नई दिल्ली: रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने 22 मई को अपने एक संपादकीय में कहा कि विपक्षी गठबंधन ने सरकार बनाने के अपने निर्धारित लक्ष्य को पार कर लिया है और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगियों को बहुत पीछे छोड़ दिया है.
भारत में सात चरण के विशाल आम चुनाव के आखिरी दो चरणों में सहारा ने भविष्यवाणी की कि शेष सीटें अब बस टॉस-अप हैं और भाजपा “हारी हुई बाजी” को लड़ रही है.
संपादकीय में कहा गया है कि हालांकि, नतीजे 4 जून को ही पता चलेंगे, लेकिन अभियान के आखिरी पांच चरणों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा समाज में जो “गंदगी” फैलाई गई, वह चुनावी इतिहास में अभूतपूर्व है.
संपादकीय में कहा गया, “बीजेपी द्वारा अपने अनैतिक बयानों, कमज़ोर और अप्रासंगिक तर्कों और दैवीय दावों के साथ चुनाव प्रचार की आक्रामक शैली ने विशेष रूप से सामाजिक सद्भाव के ताने-बाने को चरम सीमा तक तोड़ दिया है.”
सहारा ने एक संपादकीय ईरान के दिवंगत राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी को भी समर्पित किया, जिनकी 19 मई को एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी.
दिप्रिंट आपके लिए इस हफ्ते उर्दू प्रेस में पहले पन्ने पर सुर्खियां बटोरने और संपादकीय में शामिल सभी खबरों का एक राउंड-अप लेकर आया है.
यह भी पढ़ें: असली एकता तभी दिखेगी जब पार्टियां बूथ स्तर पर एक-दूसरे का समर्थन करेंगी’ – विपक्ष पर उर्दू प्रेस ने क्या कहा
बीजेपी की ‘हारी हुई’ बाजी
अपने 24 मई के संपादकीय में सियासत ने लिखा कि चुनाव के छठे चरण में पिछले चरणों में देखा गया कि नकारात्मक प्रचार जारी है. नेता और पार्टियां, विशेषकर भाजपा, राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए नफरत और विभाजन फैला रहे हैं, वास्तविक मुद्दों की उपेक्षा कर रहे हैं और सांप्रदायिक भावनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.
जैसे-जैसे 1 जून को सातवें चरण के साथ चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने वाली है, यह स्पष्ट है कि सभी राजनीतिक दलों ने भारत के लोकतंत्र को कलंकित करने में भूमिका निभाई है.
सियासत के संपादकीय में आगे लिखा है, “प्रधानमंत्री से लेकर कुछ मुख्यमंत्रियों और कई मंत्रियों और अन्य नेताओं ने लोगों के दिमाग से वास्तविक और बुनियादी मुद्दों को मिटाने के लिए हर संभव प्रयास किया है. अगर कोई एक चीज़ उन्हें याद है, तो वो है मुसलमानों के प्रति नफरत. लोगों को यह याद दिलाने की बार-बार कोशिश की गई कि राम मंदिर के उद्घाटन में कौन शामिल हुआ और कौन नहीं. पूरे देश ने देखा कि कैसे उन्होंने लोगों के बीच भय और विभाजन पैदा करने के लिए धार्मिक भावनाओं का फायदा उठाने की कोशिश की.”
24 मई को इंकलाब ने राजनीतिक बदलाव के स्पष्ट संकेतों के बीच भारत के चुनाव आयोग को अपनी जिम्मेदारी पहचानने की सलाह दी. संपादकीय में इस बात पर जोर दिया गया कि आयोग को अपनी स्वतंत्र और निष्पक्ष स्थिति बनाए रखते हुए ईवीएम में संग्रहीत सच्ची जनमत को प्रतिबिंबित करना चाहिए.
इसने कहा, “राजनीतिक दलों, जनता, पत्रकार संगठनों और टिप्पणीकारों की कई शिकायतों के साथ, आयोग को स्पष्ट करना चाहिए कि कौन सी शिकायतें वैध हैं, कौन सी निराधार हैं, कितनों का समाधान किया गया है और यह 4 जून को जनता की राय प्रस्तुत करने में निष्पक्षता और पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित करेगा.”
अपने 22 मई के संपादकीय में सियासत ने सांप्रदायिक बयानबाजी के खिलाफ चुनाव आयोग के निर्देश को संबोधित किया, जिसमें कहा गया कि नेता विभिन्न दावों के साथ जनता का उत्साह बनाए रखते हैं.
