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गुरूवार, 24 अप्रैल, 2025
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वीपी सिंह भारतीय राजनीतिक इतिहास के ट्रेजेडी किंग क्यों हैं

मंडल कमीशन की वजह से सवर्णों का बड़ा हिस्सा वीपी सिंह से हमेशा के लिए नाराज हो गया. लेकिन पहेली ये है कि देश के ओबीसी ने उन्हें गर्मजोशी के साथ अपनाया क्यों नहीं?

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भारत के आठवें प्रधानमंत्री वीपी सिंह को मुख्य रूप से दो तरीके से देखा जा सकता है. एक खेमा ये कहता है कि देश की आधी आबादी यानी ओबीसी को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देकर उन्होंने देश और समाज की दिशा स्थायी रूप से बदल दी और भारत में लोकतंत्र का वंचित समूहों तक विस्तार किया. वहीं, दूसरा खेमा इसी फैसले की वजह से उन्हें विभाजनकारी व्यक्तित्व मानता है, जिन्होंने सत्ता के लालच में समाज में स्थायी दरार पैदा कर दी.

वीपी सिंह का राजनीतिक जीवन लंबा हैं और उन्होंने शीर्ष पदों पर रहते हुए ऐसे कई फैसले किए जिनकी छाप राष्ट्र जीवन में मौजूद है. लेकिन उनके कार्यों को उनके एक फैसले तक सीमित करके देखने का चलन है. ये फैसला दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग यानी मंडल कमीशन की एक सिफारिश- केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण – लागू करने से संबंधित है.

वीपी सिंह के जीवन में राजनीति काफी पहले ही आ गई थी. छात्र जीवन में रहते हुए वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के उपाध्यक्ष चुने गए और फिर विधायक से प्रधानमंत्री तक का सफर उन्होंने तय किया. इस बीच में वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर देश के वित्तमंत्री और रक्षामंत्री भी रहे. उनको उनके तीन बड़े कामों के लिए याद किया जा सकता है.

1. वीपी सिंह ने भ्रष्टाचार को पहली बार राष्ट्रीय राजनीति का मुद्दा बनाया और देश का एक आम चुनाव इसी मुद्दे पर लड़ा गया. राजीव गांधी की कैबिनेट में रहते हुए उन्होंने बोफोर्स और एचडीडब्ल्यू पनडुब्बी सौदों में रिश्वतखोरी का मामला उठाया. वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि पनडुब्बी विवाद की जांच के सिलसिले में राजीव गांधी से उनके किस तरह के मतभेद हुए थे. इस सवाल पर उन्होंने राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा लिया और मुद्दे को जनता के बीच ले गए. इस मुद्दे को केंद्र में रखकर लड़े गए 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई और कम्युनिस्टों और बीजेपी के समर्थन से वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने.


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2. उन्होंने मंडल कमीशन की रिपोर्ट की एक सिफारिश लागू करके ओबीसी को केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण दिया. ये रिपोर्ट 1980 से केंद्र सरकार के पास पड़ी थी (इसकी चर्चा पहले की जा चुकी है).

3. वीपी सिंह ने बीजेपी के बाहरी समर्थन से सरकार चलाने के बावजूद सांप्रदायिकता से कभी समझौता नहीं किया. मंडल कमीशन के जवाब में जब बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली तो वीपी सिंह की पार्टी के ही मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने रथ को बिहार में रोक दिया और आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया. इसके चंद दिनों बाद ही बीजेपी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया और वीपी सिंह सरकार 10 नवंबर, 1990 को गिर गई.

वीपी सिंह अपने शुरुआती दौर में भारतीय मध्य वर्ग और मीडिया को खूब पसंद आए. अखबार और पत्रिकाएं तो उन पर फिदा थीं. इस वजह से उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों की गूंज दूर-दूर तक सुनाई देती थी.

लेकिन, मंडल कमीशन लागू होते ही ये सब बदल गया. उस दौर के बदले माहौल को के. बालागोपाल ने इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल रिव्यू में इन शब्दों में दर्ज किया है- ‘सारे सवर्ण हिंदू चट्टान की तरह एकजुट हो गए. कट्टरपंथी से लेकर सेकुलर, मार्क्सवादी से लेकर गांधीवादी, शहरी से लेकर ग्रामीण सभी सवर्ण इस मुद्दे पर जिस तरह इकट्ठा हुए, वैसी एकता किसी और मुद्दे पर नहीं बन सकती.’

मध्य वर्ग और मीडिया का समर्थन खत्म होते ही वीपी सिंह समाज और मीडिया में विलेन के रूप में पेश किए जाने लगे. वे अपने दौर के उन नेताओं में हैं, जिनसे सबसे ज्यादा नफरत की गई और जिनका सबसे ज्यादा मजाक उड़ाया गया.

