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Saturday, 21 December, 2024
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सुलोचना – द स्टार मॉम, जिसने बताया कि ‘मां’ सबसे अच्छी क्यों होती है

सुलोचना लाटकर, सुनील दत्त, देवानंद, राजेश खन्ना और फिर अमिताभ बच्चन की रील मां जिसने रियल को भी पीछे छोड़ दिया. बॉलीवुड में तक़रीबन 250 से भी अधिक फिल्मों में काम किया.

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कहानियों के किरदार बदलते रहते हैं , पर हर किरदार का होना उसकी मां के होने के बाद ही संभव है. बॉलीवुड के दशकों के इतिहास में मांओं की एक अमिट छवि बरक़रार है. कुछ चुनिन्दा अभिनेत्रियां ऐसी हुईं की उन्होंने बॉलिवुड में मांओं को बेहतरीन ढंग से टिपिफ़ाई किया. एक मानक तय किया और मिसाल बनीं. एक क्लास एक्टिंग का मानक. ऐसे ही एक नायाब मानक को स्थापित करने वाली 94 वर्ष की कलाकार सुलोचना लाटकर कल, यानि दिनांक 4 जून 2023 को ये दुनियां छोड़ चलीं. सुलोचना बहुत समय से सांस लेने की दिक्कत से जूझ रही थीं. परिवार के सदस्यों का कहना है कि उनको 8 मई को ही एक प्राइवेट अस्पताल में दाखिल करवाया गया था मगर अफ़सोस की वो अब हमारे बीच नहीं रहीं.

सुलोचना – द स्टार मॉम!

सुलोचना लाटकर 30 जुलाई 1928 को कर्नाटक में पैदा हुई थीं. पढ़ने लिखने की कोई ख़ास शौकीन तो नहीं थीं मगर अभिनय करने में उनका जी रमता था. हुआ यूं के वो बंबई आ गईं. भारत के साथ साथ सुलोचना के अभिनय को आज़ादी के पंख मिले. कई महाराष्ट्रियन फिल्मों में लीड रोल करती हुई वो नज़र आईं. जैसे 1946 में आई सासुरवास , और 1959 में आई ‘वहिनींच्या बांगड्या‘. लगभग 1948 से लेकर 1961 तक में उन्होंने माराठी सिनेमा में इतना तो नाम कर ही लिया था की लोग उन्हें अपने समय की स्टार मानें.

उस वक़्त कैमरे और फोटोग्राफी का उतना चलन नहीं था जितना आज है. आज जैसे बॉलिवुड के लोगों की तस्वीर तुरंत – तुरंत सोशल मीडिया पर पसर जाती है लेकिव वो दौर कुछ अलग ही था. उस समय काम करना और नाम करना दोनों ही बहुत मुश्किल टास्क हुआ करते थे. मगर चमकदार चीज़ें अंधेरों में भी चमकती है. सन् 1999 में सुलोचना लाटकर को उच्चतम नागरिक पुरस्कार – पद्म श्री से नवाज़ा गया. फिर 2004 में फिल्मफेयर ने उन्हें लाईफ़टाईम अचीवमेंट पुरस्कार देकर उनकी कला का हक़ अदा किया. इतना ही नहीं सन् 2003 में अखिल भारतीय मराठी चित्रपट की ओर से भी सुलोचना लाटकर को चित्रभूषण पुरस्कार भी मिला.

सुलोचना के समय का सिनेमा

बॉलीवुड नाम सुनते ही तमाम बड़े चेहरे दिमाग़ के अंदर रील से होकर पर्दे पर नज़र आने लगते हैं. फिर चाहे वो एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन हों या धर्मेंद्र. मैं मानती हूं की आज का बॉलिवुड जो है उसपर वेस्टर्न सोसाइटी का एक गहरा असर है. तो अब जो भी ज़्यादातर फिल्में बनतीं हैं वो इंडियन एसथैटिक की मौलिक परिधी से ज़रा एडवांस होती हैं. मगर आईए एक बार खुद को फ्लैशबैक में ले चलें और समय के पहिए को 70 के दशक में रोकें. उस समय जिस किस्म की फिल्में बन रही थीं, उसका सबसे बड़ा दर्शक वर्ग मिडिल क्लास था. जिसके पास शुरुआत में एक खोटा सिक्का तक नहीं होता और फिल्म के अंत आते आते उसके पास सब आ जाता था.

ये कोई मनगढंत बात नहीं बल्कि 60-70 के दशक के इंडियन सिनेमा का हाईयेस्ट कॉन्सेप्ट है. मीडिल क्लास की लड़ाई समाज की सबसे बड़े वर्ग की लड़ाई थी, और वही सिनेमा के पर्दे पर दिखाया भी जाता था. ऐसे में जो नायक हैं वो ख़ैर लोकप्रिय हैं ही , मगर जो अभिनेत्रियां उस समय सपोर्टिंग एक्ट्रेस के रूप में मां के किरदार को निभा रही थीं उनके लिए भी भरपूर दाद बनती है. उन्हीं मांओं में से एक मां थीं – सुलोचना लाटकर. हमारे समाज में मां को ईश्वर की प्रतिमूर्ति कहा गया है, और स्क्रीन पर जब मां के आंसू बहा करते थे तब पर्दे के उस पार से तकती अंखियों में भी करूणा का विस्फोट होता था और लोग रोते थे .