संपादकीय में कहा गया, “हाल ही में विभिन्न स्रोत दावा कर रहे हैं कि भाजपा तीसरा कार्यकाल सुरक्षित करेगी. इस रणनीति का उद्देश्य 400 से अधिक सीटें जीतने या तीसरे कार्यकाल के आश्वासन के नारे के साथ जनता की धारणा को प्रभावित करना है. ये कार्रवाइयां परोक्ष रूप से आचार संहिता का उल्लंघन करती हैं, व्यक्तिगत राय और सर्वेक्षणों के साथ जनता को गुमराह करने के लिए कुछ संस्थानों का उपयोग करती हैं.”
इंकलाब की तरह सियासत ने भी पांचवें चरण के मतदान में नकारात्मक प्रचार की आलोचना की और इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे सत्तारूढ़ दल और उसके नेताओं ने जीत को प्राथमिकता देने के लिए चुनाव नियमों की अवहेलना की.
21 मई को छपे इस संपादकीय में कहा गया, “धार्मिक शोषण ने इस प्रक्रिया को बाधित कर दिया, जिससे लोगों की चिंताओं से ध्यान हटकर मंदिरों और मंगलसूत्रों पर केंद्रित हो गया. यह भारत की कुछ सबसे नकारात्मक चुनावी रणनीति का उदाहरण है.”
20 मई को अखबार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस न करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की. इसने ‘मुश्किल सवालों से क्यों बचें?’ शीर्षक वाले संपादकीय में कहा कि मौजूदा चुनाव प्रक्रिया के दौरान भी, मोदी ने केवल कुछ पसंदीदा कॉर्पोरेट संचालित संस्थानों को इंटरव्यू दिया है.
इसमें कहा गया, “ये चापलूस एंकर मुश्किल सवालों से बचते हुए उनके इंटरव्यू को प्रतिष्ठित घटनाओं के रूप में प्रस्तुत करते हैं. इस बात का डर है कि असली पत्रकार पूछ सकते हैं कि महंगाई क्यों कम नहीं हुई, 20 करोड़ नौकरियों का वादा कहां है और विदेशों से काला धन वापस क्यों नहीं लाया गया.”
विपक्ष
18 मई को अपने संपादकीय में इंकलाब ने कहा कि सत्तारूढ़ दल का दृढ़ विश्वास है कि विपक्षी दल एकजुट नहीं होंगे. संपादकीय के अनुसार, यह दृष्टिकोण विपक्षी INDIA गुट के भीतर सार्वजनिक आपसी कलह से निकला है.
संपादकीय में कहा गया है कि पार्टियों के बीच लोगों के लिए एक एकीकृत आवाज़ बनने या सहयोग की नई राजनीति को मजबूत करने की बहुत कम उम्मीद है. “वे स्पष्ट रूप से गुस्से में हैं, एक-दूसरे की आलोचना कर रहे हैं और पार्टी लाइनों से परे मतदाताओं से अपील कर रहे हैं”.
यह रुख जनता की भावना को दर्शाते हुए सत्तारूढ़ दल के रणनीतिक प्रयासों को रेखांकित करता है. संपादकीय में कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि विभिन्न दलों के कार्यकर्ता और मतदाता उनके समर्थन में एकता दिखाते हैं, जो एक एकजुट गैर-भाजपा गठबंधन की इच्छा का संकेत देता है.
इंकलाब ने लिखा, “सत्तारूढ़ दल को पूरा भरोसा था कि विपक्षी दलों के बीच कोई सहमति नहीं बनेगी. पार्टियां खुद ऐसी सद्भावना और एकता को बढ़ावा देने के प्रति आशान्वित नहीं थीं कि वे लोगों की आवाज़ बनकर उभरें, सहयोग और एकता की एक नई राजनीति को मजबूत करें.”
ईरान के राष्ट्रपति की मृत्यु
सहारा के 21 मई के संपादकीय में ईरान के दिवंगत राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी को श्रद्धांजलि दी गई. इसमें कहा गया है कि रईसी ने तेल, गैस और पेट्रोकेमिकल क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण निवेश समझौते के माध्यम से, विशेष रूप से चीन के साथ, ईरान के आर्थिक संबंधों को मजबूत करने को प्राथमिकता दी है.
इसने लिखा, “उनके राष्ट्रपतित्व ने सऊदी अरब, सीरिया और यमन जैसे देशों के साथ क्षेत्रीय गतिशीलता का प्रबंधन करते हुए भारत के साथ संबंधों को बढ़ाने पर भी जोर दिया. रईसी के कार्यकाल ने दीर्घकालिक विकास और स्थिरता को बनाए रखने के उद्देश्य से ईरान की रणनीतिक गतिविधियों और आर्थिक रणनीतियों को रेखांकित किया.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: लोकसभा चुनाव में कम मतदान से उर्दू प्रेस चिंतित, कहा- ‘इससे कमजोर होती हैं लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं’