नया साल सचिन सहित उन तमाम क्रिकेट प्रेमियों के लिए बुरी खबर लाया, जो रमाकांत आचरेकर की कीमत जानते हैं. सचिन तेंदुलकर को हमने जिस रूप में देखा, उसके पीछे उनके क्रिकेट कोच आचरेकर सर का बहुत बड़ा योगदान है. बचपन में जब सचिन अपनी सोसाइटी में बच्चों के साथ खेल रहे होते थे तब आचरेकर सर उन्हें वहाँ से खींच कर अपने स्कूटर पर बिठाकर अपने अकेडमी ले जाते थे और कहते थे तुम इन बच्चों के साथ समय मत बर्बाद करो. तब सचिन को गुस्सा आता था, लेकिन आज वे उस क्षण को याद करके रोमांचित हो उठते हैं.
उनके निधन पर सचिन ने उनके साथ एक तस्वीर शेयर करते हुए ट्विटर पर लिखा- “आचरेकर सर की उपस्थिति अब स्वर्ग में भी क्रिकेट को समृद्ध करेगी! मेरे जीवन मे उनका योगदान अतुलनीय है जिसे शब्दों मे व्यक्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि मैं उन्हीं की बनाई नींव पर आज खड़ा हूँ.” उन्होंने अपने फेयरवेल मैच के विदाई सम्बोधन में भी अपने गुरु को याद किया था. विनोद कांबली ने भी उनके साथ की एक तस्वीर ट्विटर पर शेयर की जिसमें आचरेकर सर उनको फ्रंटफुट पर डिफेंस करना सिखा रहे हैं.
कांबली बनाम सचिव और कोच आचरेकर
विनोद कांबली और सचिन तेंदुलकर उनके सबसे चर्चित शिष्य रहे हैं. वैसे उन पर आरोप यह भी लगता है कि उन्होंने विनोद कांबली के ऊपर हर हमेशा सचिन को वरीयता दी. जिस तरह उन्होंने सचिन को प्रमोट किया और हर वक़्त उसके साथ खड़े रहे अगर वैसा ही काम्बली के साथ किया होता तो काम्बली का क्रिकेट करियर भी लंबा चलता. एक समय मुम्बई क्रिकेट में काम्बली को सचिन से ज्यादा प्रतिभाशाली माना गया था. गौरतलब है कि आचरेकर स्कूली समय से ही इन दोनों के कोच रहे हैं. सचिन और कांबली ने स्कूली क्रिकेट में 664 रन की साझेदारी करके धमाल मचा दिया था. कांबली ने 349 और सचिन ने 326 रन बनाए. दोनों अंत तक नाबाद रहे.
आचरेकर शारदाश्रम विद्यामंदिर के क्रिकेट कोच थे. रमाकांत आचरेकर ने सचिन की प्रतिभा को पहचाना और बाकी बच्चों से ज्यादा ध्यान उस पर दिया. उसे अधिक से अधिक मौके उपलब्ध करवाए. एक ग्राउंड में आउट हो जाने पर अपने स्कूटर पर बिठा कर दूसरे मैदान ले जाते थे ताकि वो ज्यादा बैटिंग कर पाएं. अगर इस तरह कोच का विशेष स्नेह ना हो तो एक दिन में बिना फील्डिंग किये सिर्फ बैटिंग करने के मौके आसानी से नहीं मिलते. उस समय आचरेकर सर की मुम्बई क्रिकेट में तूती बोलती थी. ऐसे कोच के सानिध्य में ही सचिन का आत्मविश्ववास बढ़ता गया और उन्होंने हर स्तर के क्रिकेट में धूम मचा दी. आज अगर विश्व खेल जगत में गुरु-शिष्य की जोड़ी की लिस्ट बनाई जाए तो ये दोनों अव्वल रहेंगे. सचिन बिना आचरेकर अधूरे हैं और आचरेकर सचिन के बिना,भले उनके हजारों शिष्य रहे हों.
