भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे विकास स्वरूप के पहले उपन्यास ‘क्यू एंड ए’ पर ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ जैसी चर्चित फिल्म बनी थी. अब डिज़्नी-हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई यह वेब-सीरीज ‘द ग्रेट इंडियन मर्डर’ उनके दूसरे उपन्यास ‘सिक्स सस्पैक्ट्स’ पर आधारित है.
विकास दमदार लिखते हैं. अतीत और वर्तमान की घटनाओं और किरदारों को मिला कर कहानी का मकड़जाल बुनने में उन्हें महारत हासिल है. उनके इस उपन्यास में एक हाईक्लास पार्टी में एक नामी उद्योगपति-राजनेता के बेटे विकी राय का कत्ल हो जाता है. तलाशी में छह लोग बंदूक समेत पकड़े जाते हैं. इनमें से कौन है विकी का कातिल? कोई है भी या…?
किसी उपन्यास की कहानी को पर्दे पर उतारते समय उसमें तब्दीलियां जरूरी हो जाती हैं. तिग्मांशु, विजय मौर्य और पुनीत शर्मा की मंडली ने ऐसा करते समय यह ख्याल रखा है कि कहानी विजुअली तो समृद्ध हो लेकिन उसकी आत्मा भी लगातार बरकरार रहे. इस सीरीज में पार्टी से छह लोग तो नहीं पकड़े गए हैं लेकिन तफ्तीश के दौरान शक की सुई लगातार हर दिशा में घूम रही है और यह लेखकों की कामयाबी है कि इस घूमती हुई सुई के साथ-साथ वे दर्शकों की सोच को भी घुमा रहे हैं.
यह कहानी बहुत ज्यादा विस्तार लिए हुए है. इसमें पैसे, पॉवर और पॉलिटिक्स का जाना-पहचाना गठबंधन और उसके पीछे की साजिशें खुल कर दिखाई गई हैं. दिल्ली की हाई सोसायटी, यहां की बस्तियों, चैन्नई, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बंगाल और यहां तक कि अंडमान को भी कहानी का हिस्सा बनाया गया है जिससे कहानी में व्यापकता आई है. किरदारों को गढ़ते समय सहज मानवीय खूबियों और खामियों का जो समावेश किया गया है वह उन्हें विश्वसनीय बनाता है. इन किरदारों को निभाने के लिए जो कलाकार लिए गए हैं वे भी अपने काम से इन्हें प्रभावी बना पाने में कामयाब रहे हैं. ऋचा चड्ढा, प्रतीक गांधी, रघुवीर यादव, शारिब हाशमी, पाओली दाम, अमय वाघ, हिमांशी चौधरी, रूचा इनामदार, दीपराज राणा, हेमंत माथुर, कैनेथ देसाई, रुशद राणा, गुनीत सिंह जैसे सभी कलाकार दम भर काम करते हैं लेकिन आशुतोष राणा, विनीत कुमार, शशांक अरोड़ा और जतिन गोस्वामी सामने वालों पर भारी पड़ते हैं.
लेकिन यह वेब-सीरीज कमियों से अछूती नहीं हैं. पहली कमी तो यही है कि यह काफी लंबी है. इसे बनाते हुए ही यह तय कर लिया गया होगा कि इसे एक सीजन में नहीं समेटना है और इसीलिए कई सीक्वेंस जरूरत से ज्यादा लंबे खींचे गए हैं. कुछ जगह तर्क भी साथ छोड़ते हैं तो कहीं-कहीं हल्की-सी नीरसता हावी होने लगती है. 40-45 मिनट के नौ एपिसोड आए हैं मगर नौवें एपिसोड तक आते-आते चीजें थमने लगती हैं. अंत भी जोरदार नहीं रहा है. पटकथा के धागों को कस कर लपेटा जाता तो इसे एक बार में भी समेटा जा सकता था.
बावजूद इसके अजय देवगन के प्रोडक्शन से तिग्मांशु धूलिया के सधे हुए निर्देशन में बन कर आई यह सीरीज़ एक उम्दा थ्रिलर का भरपूर मजा देती है. थ्रिलर देखने के शौकीन तो इसे एक ही सिटिंग में देखना चाहेंगे.
(दीपक दुआ 1993 से फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं. विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं.)
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