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Sunday, 3 November, 2024
होमडिफेंसगलवान के एक साल बाद भी लद्दाख में मिसाइल्स, रडार्स और लड़ाकू विमानों के साथ युद्ध के लिए तैयार है IAF

गलवान के एक साल बाद भी लद्दाख में मिसाइल्स, रडार्स और लड़ाकू विमानों के साथ युद्ध के लिए तैयार है IAF

एक साल हो गया है और भारतीय वायुसेना अभी भी चीन के खिलाफ सक्रिय रूप से तैनात है. लड़ाकू विमान नए रडार्स, और ज़मीन से हवा में मार करने वाले मिसाइलों के साथ, एलएसी के क़रीब अग्रिम स्थलों पर अभी भी डटे हुए हैं.

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नई दिल्ली: लद्दाख़ में पिछले साल भारत-चीन गतिरोध शुरू होने के कुछ हफ्ते बाद, दोनों पक्षों के सैनिक गलवान घाटी में आमने सामने डटे थे, क्योंकि चीनियों के अपनी ओर से, समझौते पर बने रहने से इनकार से, पीछे हटने का प्रयास पटरी से उतर गया था. बीस भारतीय सैनिक, जिनमें कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी संतोष बाबू भी शामिल थे, कार्रवाई में मारे गए.

1975 के बाद पहली बार था, कि भारत-चीन सीमा पर सैनिक मारे गए थे, और इस टकराव से गतिरोध की नेचर में, एक स्पष्ट बदलाव आ गया था. यही वो समय था जब भारतीय वायुसेना (आईएएफ), जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर काफी बढ़त हासिल है, इस इलाक़े में लड़ाई के लिए, सक्रिय रूप से तैनात की गई थी.

उससे पहले के हफ्तों में आईएएफ, सेना के जवानों और उपकरणों की तैनाती में सहायता कर रही थी, जिनमें टैंकों और कर्मियों के बख़्तरबंद वाहनों के अलावा, लद्दाख़ में तैनात अतिरिक्त सैनिकों के लिए, सर्दियों का सामान भी शामिल था.

एक साल हो गया है, और भारतीय वायुसेना अभी भी, चीन के खिलाफ सक्रिय रूप से तैनात है. लड़ाकू विमान नए रडार्स, और ज़मीन से हवा में मार करने वाले मिसाइलों के साथ, एलएसी के क़रीब अग्रिम स्थलों पर अभी भी डटे हुए हैं.

एक वरिष्ठ सरकारी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘आईएएफ, जिसे गलवान झड़प के बाद पूरी तरह तैनात कर दिया गया था, अभी भी सक्रिय रूप से वहां बनी हुई है’.

रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने बताया, कि लद्दाख़ में इसकी भूमिका में बदलाव आने के बाद, चीन के ‘एंटी-एक्सेस एरिया डिनायल (ए2एडी)’ की तोड़ के लिए, आईएएफ ने वहां पर पूरी तरह आक्रामक, और रक्षात्मक तैनाती कर दी थी.

सूत्रों ने बताया कि इस रणनीति में, युद्ध क्षेत्र में दुश्मन की हरकत करने की आज़ादी बाधित हो जाती है, और देखा गया कि चीन ने व्यापक रेंज के ज़मीन से हवा में मार करने वाले मिसाइल्स (सैम) स्थल, और लंबी दूरी के रडार्स के अलावा, बड़ी संख्या में सैनिक, तोपें, रॉकेट फोर्सेज़, और बख़्तरबंद उपकरण तैनात कर दिए थे.

इसके जवाब में, आईएएफ ने चीन के खिलाफ, कई कमांड्स की संपत्तियां तैनात कर दीं. थल सेना और नौसेना के विपरीत, वायुसेना में संपत्तियों की तैनाती केंद्रीय नियंत्रण में होती है. ज़रूरत के समय, आईएएफ मुख्यालय तय करता है, कि संपत्तियों को कहां तैनात करना है.

तैनात की गई संपत्तियों में, एएन32, सी-130जे, और सी-17 जैसे परिवहन विमानों से लेकर, राफेल जैसे लड़ाकू विमान, और अपाचे व चिनूक जैसे हेलिकॉप्टर्स शामिल हैं. सूत्रों ने बताया कि इस तैनाती में, ज़मीन से हवा में मार करने वाले मिसाइल्स, रडार्स, और बढ़ी हुई निगरानी ड्यूटी शामिल हैं.

सूत्रों ने कहा कि आईएएप के ज़मीनी स्टाफ और विशेषज्ञों के लिए, ये पहला मौक़ा था जब उनकी तैनाती, एलएसी के पास अत्यंत ऊंचे क्षेत्रों में की गई थी, जो टकराव की जगह के क़रीब थे.

रक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र ने कहा, ‘15 जून के गलवान संघर्ष ने सब कुछ बदल दिया. मौतों का मतलब था, कि इस बात की पूरी संभावना थी, कि शुरू में जो पूर्वानुमान था, चीज़ें उससे बहुत अलग दिशा में जा सकती थीं’.

‘आईएएफ को एलएसी के पास काफी बढ़त हासिल है, और ये फैसला लिया गया, कि फोर्स की लड़ाई के लिए सक्रिय तैनाती कर दी जाए’.

गलवान के बाद चीनी कार्रवाइयां

जहां चीन को वायु रक्षा प्रणालियों के मामले में, भारत के ऊपर बढ़त हासिल है, वहीं विशुद्ध हवा से हवा में लड़ाई के नज़रिए से, लद्दाख़ के ऊंचे इलाक़ों में, भारत चीन से आगे है.

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (प्लाफ) को सबसे बड़ा नुक़सान ये है, कि तिब्बत क्षेत्र में उनके तमाम ठिकाने एलएसी से बहुत दूर हैं, और भारतीय ठिकानों की अपेक्षा, बहुत अधिक ऊंचाई पर हैं.

और अधिक ऊंचाई की वजह से, लड़ाकू विमान पूरे ईंधन या हथियारों के पैकेज के साथ, उड़ान नहीं भर सकते. बुनियादी तौर पर इसका मतलब ये है, कि अधिक ऊंचाई लड़ाकू विमानों की ऊर्जा को सेख लेती है.

चीन जुलाई में वहां ‘पांचवीं पीढ़ी’ के, अपने पांच चेंगडु जे-20 विमान ले आया, जिन्हें माइटी ड्रैगन भी कहा जाता है. इसके कुछ दिन बाद ही उसी महीने, भारत को राफेल लड़ाकू विमानों का, अपना पहला सेट मिला था.

ये फाइटर्स इस साल मार्च तक वहां तैनात रहे. सूत्रों का कहना था कि भारत में राफेल विमान लिए जाने से पहले, चीन अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहा था.

एक सूत्र ने कहा, ‘चीन ने नई सैम साइट्स स्थापित कर दीं थीं, जिनमें मुख्य रूप से एचक्यू 9, 22 और 16 (सैम के प्रकार) शामिल थे. चीनियों ने रूसी सिस्टम्स भी तैनात कर दिए थे’.

सूत्र ने आगे कहा, ‘रक्षा के मामले में चीन की व्यापक सोच ए2एडी है, जिसका मतलब होता है एंटी एक्सेस एरिया डिनायल. वो साउथ चाइना सी में भी यही करते हैं. वो पहले पहुंच को रोकते हैं, और फिर क्षेत्र से ही इनकार कर देते हैं’.


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एंटी-एक्सेस में दुश्मन सेना की गतिविधियों को, लड़ाई के एक क्षेत्र तक सीमित कर दिया जाता है, और इसमें लड़ाकू विमान, युद्धपोत, और विशिष्ट बैलिस्टिक व क्रूज़ मिसाइल्स का इस्तेमाल किया जाता है, जो मुख्य लक्ष्यों पर निशाना साधने के लिए बने होते हैं. एरिया डिनायल में, दुश्मन को अनुकूल नियंत्रण वाले क्षेत्रों में, कार्रवाई की आज़ादी से रोका जाता है, और इसमें हवाई और समुद्री रक्षा प्रणालियों जैसे, ज़्यादा रक्षात्मक साधनों का इस्तेमाल किया जाता है.

