नई दिल्ली: गलवान घाटी में हुए घातक और खूनी भिड़ंत के एक साल बाद भी लद्दाख में चीन के साथ सैन्य गतिरोध अभी भी जारी है और कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता के अगले दौर की तारीखों की चीन द्वारा पुष्टि न किये जाने के कदम को भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान में लद्दाख के बाकी के चार फ्रिक्शन पॉइंट्स (तनाव स्थलों) पर डिसएंगेजमेंट में तेजी लाने के प्रति बीजिंग की अनिच्छा के रूप में देखा जा रहा है.
इन चार फ्रिक्शन पॉइंट्स में गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स शामिल हैं, जिस पर पहली बार 6 जून 2020 को पहली कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता के दौरान सहमति बनी थी.
पिछले साल 15 जून की झड़प के बाद से डिसएंगेजमेंट के जो कदम उठायें गए हैं उनमें पिछले साल गलवान घाटी में पूरा हुआ डिसएंगेजमेंट और इस साल की शुरुआत में पैंगोंग त्सो में हुआ डिसेन्गेज्मन्ट शामिल हैं.
9 अप्रैल को दोनों देशों के बीच हुई पिछली कोर कमांडर-स्तरीय बैठक गतिरोध के साथ समाप्त हो गई थी, जिसमें चीन इन सभी फ्रिक्शन पॉइंट्स- जिनमें देपसांग प्लेन्स और देमचोक भी शामिल हैं- पर से डिसएंगेजमेंट के बजाय पहले डिएस्कलेशन ही चाहता था.
रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि 9 अप्रैल से किसी तरह की सीधी बैठक नहीं होने के बावजूद सेना के स्थानीय कमांडर अपने चीनी समकक्षों के साथ हॉटलाइन पर संपर्क में हैं ताकि जमीन पर तनाव को और अधिक बढ़ने से रोका जा सके.
उन्होंने यह भी कहा कि तनाव के समाधान के लिए कोर कमांडर स्तर पर या उसके फॉलो-अप के लिए डिवीजनल अथवा ब्रिगेड स्तर पर भी, किसी तरह की शारीरिक उपस्थिति वाली बैठक 1 जुलाई – जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 100 साल पूरे होने का दिन होगा- से पहले होने की कोई उम्मीद नहीं है.
रक्षा सूत्रों ने आगे कहा कि चीन ने पिछली कोर कमांडर-स्तरीय बैठक के दौरान ही उल्लेख किया था कि गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स में डिसएंगेजमेंट पर आगे की बातचीत, जिस पर पिछले साल जून में ही सहमति हो गई थी, एक मेजर जनरल रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में मंडलीय (डिविजनल) स्तर पर हो सकती है.
दिप्रिंट ने 1 मई को यह भी बताया था कि कोर कमांडर स्तर की वार्ता के अगले दौर में देरी होगी और इसमें पहले की तुलना में अधिक समय लग सकता है.
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प्रोटोकॉल से हट के थी कोर कमांडर स्तर की वार्ता
चीन के साथ कोर कमांडर स्तर की हो रही वार्ता अपने आप में ‘अभूतपूर्व’ थी, क्योंकि पिछले साल तक एलएसी पर तनाव को हल करने के लिए स्थापित प्रोटोकॉल के तहत यह वार्ता स्थानीय टैक्टिकल कमांडरों के माध्यम से होती थी. हाल के तनावों से पहले उच्चतम स्तर की वार्ता में डिवीजनल कमांडर, जो मेजर जनरल रैंक के अधिकारी होते हैं, ही शामिल रहे हैं.
कोर कमांडर स्तर की पहली वार्ता 6 जून 2020 को हुई थी और यह पिछले साल मई की शुरुआत में एलएसी पर तनाव का समाधान खोजने के लिए मेजर जनरल और अन्य स्तरों पर हुई बातचीत के विफल रहने के बाद ही शुरू हुई थी.
उसके बाद से, मेजर जनरल, ब्रिगेडियर और कर्नल स्तर की बातचीत भी व्यक्तिगत रूप से या हॉटलाइन पर, कोर कमांडर स्तर की बैठकों के फॉलो-अप के रूप में आयोजित की गई है.
उदाहरण के लिए, गलवान संघर्ष के तुरंत बाद कई बार मेजर जनरल स्तर की वार्ता हुई ताकि माहौल को शांत किया जा सके और 10 भारतीय सैनिकों – जिन्हें पिछले साल जून में चीनियों ने बंदी बना लिया था- की रिहाई के लिए जरूरी इंतजाम किया जा सके.
बाद में मेजर जनरल स्तर की वार्ता भी हुई और इसके अलावा फॉलो-अप के रूप में ब्रिगेडियर स्तर पर भी बातचीत हुई.
पैंगोंग त्सो के दक्षिणी और उत्तरी तटों में डिसएंगेजमेंट की निगरानी के लिए दोनों पक्षों के ब्रिगेडियर इस साल की शुरुआत में मिले थे.
‘देरी करना चीन की रणनीति का हिस्सा’
दिप्रिंट से बात करने वाले सूत्रों ने हमें बताया कि चीन जो कुछ भी कर रहा है वह सिर्फ डिसएंगेजमेंट की प्रक्रिया में देरी करने के लिए ही है और इसका दौर बहुत लम्बा चलने वाला है.
एक दूसरे सूत्र ने कहा कि ‘यह एक बड़े गेम प्लान का हिस्सा लगता है. इसके पीछे बातचीत में देरी करना, रक्षा उपायों का निर्माण और उनमें सुधार करते हुए और धीरे-धीरे सैन्य जमावड़े को बढ़ाने का इरादा है. ऐसा लगता है कि वे (चीनी) उसी या फिर किसी अलग सेक्टर में अपने लिए अवसर पैदा करना चाह रहे है.’ उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि चीनी काफी धीमी गति से कदम उठा रहे हैं.
सूत्रों ने आगे कहा कि कूटनीतिक सहित कई स्तरों पर बातचीत होती रहती है, लेकिन कोई भी निर्णय केवल उच्च स्तर पर ही लिए जा सकते हैं क्योंकि यह मामला पहले ही काफी आगे बढ़ चुका है.
अपनी बात में जोड़ते हुए सूत्रों ने बताया कि ‘गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स में डिसएंगेजमेंट पर पहले-पहल 6 जून 2020 को कोर कमांडर-स्तर की वार्ता में और फिर आगे के दौरों के दौरान सहमति व्यक्त की गई थी. इसलिए, मेजर जनरल रैंक के अधिकारी, अगर मिलते हैं तो भी उसी बातचीत को आगे बढ़ाएंगे. हालांकि, देपसांग और डेमचोक का मुद्दा एक समस्या का कारण बना हुआ है.‘
एक अन्य सूत्र ने कहा कि ‘बातचीत अभी जारी रहेगी और ऐसा लगता है कि चीन को इन मुद्दों को सुलझाने की अभी कोई जल्दी नहीं है. इसका मतलब यह है कि किसी तरह के समाधान की खोज एक बहुत लंबी प्रक्रिया होने वाली है.’
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