संघ की एक खास विशेषता स्वयंसेवक की वरदी या यूनिफॉर्म है.
इसलिए इस विषय पर आगे चर्चा करने से पहले यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि स्वयंसेवकों को रोज यह वरदी नहीं पहननी होती है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पर्व-त्योहार या सर संघचालक द्वारा सालाना भाषण के समय अथवा अनेक शाखाओं के किसी समारोह के अवसर पर उपस्थित होनेवाले सभी सदस्यों को पूरी वरदी पहननी होती है.
जब 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा का शुभारंभ हुआ, तब संघ की वरदी में खाकी ढीली-ढाली निकर, खाकी कमीज, बूट, खाकी टोपी शामिल थी. तब से वरदी में अनेक बदलाव किए गए हैं. संगठन के भीतर वरदी को ‘गणवेश’ के नाम से जाना जाता है.
‘गणवेश’ शब्द सामान्यतः हिंदी तथा संस्कृत भाषा में इस्तेमाल होता है. ‘गणवेश’ दो शब्दों से बना है—गण (लोगों का संगठित समूह) तथा ‘वेश’ (परिधान, वेश-भूषा). इसलिए ‘गणवेश’ का शब्द संघ स्वयंसेवकों की औपचारिक वेश-भूषा या वरदी के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
पिछले 90 वर्षों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वरदी में निम्नलिखित परिवर्तन किए गए हैं—
• खाकी कमीज की जगह सफेद कमीज
• खाकी टोपी की जगह काली टोपी
• बूट की जगह फीतेवाले काले रंग के कैनवस के साधारण जूते,
• चमड़े की बेल्ट की जगह प्लास्टिक की बैल्ट
• अंत में, लेकिन अंतिम नहीं, सबसे ज्यादा स्पष्ट दृष्टिगोचर तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सर्वविदित प्रतीक खाकी निकर की जगह 2016 में गहरे भूरे रंग की पैंट.
अंतिम निर्णय ऐतिहासिक है तथा इस बात का संकेत है कि नई चुनौतियों का सामना करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संगठन के भीतर भी बदलाव लाने के लिए तत्पर है. ऐसा माना जाता है कि ढीली-ढाली निकर के कारण युवा वर्ग संघ की शाखाओं के प्रति आकर्षित नहीं हो पाते. पिछले अनेक वर्षों से यह मुद्दा बार-बार उठाया जाता रहा है तथा इस पर निरंतर चर्चा होती रहती थी.
लंबे समय से चर्चा-परिचर्चा के बाद संघ ने अंततः खाकी निकर की जगह गहरे भूरे रंग की पैंट का निर्णय ले लिया. मार्च 2016 में घोषणा करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महासचिव, भैयाजी जोशी ने कहा था—‘हमने खाकी निकर की जगह भूरे रंग (ब्राऊन) की पैंट वरदी में शामिल करने का फैसला लिया है. सामान्य जीवन में पैंट का आमतौर पर इस्तेमाल होता है. हम लोग समय के साथ चलते हैं. इसलिए हमें ड्रेस कोड बदलने में कोई हिचकिचाहट नहीं है.’
मार्च 2016 मं नागपुर में आयोजित अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में औपचारिक स्तर पर यह निर्णय लिया गया.’ कोई भी जन संगठन बदलाव लाए बिना आगे नहीं बढ़ सकता. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ ताल-मेल रखते हुए हमेशा बदलाव होता है. फैसला लेने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता मनमोहन वैद्य ने नागपुर में रिपोर्टरों को बताया.
आमतौर पर संघ की वरदी बाजार में नहीं मिलती. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दफ्तरों में मामूली कीमत पर वरदी बेची जाती है, ताकि इस पर आई लागत पूरी की जा सके. सभी माप एवं आकार की वरदियां उपलब्ध होती हैं. ‘न घाटा, न मुनाफा’ सिद्धांत पर यह वरदियां बेची जाती हैं. कोई भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दफ्तर में जाकर यह वरदी खरीद सकता है.
(‘जानिए संघ को’ प्रभात प्रकाशन से छपी है. ये किताब पेपर बैक में 200₹ की है.)
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