इस बदलाव को वीपी सिंह ने खुद इन लफ्जों में बयान किया था, ‘मंडल कमीशन पर फैसले से पहले मेरे किए गए हर काम महान थे, और इसके बाद के सारे काम देशविरोधी करार दिए गए…हालांकि मेरी टांग टूट गई, लेकिन मैंने गोल दाग ही दिया.’ वे बताते हैं कि ‘कुछ भी किया जाए तो उसकी एक कीमत होती है. ये नहीं होता कि आपने कुछ किया और बाद में अफसोस करने लगे. मंडल लागू किया तो उसका दाम भी देना पड़ा.’

ये बात तो समझ में आती है कि वीपी सिंह के इस कदम की वजह से सवर्णों का बड़ा हिस्सा हमेशा के लिए उनसे नाराज हो गया और उनकी ये नाराजगी वीपी सिंह के मरने के बाद भी खत्म नहीं हुई है. लेकिन पहेली ये है कि देश के ओबीसी ने उन्हें गर्मजोशी के साथ अपनाया क्यों नहीं?

इसका जवाब वीपी सिंह के राजनीतिक जीवन और उस समय की परिस्थितियों- दोनों जगहों पर है. वीपी सिंह ओबीसी के मुद्दों की वजह से इससे पहले कभी नहीं जाने गए. इस मायने में वे राममनोहर लोहिया से अलग हैं. उन्होंने ओबीसी आरक्षण का सवाल अचानक से उठाया और इसके पीछे के उनके तर्कों के बारे में लोगों को कुछ भी मालूम नहीं था.

इसके अलावा ये दौर ओबीसी राजनीति और ओबीसी नेताओं के उभार के लिए भी जाना जाता है. वीपी सिंह द्वारा मंडल कमीशन लागू किए जाने से पहले ही देश की राजनीति में मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, नीतीश कुमार जैसे नेताओं की पहचान बन चुकी थी. इसके अलावा बीएसपी तथा बीजेपी में भी कई ओबीसी नेता थे. इन नेताओं के पीछे इनकी जातियां भी थीं. इन जातियों ने अपने नेताओं को छोड़कर वीपी सिंह के पीछे जाना कबूल नहीं किया.

इसके अलावा देश में सांप्रदायिक राजनीति का भी बोलबाला था. ओबीसी का एक बड़ा हिस्सा राम मंदिर आंदोलन में शामिल था. केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण के मुकाबले उन्होंने राम मंदिर के मुद्दे को तरजीह दी. वीपी सिंह को उन्होंने राम मंदिर आंदोलन का विरोधी माना.

यानी हुआ ये कि मंडल कमीशन लागू करने के कारण वीपी सिंह ने अपने समर्थक मूल आधार यानी मिडिल क्लास को नाराज कर लिया, जिनमें ज्यादातर सवर्ण थे. लेकिन उनके पास वो लोग आए नहीं, जिन्हें मंडल कमीशन से लाभ होना था.


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इस तरह वीपी सिंह बिल्कुल अकेले पड़ गए. चुनाव दर चुनाव वे अप्रासंगिक होते चले गए. जीवन के संध्या काल में वे कविताएं लिखने लगे और पेंटिंग्स बनाने लगे. हालांकि सार्वजनिक जीवन से उन्होंने छुट्टी कभी नहीं ली. दिल्ली में झुग्गीवासियों को उजाड़े जाने के खिलाफ वे धरना-प्रदर्शनों में शामिल होते रहे. सांप्रदायिक हिंसा के सवाल पर उपवास करने के दौरान उनकी किडनी पर बुरा असर पड़ा. कैंसर उन्हें पहले से ही था.

इसी तरह एक दिन वे चल बसे. मीडिया ने उन्हें बेहद छोटी खबर में निपटा दिया. उन्होंने जो किया था, उसके लिए उन्हें मरने के बाद भी माफ नहीं किया गया. वहीं ओबीसी नेताओं को उनकी कोई जरूरत थी नहीं. सो, उन्होंने भी वीपी सिंह को याद करना छोड़ दिया.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह लेख उनका निजी विचार है.)

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4 टिप्पणी

  1. आदरणीय श्री दिलीप मंडल जी

    श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की पुण्यतिथि के अवसर पर इस लेख के लिए आभार, राजनैतिक पटल के वो ऐसे नेता जिन्होंने अपने लिये कभी समझौता नहीं किया। परवेश कुछ भी रहा हो , पर यह प्रतिक्रिया है कि वो खण्डार में खिले गुलाब की तरह रहें। आपके लेख से अब मेरी जिम्मेदारी कि उनकी सोच व विचारो की महक जरूर महके । उनके मन के शब्दों के साथ पुन आपका आभार ।

    लिफाफा

    पैगाम तुम्हारा
    और पता उनका
    दोनों के बीच
    फाड़ा मैं ही जाऊँगा

  2. पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी जो ओबसी समाज
    के लिए जो मंडल कमीशन लागू किया इसको कभी भुलाए नहीं जा सकता
    इसके प्रधानमन्त्री जी को दिल से शुक्रिया अदा करता था

    चंद्रशेखर वर्मा
    गोण्डा
    उत्तर प्रदेश

  3. वी पी सिंह जी एक महान व्यक्तित्वत, कुशलराजनेता और सच्चे समाजसेवी थे। उनके कार्यों को भुलाया नहीं जा सकता..!!

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