सूत्र ने कहा, ‘उनकी पूरी तैनाती इसी धारणा पर आधारित है, और उन्होंने लद्दाख में भी यही करने की कोशिश की. इसलिए, ज़रूरी था कि चीनी आक्रमण का एक संयुक्त जवाब दिया जाए, और यही किया गया’.

कुछ घंटों में हो गई IAF तैनाती

ऐसा माना जाता है कि वायुसेना ने, 2019 के मध्य में एक ताज़ा योजना तैयार की थी, कि यदि एलएसी पर तनाव बढ़ जाता है, तो ऐसे में क्या करने की ज़रूरत है.

गलवान के बाद, सरकार के फैसला लेने के कुछ घंटों के भीतर, अलग अलग जगहों से उड़ानें भरकर लड़ाकू विमान, लद्दाख़ के निकट स्थित हवाई अड्डों पर, अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए पहुंच गए. इनमें हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, और लद्दाख़ के ठिकाने शामिल हैं.

मसलन, मिराज 2000 जो ग्वालियर से संचालित होते हैं, लद्दाख़ के नज़दीकी ठिकानों पर पहुंच गए. हालांकि आईएएफ के पास हवा में ईंधन भरने की क्षमता है, लेकिन लद्दाख़ के क़रीब होने का मक़सद, ये सुनिश्चित करना था, कि ज़रूरत पड़ने पर फाइटर्स, मिनटों के अंदर उस जगह पहुंच जाएं.

जिस समय एलएसी के पास ग्राउंड सपोर्ट स्टाफ, और उपकरण तैनात किए जा रहे थे, उसी समय आईएएफ ने आक्रामक कॉम्बेट एयर पेट्रोल्स (सीएपीज़) शुरू कर दिए.

सेटेलाइट तस्वीरों के आधार पर, चीनी गतिविधियों और तैनातियों पर नज़र रखने के लिए, आईएएफ ने व्यापक रूप से अपने मानव-रहित विमान भी तैनात कर दिए.

IAF ने अंतराल को कैसे भरा

सूत्रों ने कहा कि जब ये तनाव शुरू हुआ, तब ये अहसास किया गया, कि ख़ासकर ग्राउंड एयर डिफेंस संपत्तियों के मामले में, कुछ गैप्स मौजूद थे. इससे निपटने के लिए, भारत ने अपनी सैम संपत्तियों को, इस इलाक़े में तैनात करना शुरू कर दिया.


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संख्या पर बात करने से इनकार करते हुए, एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘हमारे पास एलएसी के पास बहुत अधिक रडार्स नहीं थे. एलएसी के उस पार चीनियों के पास अधिक समतल क्षेत्र है, और इसलिए उनके लिए वहां आकर रडार्स और सैम स्थापित करना आसान था. कुल मिलाकर, चीनियों ने क़रीब 8-19 नई सैम साइट्स स्थापित कीं. हमने भी यही किया’.

सूत्रों ने कहा कि आईएएफ ग्राउण्ड स्टाफ ने, ख़ुद को सेना और आईटीबीपी दोनों के साथ, इस हिसाब से स्थापित किया, कि कौन सा क्षेत्र किसके पास था.

उपकरणों की तैनाती का मतलब भी यही था, कि उस क्षेत्र में आईएएफ के विशेषज्ञों को तैनात करना पड़ा. बहुत सी लोकेशंस टकराव की जगह से बहुत क़रीब थीं, ज़िसका मतलब था कि पहली बार, कुछ फॉरवर्ड लोकेशंस पर, आईएएफ के ज़मीनी स्टाफ और विशेषज्ञों की नियुक्ति की गई, और वो भी पूरी सर्दियों के लिए.

आईएएफ ने जुलाई में राफेल लड़ाकू विमानों के आने के तुरंत बाद, उनके त्वरित संचालन का काम किया. उसने राफेल की जल्द तैनाती के लिए, फांसीसी हैमर एयर टु ग्राउंड सटीक-निर्देशित हथियार प्रणाली की भी आपात ख़रीद की.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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