मां के प्रति भारतीय समाज हमेशा से इमोशनल रहा है. और ये कोई ऐसा वैसा इमोशन नहीं है. ये वो इमोशन है जो जब तक नहीं आ रहा तब तक नहीं आ रहा, मगर “ओ मां” गाने की ट्यून सुनने भर से ऑंखों में भरभरा कर आ जाता है और बोझिल पलकें सजदे में झुक जाती हैं. इसलिए जब लोगों के इमोशन किसी किरदार को लेकर इतने बलिष्ठ हों तो उस किरदार को सफलतापूर्वक निभाने की भारी ज़िम्मेदारी आर्टिस्ट के कंधों पर होती है. सुलोचना को शायद इसलिए बॉलिवुड की मां के रूप में सहजता से जनता ने स्वीकारा क्योंकि ना केवल वो एक बाकमाल अभिनेत्री थीं बल्कि उन्होंने जनता के सबसे चहेते कलाकारों की मां के रूप में ऑनस्क्रीन भूमिका निभाई.


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कैसे बनीं सुलोचना बेस्ट मॉम ऑफ़ बॉलिवुड

1971 में ‘कटी पतंग‘ , 1978 में ‘मुक्कदर का सिकंदर’ , 1979 में ‘जानी दुश्मन‘ जैसे सुपरहिट फिल्मों में मां की ममता और अपने अभिनय की मौलिकता को सुलोचना लाटकर ने संवारे रखा. सन 1978 की बेस्ट फिल्म ‘मुक्कदर का सिकंदर’ थी जिसमें सुलोचना लाटकर ने अभिनेता अमिताभ बच्चन की मां का किरदार निभाया था. इस फिल्म में जो उन्होंने अभिनय का एक मानक स्थापित किया वो इसलिए बेहतर नहीं है क्योंकि उनसे बेहतर कोई करने वाली नहीं थीं, बल्कि इसलिए बेहतरीन है क्योंकि उस वक़्त जो लोअर मिडिल क्लास वर्ग की मां हुआ करती थीं वो एकदम्म इसी तरह की होती होंगी.

यानि कि सुलोचना ने अपने किरदार में समाज के बीच पल रही बेबस और लाचार मां को लाकर खड़ा कर दिया जो की विस्मरणीय है. बॉलिवुड में तक़रिबन 250 से भी अधिक फिल्मों में सुलोचना लाटकर ने काम किया और बहुत सारी माराठी पिक्चर्स में भी अपनी कला का प्रदर्शन लीडींग एक्ट्रेस के रूप में किया. क्या उनके द्वारा की गई फिल्मों की फेहरिस्त ये बताने को काफ़ी नहीं है, कि वो क्यों कही जाती हैं बेस्ट मॉम ऑफ़ बॉलिवुड. ?

सुलोचना बतौर आर्टिस्ट ….

एक आर्टिस्ट केवल तब आर्टिस्ट नहीं होता जब वो सिर्फ़ अपने वर्कप्लेस पर कामयाब हो बल्कि एक सच्चा आर्टिस्ट वो है जिसकी निजी ज़िन्दगी में भी वही करूणा, वही प्रेम और वही सौहार्द हो. सुलोचना के बारे में बहुत बातें सोशल मीडिया पर आपको नहीं मिलेंगी. इसकी कई वजह हैं, मगर एक वजह यह भी है कि वो बहुत सुलझी हुई व्यक्तित्व की महिला थीं. उनकी 14 वर्ष की आयु में ही शादी करवा दी गई थी, और वे उससे खुश थीं. कभी कोई लव अफ़ैयर या किसी स्कैंडल में उनका नाम नहीं आया. मसलन वे कभी कुख्यात नहीं बल्कि विख्यात ही रहीं.

मराठी फ़िल्मों से इतर उनका कहना था कि उनको बहुत अच्छा लगता है इन तीन दमदार नायकों की मां का किरदार निभाना . जिसमें से पहले थे सुनील दत्त फिर देवानंद और फिर राजेश खन्ना. अमिताभ बच्चन थोड़े बाद में आए. अमिताभ क्योंकि बॉलिवुड के अत्याधिक सफल और लोकप्रिय कलाकारों में से एक हैं तो ज़ाहिर ये मानना है की अमिताभ बच्चन और सुलोचना लाटकर की ऑन स्क्रीन मां-बेटे की जोड़ी कमाल की थी. सुलोचना लाटकर अमिताभ बच्चन से उम्र और तजुर्बे , दोनों में ही बड़ी थीं. पब्लिक डोमेन में इस बात के बड़े चर्चे रहे की अमिताभ बच्चन के स्टार बनने से पहले ही सुलोचना लाटकर ने उनसे ये कहा था कि एक दिन वो बॉलिवुड के बड़े सितारे होंगे. उन्होंने अमिताभ बच्चन के 75वें जन्मदिन पर उन्हें एक प्रेमपूर्ण ख़त भी लिखा और बहुत बधाई दी.

(लेखिका फ्रीलांस जर्नलिस्ट हैं)


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