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Monday, 6 May, 2024
होमसमाज-संस्कृतिनीति आयोग की रिपोर्ट पर उर्दू प्रेस ने कहा — ‘बगैर ठोस नतीजों के महज दावे गरीबी का हल नहीं कर सकते’

नीति आयोग की रिपोर्ट पर उर्दू प्रेस ने कहा — ‘बगैर ठोस नतीजों के महज दावे गरीबी का हल नहीं कर सकते’

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख अपनाया.

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नई दिल्ली: नीति आयोग के पेपर पर टिप्पणी करते हुए कि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से भारत की बहुआयामी गरीबी कम हुई है, इस हफ्ते प्रमुख उर्दू अख़बार सियासत के एक संपादकीय में कहा गया है, “बिना ठोस नतीजों के महज दावे, गरीबी के जटिल मुद्दे को हल नहीं कर सकते”.

इस हफ्ते की शुरुआत में जारी चर्चा पत्र में नीति आयोग ने कहा कि बहुआयामी गरीबी में रहने वाली भारत की आबादी का हिस्सा — एक सूचकांक जो गरीबों द्वारा अनुभव किए गए अभावों के विभिन्न पहलुओं को शामिल करता है — 2013-14 में 29.17 प्रतिशत से 2022-23 में 11.28 प्रतिशत तक गिरने का अनुमान है.

हालांकि, उर्दू प्रेस थिंक टैंक के आंकड़ों को कुछ संदेह की नज़र से देखता है.

उदाहरण के लिए सियासत के संपादकीय में कहा गया कि सरकार अपनी गरीबी उन्मूलन योजनाओं के प्रभाव के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करे. इसमें कहा गया है, “सरकार को यह स्पष्ट करने की ज़रूरत है कि भारत में कितने लोग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं” और अगर सरकारी दावे सही हैं, तो यह एक “उल्लेखनीय उपलब्धि” है.

रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने भी 17 जनवरी को अपने संपादकीय में गरीबी पर चर्चा की. इसने संपादकीय में कहा कि मुद्रास्फीति और खाने-पीने की चीज़ों में उतार-चढ़ाव की खबरें अब आम हो सकती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इससे लोगों को चिंता नहीं होती है.

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इसने कहा, “बढ़ती मुद्रास्फीति और बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी, विशेष रूप से युवाओं के बीच, आम लोगों के लिए काफी परेशानी का कारण बन रही है. रूढ़िवादी अनुमानों के अनुसार, ज़रूरी वस्तुओं और बाकी ज़रूरतों की कीमतें कई गुना बढ़ गई हैं. ऊर्जा और ज़रूरी सामानों की कीमतों में वृद्धि, अप्रत्यक्ष टैक्स में वृद्धि, अनियंत्रित मुद्रास्फीति और रुपये के अवमूल्यन ने लोगों को गरीब बना दिया है, जिससे देश की एक बड़ी आबादी का जीवन बर्बाद हो गया है.”

जिन अन्य विषयों को प्रमुखता से कवरेज मिली उनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा शामिल है — जो पिछले साल उनके द्वारा की गई भारत जोड़ो यात्रा की अगली कड़ी है. कई संपादकीयों में इस यात्रा की सराहना की गई, जो आम चुनाव के कुछ महीनों पहले शुरू हुई है.

बलूचिस्तान में तेहरान के हवाई हमले के बाद पाकिस्तान और ईरान के बीच विवाद, शराब घोटाले की चल रही जांच में चुनौतियों का सामना कर रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और भारत-मालदीव राजनयिक संकट को भी उर्दू प्रेस के पहले पन्ने और संपादकीय में महत्वपूर्ण कवरेज मिली है.

दिप्रिंट आपके लिए इस हफ्ते उर्दू प्रेस में सुर्खियां बटोरने और संपादकीय में जगह पाने वाली सभी खबरों का एक राउंड-अप लेकर आया है.


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भारत जोड़ो न्याय यात्रा

इंकलाब ने 14 जनवरी को शुरू हुई कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को संघर्षग्रस्त मणिपुर के “लोगों का भरोसा जीतने” औं र उनके घावों को भरने के एक तरीके के रूप में देखा.

इसके 16 जनवरी के संपादकीय में कहा गया कि मणिपुर से यात्रा शुरू करने का विशेष महत्व है.

संपादकीय में कहा गया, “हर कोई इस छोटे राज्य में हुईं भयावह घटनाओं से अवगत है और यह दिल दहला देने वाले हैं. जब हिंसा चल रही थी तब राहुल गांधी ने मणिपुर का दौरा किया था. अब, उसी संघर्षग्रस्त क्षेत्र से अपनी यात्रा शुरू करते हुए राहुल और कांग्रेस पार्टी का लक्ष्य मणिपुर के लोगों के बीच विश्वास पैदा करना और उनके घावों को भरने का प्रयास करना है. इस संदर्भ में यह प्रक्रिया महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब प्रधानमंत्री ने अब तक मणिपुर का दौरा नहीं किया है. राष्ट्रीय मीडिया इस यात्रा के महत्व को कम कर सकता है, लेकिन इस संदेश की ताकत लोगों तक पहुंचेगी.”

सियासत और सहारा भी यात्रा को लेकर उत्साहित दिखे. 15 जनवरी को अपने संपादकीय में सियासत ने कहा कि मणिपुर दौरे के बाद कई “सकारात्मक बदलाव” हुए हैं. राहुल की छवि में सुधार हुआ है क्योंकि “लोग अब उनकी राय को महत्व दे रहे हैं”.

इसने लिखा, “राहुल गांधी को (नरेंद्र मोदी के) उभरते नेता और विकल्प के रूप में देखा जा रहा है. चूंकि वह भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण में हैं, इसलिए लोगों की भावनाओं को समझना महत्वपूर्ण है. प्रेम और भाईचारे के संदेश फैलाकर चल रहे विभाजन पर बात करने की ज़रूरत है. लोगों की चिंताओं के प्रति प्रतिक्रियाओं को उनके विचारों के अनुरूप एक समावेशी वातावरण बनाने के लिए व्यापक और प्रभावी कदमों का मार्गदर्शन करना चाहिए.”

ध्रुवीकरण का मुकाबला करने और लोगों के मुद्दों पर बात करने की ज़रूरत पर जोर देते हुए संपादकीय ने कांग्रेस से रणनीतिक रूप से सोशल मीडिया का उपयोग करने और यात्रा के खिलाफ नकारात्मक प्रचार का मुकाबला करने के लिए एक सुव्यवस्थित योजना तैयार करने का आग्रह किया.

इंकलाब की तरह सहारा ने भी मणिपुर से यात्रा की इस पुनरावृत्ति को शुरू करने के “रणनीतिक विकल्प” की सराहना की. 15 जनवरी को इसके संपादकीय में कहा गया कि यात्रा के दौरान राहुल ने केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर भाजपा और उसकी सरकारों पर निशाना साधा.

यात्रा का उद्देश्य सत्तारूढ़ दल के खिलाफ कांग्रेस के रुख पर ध्यान आकर्षित करना है. “इसके जरिए कांग्रेस का लक्ष्य सफल भारत जोड़ो यात्रा के समान, लोगों के साथ संबंध को बढ़ावा देना, जहां भी यात्रा हो, पर्याप्त समर्थन सुनिश्चित करना है.”

ईरान बनाम पाकिस्तान

बलूचिस्तान में हवाई हमले के बाद चल रहे ईरान-पाकिस्तान राजनयिक तनाव का उल्लेख 19 जनवरी को सियासत के संपादकीय में किया गया था जिसमें जोर दिया गया था कि “आतंकवाद के मुद्दे को आरोपों के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता है”.

यह तेहरान के दावे का ज़िक्र कर रहा था कि यह हमला ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत में एक पुलिस थाने पर दिसंबर में हुए हमले के बाद सुन्नी आतंकवादी समूह जैश अल-अदल या “न्याय की सेना” को निशाना बनाने के लिए था.

सियासत के संपादकीय में दोनों देशों से एक-दूसरे की वैध चिंताओं को स्वीकार करने, सहयोगात्मक रूप से काम करने और तनाव बढ़ाने वाले कार्यों से बचने का आग्रह किया गया. इसमें कहा गया, “पूरे क्षेत्र पर संघर्ष के संभावित नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए ईरान और पाकिस्तान को आरोपों को गंभीरता से संबोधित करने और क्षेत्रीय शांति की दिशा में काम करने की ज़रूरत है.”


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केजरीवाल की चुनौतियां और शिवसेना का संकट

18 जनवरी को अपने संपादकीय में सहारा ने अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार के लिए चुनौती पर चर्चा की, खासकर जब उनकी पार्टी के कई नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की बात आती है.

पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और राज्यसभा सांसद संजय सिंह जैसे आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख नेताओं को सरकार की अब समाप्त हो चुकी शराब नीति में कथित अनियमितताओं को लेकर गिरफ्तार किया गया है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी कई बार केजरीवाल को पूछताछ के लिए बुलाया है, हालांकि, उन्हें प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है — जो ईडी की एफआईआर के बराबर है.

