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Saturday, 16 November, 2024
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प्रिंसिस्तान: नेहरू, पटेल और माउंटबेटन ने कैसे ‘इंडिया’ का निर्माण किया

भारत की आज़ादी के बाद 'भारत बनने की कहानी' पर कई बेहतरीन पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं. इन्ही पुस्तकों की सूचि में संदीप बामजई की पुस्तक ‘प्रिंसिस्तान ‘ का नाम भी जुड़ गया है. 

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पिछली सदी के मध्य में, भारतीय संघ के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद, देश का प्रायः हरेक कोने से एक अलग राष्ट्र की बात हो रही थी. ऐसा प्रतीत होता है कि, हर एक प्रांत ने एक संप्रभु राष्ट्र घोषित होने की इच्छा जताई थी.
हम 2021, में इस बात की, मात्र कल्पना ही कर सकते हैं कि, कैसे हमारे देश के ही भीतर के रियासत के प्रतिनिधियों की अलगाववादी योजनाओं को हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने अपनी राजनितिक समझ और दूरदर्शिता से सफलतापूर्वक सामना किया था.
यह सब बातें और तथ्य हमें अब एक फिक्शन कि तरह लगता है, जबकि यह हमारे देश के अतीत का महत्वपूर्ण खंड है. संदीप बामजई की पुस्तक ‘प्रिंसिस्तान’ इसी बीते हुए समय का यथार्थ को बयां करती है.
लेखक संदीप बामजई इन ‘अनेकडॉट्स’ का जिक्र भर करते हुए जो वैचारिक दस्तावेज हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं, विमर्शों की जिस दरिया में हमें उतारते हैं, वह आज के समय की जरुरत है.
इस पुस्तक की सुंदरता लेखक की ईमानदार और निष्पक्ष दृष्टिकोण में है. हर एक छोटे-बड़े  आख्यानों का वर्णन करते हुए लेखक ने जो संवेदनशीलता और विचारशीलता दिखाई है, वह कबीले तारीफ है.
‘प्रिंसिस्तान’ मुख्य रूप से एक राजनीतिक इतिहास की किताब है, जिसे लेखक संदीप बामज़ई, स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत में हुई प्रमुख घटनाओं और राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर उसके प्रभावों को खूबसूरती से रेखांकित करते  हैं.

565 रियासतें बनाम नेहरू, पटेल और माउंटबेटन

भारत की आज़ादी के बाद ‘भारत बनने की कहानी’ पर कई बेहतरीन पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं. इन्ही पुस्तकों की सूचि में संदीप बामजई की पुस्तक ‘प्रिंसिस्तान ‘ का नाम भी जुड़ गया है.
इस किताब में बताया गया है कि कैसे 565 रियासतों जिन्हें ‘प्रिंसिस्तान’ का नाम दिया गया, को दो स्वतंत्र राज्यों भारत और पाकिस्तान  के दायरे से बाहर रखने की साजिश को जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल  और लॉर्ड माउंटबेटन ने नाकाम किया.
ऑल इंडिया स्टेट्स कॉन्फ्रेंस का संगठन नेहरू की महत्वाकांक्षी योजना थी. नेहरू ने गांधी से साधिकार आग्रह किया और कहा कि ‘हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी रियासतें भारत संघ के साथ हों.’
नेहरू की परवरिश, उनकी विचार प्रक्रिया शुरू से ही साम्राज्य / राजशाही विरोधी थी. नेहरू कभी भी राजकुमारों को पसंद नहीं करते थे और उनका यह विचार उनके राजतंत्रीय विरोधी अवधारणा और फैबियन समाजवादी सोच से उपजा था. नेहरू एक संपूर्ण एकीकृत भारत की अवधारणा पर विश्वास करते थे, जिसमें प्रांत और रियासतें शामिल थीं.
तत्कालीन रियासत भारत राष्ट्र में विलय के लिए सहज नहीं थे. आज़ाद भारत में शामिल होने के सबंध में रियासत के साथ कई संवाद हुए और अधिक अवसरों पर राजाओ ने अपने सवतंत्र अस्तित्व के पक्ष में पर जीत हासिल की थी.
लार्ड माउंटबेटन ने तत्कालीन रियासत के राजाओं को बहुत स्पष्ट और कड़े शब्दों में कहा कि,15 अगस्त  1947 बाद कोई अन्य तरीका नहीं है ,अगर आप सोच रहे हैं कि आप छोटे – छोटे, रियासत का निर्माण करेंगे और जिसे ब्रिटिश हुकूमत समर्थन करेगी, जो कि असंभव है. और ठीक यहीं ‘प्रिंसिस्तान’ की अवधारणा का बीजारोपण होता है.
लेखक संदीप बामजई विस्तार से बताते हैं रियासत कभी भी स्वतंत्रता नहीं चाहते थे. परन्तु पंडित नेहरू, सरदार पटेल और लॉर्ड माउंटबेंटन  ने उनके इस विभाजक मंसूबों पर पानी फेर दिया. भारत को अस्थिर और कमजोर करने के मिशन में इन रियासतों का साथ अली जिन्ना, लॉर्ड वेवेल और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भरपूर साथ दिया था.
मेनन ने इन रियासतदारों को साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर अपनी ओर मिलाया. यह एक कहानी की तरह पाठक को 1947 के उस काल खण्ड में ले जाती है जहां यह सब घटित हो रहा था.
आपको पढ़ते हुए यह एहसास होगा कि, 565 टुकड़ों को एक सूत्र में पिरोने की ये कहानी राजनीतिक पुस्तक की तरह एक खास वर्ग के लिए नहीं लिखी गई है. लेखक ने वी पी मेनन के योगदान शानदार वर्णन किया है.
यह पुस्तक निश्चित रूप से एक खास वर्ग को आइना दिखने का भी काम करती है, जो पटेल और नेहरू के मध्य वैचारिक दीवार खड़ा कर रहे हैं. संदीप बामज़ई ने अपने इस किताब के माध्यम से भारत के आजादी के तुरंत बाद की स्तिथि को कथात्मक इतिहास के रूप में प्रस्तुत करने  का एक शानदार काम किया है.
साथ ही साथ भारतीय राष्ट्र-राज्य की सकंल्पना और निर्माण कथाओं को भी अपने अर्जित भाषा शिल्प और पत्रकारिता के विराट अनुभवों के माध्यम से हमारे समक्ष लाते हैं. वर्तमान समय में बहुत कम ही ऐसे सन्दर्भ पुस्तक लिखी जा रही है ,जैसा संदीप बमजई ने लिखा है. यह हमारे बुक शेल्व्स में रहने वाली अनिवार्य पुस्तक है.
पुस्तक: प्रिंसिस्तान  : हाउ नेहरू, पटेल एंड माउंटबेटन मेड इंडिया, लेखक: संदीप  बामजई, प्रकाशक: रूपा एंड को
भाषा: अंग्रेजी, मूल्य  : रु 395
 (समीक्षक, आशुतोष कुमार ठाकुर – बैंगलोर में रहते हैं. पेशे से मैनेजमेंट कंसलटेंट  तथा  कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के सलाहकार हैं.)
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