रमाकांत आचरेकर का जन्म 1932 में तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी में हुआ था. मुंबई के दादर इलाके के शिवाजी पार्क में रमाकांत आचरेकर की क्रिकेट अकेडमी थी. इस मैदान को मुम्बई क्रिकेट की नर्सरी भी कहा जाता है. आचरेकर बाद में मुम्बई रणजी टीम के चयनकर्ता भी बने. अजीत अगरकर, चंद्रकांत पंडित, प्रवीण आमरे, विनोद कांबली, बलविंदर सिंधू, संजय बांगड़, पारस महाम्ब्रे, समीर दिघे, रमेश पवार, लालचंद राजपूत जैसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी उनकी अकेडमी से ही निकले. मुम्बई और भारत का क्रिकेट इतिहास उनके बिना अधूरा है. वे कई बार प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की आर्थिक मदद भी करते थे. जब कोई अच्छा खेलता था तो वे उसको भेलपुरी और पानीपुरी भी खिलाते थे. वैसे यह सौभाग्य सचिन को ज्यादा मिला. वे मुंबई क्रिकेट के अभिवावक थे.
1990 में उनको ‘द्रोणाचार्य अवार्ड’ से सम्मानित किया गया, जो खेल प्रशिक्षण के लिए दिया जाने वाला भारत का सबसे बड़ा अवार्ड है. उनको भारत सरकार ने 2010 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया था.
खुद भी अच्छे क्रिकेटर थे आचरेकर
रमाकांत आचरेकर खुद अच्छे क्रिकेट खिलाड़ी थे. उन्होंने 11 वर्ष की उम्र से ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. वह ‘खेल कूद से खराब’ होने का दौर माना जाता था. तब भी उन्होंने छोटी सी उम्र में खेलने का दुस्साहस किया. यह भी संयोग है कि सचिन भी इसी उम्र में अपने भाई अजीत के साथ आचरेकर की क्रिकेट पाठशाला में शामिल हुए. रमाकांत आचरेकर मुंबई के गुलमोहर मिल्स और मुम्बई पोर्ट के लिए क्लब क्रिकेट भी खेलते थे. उन्होंने 1963 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से हैदराबाद के विरुद्ध प्रथम श्रेणी मैच भी खेला था.
वैसे आचरेकर सर की ज़िंदगी की सबसे निराशाजनक बात यह है कि उनका प्रिय शिष्य अनिल गुरव क्रिकेट की दुनिया में आगे नहीं बढ़ पाया. आचरेकर उसे विव रिचर्ड्स के नाम से पुकारते थे. आचरेकर सर सचिन और कांबली को भी अनिल की बैटिंग देखने को कहते थे. सचिन ने अपना पहला शतक भी उसके एसजी के बल्ले से ही बनाया था. अनिल गुरव ने पैसों के लिए मुंबई की नाइट क्रिकेट में अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर ली. आचरेकर सर ने भी बाद में उस पर से ध्यान हटा लिया. सचिन को इस बात के लिए तो दाद देनी ही पड़ेगी कि अनिल और कांबली से तथाकथित कम प्रतिभावान होते हुए भी मेहनत और अनुशासन के दम पर वे गुरु के प्रिय शिष्य भी बने और दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी भी.
सचिन के साथ था विशेष रिश्ता
अपनी आत्मकथा ‘सचिन तेंदुलकर: प्लेइंग इट माय वे’ में सचिन अपने कोच को याद करते हुए लिखते हैं कि एक बार मैंने स्कोरर से सेटिंग करके अपने व्यक्तिगत स्कोर में 6 रन जुड़वा लिए क्योंकि अखबार में नाम छपने के लिए कम से कम 30 रन चाहिए थे जबकि मैंने 24 रन ही बनाये थे. नाम छप गया लेकिन आचरेकर सर बहुत नाराज हुए और खूब लताड़ लगाई और खुद के असली रन बनाने की चुनौती दी. इस घटना का सचिन पर इतना प्रभाव पड़ा कि उनके नाम विश्व में सबसे ज्यादा रन बनाने का रेकॉर्ड है.
अंतराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी सफलता के बाद जब दुनिया के बड़े-बड़े कोच से उनका संपर्क हुआ, तब भी वे अपने कोच से उसी आत्मीयता से जुड़े रहे. जब भी कभी बैट से रन निकलना बंद हुआ, वह एक व्याकुल शिष्य की तरह उनकी शरण में ही गए. विदेशी दौरे में भी वे रात को आचरेकर सर को फोन करके ही मैच की रणनीति बनाते थे. एक तरह से सचिन उनकी गोद में पले बढ़े थे, इसलिए उनको सचिन की हर कमजोरी और मजबूती का पता था. उन्होंने सचिन को कभी भी वेल प्लेड नहीं कहा और हर वक़्त पहले से अच्छा करने के लिए प्रेरित किया.
(लेखक क्रिकेट के खिलाड़ी हैं और खेल के ऊपर जेएनयू से शोध भी किया है.)