारों के साथ आया है जिसमें हवा में ईंधन भरना भी शामिल है. लेकिन हमारे पास हवा में ईंधन भरने की क्षमता ही नहीं होगी तो इतनी बड़ी संख्या में ऐसे विमानों को शामिल करने का क्या मतलब रह जाएगा.’

भारतीय वायुसेना 2007 से ही छह मिड-एयर रिफ्यूएलर हासिल करने की कोशिश कर रही है लेकिन कई वजहों से इसमें सफलता नहीं मिल पाई है.

भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आर.के. भदौरिया ने पिछले साल अक्टूबर में अपनी वार्षिक प्रेस कांफ्रेस में कहा था कि आईएएफ रिफ्यूएलर पट्टे पर ले सकती है क्योंकि टैंकरों की खरीद की योजना सालों बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है.

राफेल विमानों की पहली खेप पिछले साल जुलाई में फ्रांसीसी वायु सेना के दो ए330 एमआरटीटी के साथ उड़ान भरकर भारत पहुंची थी, जिन्होंने उसमें हवा में ईंधन भरने की सुविधा दी थी क्योंकि ये विमान फ्रांस के मेरिग्नैक से 8,500 किलोमीटर की दूरी तय करके यहां आए थे.

फ्रांस ने गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट बेसिस पर सौदे के लिए भारत को छह ए330 एमआरटीटी विमानों की पेशकश करते हुए एक प्रस्ताव भेजा है.


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