संपादकीय के अनुसार, हालांकि, पिछले दो साल में आरोप केवल बढ़े हैं, “केजरीवाल आरोप लगाने वालों की पहचान करने और उनका सामना करने में माहिर हैं”.

उदाहरण के तौर पर गरीबों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली प्रदान करने के दिल्ली सरकार के फैसले का हवाला देते हुए इसमें कहा गया है, “भयानक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, केजरीवाल रणनीतिक रूप से बहुमुखी हमलों से निपटते हैं, उन्हें कमज़ोर करने की कोशिश करने वाली ताकतों के खिलाफ एकजुट होते हैं.”

18 जनवरी को अपने संपादकीय में इंकलाब ने सेना बनाम सेना की लड़ाई और एकनाथ शिंदे गुट को वैध मानने के महाराष्ट्र अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के फैसले पर चर्चा की. फैसले से पहले महाराष्ट्र विधानसभा में हुई सुनवाई के बारे में बोलते हुए, इसने शिंदे गुट के सदस्यों द्वारा अपना मामला पेश करते समय दिखाए गए “विश्वास” पर प्रकाश डाला, जिसका अर्थ था कि मामले का परिणाम एक जैसा दिया गया था.

शिवसेना के दो गुटों की क्रॉस-याचिकाओं पर फैसला लेते समय स्पीकर नार्वेकर, जो पहले अविभाजित शिवसेना के नेता थे, लेकिन वर्तमान में सत्तारूढ़ भाजपा के साथ हैं, ने 2018 संशोधन पार्टी के संविधान को अमान्य घोषित कर दिया. 2018 के संशोधन ने उद्धव ठाकरे को “पक्ष प्रमुख” या शिवसेना का प्रमुख बना दिया.

संपादकीय में कहा गया है, “ऐसा आत्मविश्वास खुद बोलता है और इसके लिए किसी और स्पष्टीकरण की ज़रूरत नहीं है. संपादकीय में कहा गया है कि उद्धव ठाकरे गुट ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपने मामले की शीघ्र सुनवाई की मांग की.”

इसमें कहा गया है, “यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि इस आवेदन को कितनी तेज़ी से निपटाया जाएगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में इस समय बहुत सारे मामले हैं.” , “हालांकि, उम्मीद है कि यह याचिका स्वीकार कर ली जाएगी क्योंकि इसमें भविष्य में (ऐसी किसी भी) राजनीतिक उथल-पुथल को रोकना और आरोपों को संबोधित करना शामिल है कि ऐसे मामलों को शक्ति या धन के माध्यम से हेरफेर किया जा रहा है.”

मालदीव संकट और उड़ान में देरी

इंकलाब ने 19 जनवरी को एक संपादकीय में मालदीव के तीन मंत्रियों द्वारा मोदी के बारे में विवादास्पद टिप्पणियों के बाद राजनयिक विवाद का ज़िक्र करते हुए कहा, भारत को मालदीव को खुश करने की ज़रूरत है.

संपादकीय में विवाद को हिंद महासागर पर चीनी प्रभाव के चश्मे से देखा गया.

चीन एक विस्तारवादी देश है, इसमें कहा गया है कि अगर खबरों पर विश्वास किया जाए, तो बीजिंग पहले ही भारतीय क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर दावा कर चुका है. संपादकीय में भारत को सतर्क रहने की चेतावनी देते हुए कहा गया, ”मालदीव में अपना प्रभाव फैलाने के पीछे भी यही कारण है.”

17 जनवरी को एक संपादकीय में सियासत ने अप्रत्याशित मौसम के कारण उड़ान में देरी और अराजकता पर प्रकाश डाला.

इसमें कहा गया है, “यात्रियों के साथ उचित संचार के अभाव के कारण हवाईअड्डों पर भ्रम और अव्यवस्था पैदा हुई है और इसका प्रभाव केवल उत्तर भारत तक ही सीमित नहीं है. उत्तरी मौसम से प्रभावित विमानन उद्योग को तत्काल सरकारी हस्तक्षेप की ज़रूरत है. विमानन क्षेत्र पर लंबे समय तक व्यवधान और प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के लिए सार्वजनिक भावनाओं को नियंत्रित करना और एयरलाइन अधिकारियों, हवाईअड्डा अधिकारियों और मौसम विज्ञानियों के बीच बेहतर समन्वय और तत्काल सरकारी कार्रवाई महत्वपूर्ण है.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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