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Tuesday, 7 May, 2024
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वंदे मातरम गीत लिखने वाले बंकिम चंद्र चटर्जी का राष्ट्रवाद क्या ‘मुस्लिम विरोधी’ था

बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखे वंदे मातरम गीत को हिंदू-मुस्लिम दोनों ने ही आजादी का तराना बनाया पर इसके कुछ अंशों में देवी-देवताओं की बात होने से मुस्लिम इसे राष्ट्रीय गीत बनाने के खिलाफ हो गए थे.

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बंकिम चंद्र चटर्जी की राष्ट्रवादी रचनाएं जहां देशभक्ति जगाने में खूब काम आईं वहीं मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाने में भी इसका जमकर इस्तेमाल हुआ है. उनका मुस्लिम विरोध मुखर तौर पर जाहिर होता था और सरकारी मुलाजिम होने के नाते अंग्रेजों के खिलाफ उनका विरोध अप्रत्यक्ष तौर पर ही सामने आता था.

उनके लिखे वंदे मातरम गीत को हिंदू-मुस्लिम दोनों ने ही आजादी का तराना बनाया पर इसके कुछ अंशों में देवी-देवताओं की बात होने से मुस्लिम इसे राष्ट्रीय गीत बनाने के खिलाफ हो गए थे. आनंद मठ  उपन्यास  के कुछ अंशों का अनुवाद कराने के बाद तो अंग्रेजों ने भी इसे खतरनाक बताया था.

जेएनयू के भाषा केंद्र में प्रोफेसर रहे चुके और हिंदी साहित्य अकादमी के पूर्व उपसचिव रणजीत साहा ने दिप्रिंट को बताया, ‘बंकिम चंद्र बंगाल के नवजागरण के अग्रदूतों में से हैं. 19वीं शतब्दी के अंत में राजा राममोहन राय के साथ जो नवजागरण शुरू हुआ उसके वह एक सशक्त हस्ताक्षर थे. उन्होंने 30 से अधिक उपन्यास लिखे जिसका अनुवाद कई भारतीय भाषाओं में हुआ. वह बहुत स्वीकार्य नाम हैं.’

बंकिम के मुस्लिम विरोधी होने की बात करते हुए रणजीत साहा कहते हैं कि आनंद मठ की रचना के करीब 100 साल पहले बंगाल में नवाब वाजिद अली शाह जैसे मुस्लिमों का शासन था जिन्हें बंकिम आक्रांता मानते थे. उन्होंने कहा, ‘उस समय सन्यासी मुस्लिमों के खिलाफ जंगल में संगठन बनाकर सशस्त्र विद्रोह करते थे. जिसे बंकिम पात्रों के जरिए अपने उपन्यास आनंद मठ में सामने लाते हैं’.

वह कहते हैं, ‘उपन्यास में पात्र सत्यानंद के जरिए उसी सन्यासी विद्रोह को दिखाया गया है जिससे उनकी एक तरह से मुस्लिम विरोध की छवि स्थापित हुई. मुस्लिमों ने इसकी शिकायत की. तब अंग्रेजों ने इसके कुछ अंशों का अनुवाद कर पाया कि यह खतरनाक है, इस पर बैन लगना चाहिए’.

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वंदे मातरम गीत 

बंकिम चंद्र चटर्जी का जन्म 27 जून 1838 में बंगाल के नैहाटी के पास कंथलपारा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. 1875 में लिखा वंदे मातरम गीत संस्कृत और बांग्ला भाषा, दोनों का मिला-जुला प्रयोग है.

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी अपने एक लेख में इस गीत की तारीफ करते हुए लिखते हैं, ‘वंदे मातरम् के धार्मिक प्रतीकों के नाके के जरा आगे निकलें तो उसके शब्द हमारे सामने छंद, रंग और गंध की एक बड़ी और सौम्य दुनिया खोलते हैं. ‘मलयजशीतलाम्’ कोरी चंदन की बयार नहीं है, न ‘शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम्’ महज चांदनी रात के रोमांच का दृश्य बयान करती है.’

आगे वो लिखते हैं, ‘गीत में हर उपमा एक निराला छंद है. वह हमें शब्द और उसके अर्थ की दुनिया के पार ले जाता है. या कहें ले जा सकता है- अगर हम जाना चाहें. जैसा कि प्रो. रामचंद्र गांधी- जो महात्मा गांधी के पौत्र के रूप में ज्यादा जाने जाते हैं, जबकि आला दर्जे के कला-मर्मज्ञ और रसिक थे- ने एक अंतरंग बातचीत में कहा कि बाकी गीत का सौंदर्य अपना है, पर उसके शुरू के दो शब्द – ‘वंदे मातरम्’ – ही अपने आप में संपूर्ण काव्य हैं. जैसे ‘सत्यमेव जयते’ है. उनका आशय लय से था, जो कविता की धड़कन होती है. मैं उनकी बात समझ सकता हूं.’

ओम थानवी लिखते हैं, ‘आनंदमठ’ साफ शब्दों में हिंदू धर्म की प्रतिष्ठा करता है, मुसलमानों की खिल्ली उड़ाता है और अंग्रेजों का यशोगान करता है. बार-बार उसमें ‘जय जगदीश हरे’ और ‘हरे मुरारे मधुकैटभारे’ नारों की तरह आते हैं. ‘वंदे मातरम्’ तो टेक की तरह आता है.

उन्होंने ‘बंगदर्शन’ में (और उपन्यास के पहले संस्करण में भी) जहां-जहां ‘अंग्रेज’ लिखा था, उसे अगले संस्करण में कई जगह बदल कर ‘नैड़े’ (मुसलमानों के लिए ओछा शब्द) कर दिया.

वह लिखते हैं कि शायद बंकिम बाबू ने पहले अंग्रेजों के खिलाफ लिखना चाहा हो, वारेन हेस्टिंग्स के वक्त हुए ऐतिहासिक संन्यासी विद्रोह को उन्होंने कथा का आधार बनाया था. लेकिन संभवत: सरकारी मुलाजिम होने के नाते-वे दुविधा में पड़े और कभी मुसलमान और कभी अंग्रेजों से संतान-सेना को लड़ाते हुए उपन्यास के समापन में सीधे-सीधे अंग्रेजों की तरफ हो गए. अंग्रेज-राज्य की ‘अनिवार्यता’ को उन्होंने भविष्य की हिंदू-राज्य की कल्पना से जोड़ दिया.


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उपन्यास के अंशों में मुस्लिमों से नफरत

‘मुसलमान राजा क्या हमारी रक्षा करते हैं? धर्म गया, जाती गई, मान गया, कुल गया, अब तो प्राणों पर बाजी आ गई है. इन नशेबाज दाढ़ीवालों को बिना भगाए क्या हिंदू हिंदू बचे रहेंगे?’

लड़ाई में अंग्रेज सेनापति को पकड़ कर भवानंद कहते हैं: ‘कप्तान साहब! हम तुम्हें मारेंगे नहीं. अंग्रेज हमारे शत्रु नहीं है. तुम क्यों मुसलमान की सहायता करने आए? हम तुम्हारे प्राण बख्शते हैं लेकिन अभी तुम हमारे बंदी रहोगे. अंग्रेज़ों की जय हो, हम तुम्हारे शुभचिंतक हैं.’

बांग्ला विद्वान ललितचंद्र मित्र ने सौ साल पहले ‘साहित्य’ पत्रिका में लिखा था: ‘आनंदमठ’ देशभक्ति की रचना के रूप में उत्तम है, लेकिन उसका कला-पक्ष क्षीण है.

मुसलमानों ने गीत का विरोध किया तो नेहरू ने बनाई थी समिति

कांग्रेस के अधिवेशनों में वंदे मातरम गाया जाता था लेकिन इसे राष्ट्रीय गीत बनाने को लेकर मुस्लिम खिलाफ हो गए थे.

मुसलमानों ने गीत के एक हिस्से में हिंदू देवी-देवताओं की बात होने से इसका विरोध करना शुरू कर दिया था और बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास आनंद मठ को जिससे यह गीत लिया गया था, मुस्लिम विरोधी बताया था. यह गीत 1875 में लिखा गया था और 1885 में इसे आनंद मठ में जोड़ा गया था.

मुस्लिमों देवी दुर्गा को इस गीत में राष्ट्र के रूप में पेश किया जाने के खिलाफ थे. विवाद होने पर जवाहरलाल नेहरू ने मौलाना अबुल कलाम आजाद सहित अन्य लोगों की एक समिति बनाई थी.

समिति ने गीत के शुरुआत के दो पदों को मातृभूमि के बारे में बाकि हिंदू-देवी देवताओं के बारे में बताते हुए इसके केवल शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्रगीत के रूप में शामिल करने का सुझाव दिया.

आज़ादी के बाद नए भारत के लिए बनाए जा रहे नए संविधान में वंदे मातरम् को राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत दोनों का दर्जा नहीं दिया गया. लेकिन संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 24 जनवरी 1950 को घोषणा की कि वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया जा रहा है.


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कुछ विद्वानों की राय में मुस्लिम विरोधी तो कुछ के नहीं

रणजीत साहा ने इस सवाल पर कि क्या बंकिम बाहरी के नाम पर अंग्रेजों से कम और मुस्लिमों से ज्यादा नफरत करते थे, वह कहते हैं, ‘नहीं बंकिम मानते थे कि शिक्षा, व्यापार और दूसरी चीजों का प्रयास अंग्रेजी सरकार ने ज्यादा किया है लेकिन वह मानते थी कि हमारी आवाज भी दबाई जा रही है. वह सरकारी मुलाजिम होने के नाते अंग्रेजों का उतना मुखर विरोध नहीं कर पाते थे लेकिन जब उन्होंने मुलाजमत छोड़ दी तो अंग्रेजों के खिलाफ उनका प्रतिकार उग्र होता चला गया.’

उनके मुताबिक हालांकि नवजागरण के कारण मुस्लिमों में यह भाव आ गया था कि वह बाहरी नहीं है, उनको अब यहीं रहना है. लिहाजा जब अंग्रेजों ने 1905 में हिंदू-मुस्लिमों को बांटने की कोशिश की तो उन्होंने मिलकर इसका विरोध किया.

इतिहासकार तनिका सरकार की राय में ‘बंकिम चंद्र इस बात को मानते थे कि भारत में अंग्रेज़ों के आने से पहले बंगाल की दुर्दशा मुस्लिम राजाओं के कारण थी.’

‘बांग्ला इतिहासेर संबंधे एकटी कोथा’ में बंकिम चंद्र ने लिखा, ‘मुगलों की विजय के बाद बंगाल की दौलत बंगाल में न रहकर दिल्ली ले जाई गई.’

लेकिन प्रतिष्ठित इतिहासकार केएन पणिक्कर के मुताबिक, ‘बंकिम चंद्र के साहित्य में मुस्लिम शासकों के खिलाफ कुछ टिप्पणियों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि बंकिम मुस्लिम विरोधी थे. आनंद मठ एक साहित्यिक रचना है.’

वह लिखते हैं, ‘बंकिम चंद्र अंग्रेज़ी हुकूमत में एक कर्मचारी थे और उन पर अंग्रेज़ों के खिलाफ लिखे गए हिस्से ‘आनंद मठ’ से निकालने का दबाव था. 19वीं शताब्दी के अंत में लिखी इस रचना को उस समय के मौजूदा हालात के संदर्भ में पढ़ना और समझना ज़रूरी है.’


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टैगोर ने बंकिम के साहित्य को बताया था उत्कृष्ट  

नेहरू रवींद्रनाथ ठाकुर से वंदे मातरम् को स्वतंत्रता आंदोलन का मंत्र बनाए जाने के लिए उनकी राय मांगी थी.
ठाकुर बंकिम चंद्र की कविताओं और राष्ट्रभक्ति के प्रशंसक रहे थे और उन्होंने नेहरू से कहा कि वंदे मातरम् के पहले दो छंदों को ही सार्वजनिक रूप से गाया जाना चाहिए.

चटर्जी की मृत्यु के बाद, रवींद्रनाथ टैगोर ने 1901 में उनकी साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन को फिर से जीवित करने का फैसला किया जिसे कि उनके भाई संजीव चट्टोपाध्याय संपादित करते थे.

टैगोर ने कहा था, ‘एक हाथ से, उन्होंने उत्कृष्ट साहित्यिक कार्य किए, और दूसरी तरफ उन्होंने युवा और आकांक्षी लेखकों का मार्गदर्शन किया.’

दार्शनिक श्री अरबिंदो ने कला और राष्ट्र निर्माण की दुनिया में चटर्जी के योगदान के बारे में कहा था, ‘बंकिम ने एक भाषा, एक साहित्य और एक राष्ट्र का निर्माण किया.’

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