नई पीढ़ी भले ही दक्षिण भारत से ताल्लुक रखने वाले दिग्गज नेता के कामराज को भुल चुकी हो लेकिन वर्तमान में देशभर में चल रही मिड-डे-मील और निःशुल्क शिक्षा की नींव कामराज ने ही डाली थी. समकालीन राजनीति में नेताओं में सत्ता पाने की लोलुपता जिस प्रकार से हावी हो गई है उनको कामराज से प्रेरणा लेनी चाहिए. वो ऐसे नेता थे जिसने संगठन को मज़बूत करने के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. तमिलनाडु के 3 तीन बार मुख्यमंत्री रहे, गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी कामराज को आजाद भारत का पहला ‘किंगमेकर’ भी कहा जाता है.
नाडर जाति में 15 जुलाई 1903 को विरुधुनगर, मदुरै (तमिलनाडु) में जन्में के. कामराज तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और ‘कांग्रेस पार्टी’ के अध्यक्ष तक बने. निचले स्तर से अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले के कामराज साठ के दशक में ‘कांग्रेस संगठन’ में सुधार के लिए ‘कामराज योजना’ प्रस्तुत करने के कारण विख्यात हुए.
महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित रहने वाले कामराज महज 16 वर्ष की उम्र में कांग्रेस में शामिल हो गए थे. भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही जिसकी वजह से उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा. जेल में रहते हुए ही उन्हें म्युनिसिपल काउंसिल का अध्यक्ष चुना गया था. कामराज जार्ज जोसेफ के नेतृत्व वाले ‘वायकॉम’ सत्याग्रह से राजनीति की तरफ झुकने लगे थे. कामराज ने मंदिरों से हरिजनों के बहिष्कार के खिलाफ 1920 जार्ज जोसेफ के नेतृत्व के सत्याग्रह में भाग लिया था.
मिड-डे मील योजना चलाने वाला मुख्यमंत्री
13 अप्रैल 1954 को पहली बार अनिच्छा के बाद मद्रास प्रोविन्स (अब तमिलनाडु) का मुख्यमंत्री बनने के बाद कामराज ने हर गांव में प्राइमरी स्कूल और हर पंचायत में हाईस्कूल और 11वीं तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की योजना को अमली जामा पहनाया.
उनके नेतृत्व में स्वतंत्र भारत में पहली बार मिड-डे मील योजना चलाई गई, साथ ही मद्रास के स्कूलों में मुफ्त यूनिफॉर्म योजना की शुरुआत भी उसी समय शुरू हुई थी, उनका मानना था कि गरीब तबके से आने वाले बच्चे एक टाइम का खाना तो अच्छे से खा सकेंगे.
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उनकी तारीफ करते रहते थे. एक बार नेहरू ने कहा था कि मद्रास भारत में सबसे अच्छा प्रशासित राज्य है. इसके पीछे कामराज का काम था. उन्होंने खेतों में सिंचाई और तमिलनाडु के गांवों में बिजली पहुंचाने के मामले में रिकॉर्ड काम किया था, जिसकी वजह से नेहरू उनके कायल थे. पंडित नेहरू कामराज पर बहुत भरोसा करते थे.
संगठन की चूलें कसने वाला ‘कामराज प्लान’
के कामराज ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से हैदराबाद में कहा कि कांग्रेस की संगठन से पकड़ कमजोर होती जा रही है. उन्होंने नेहरू को एक प्लान दिया, जिसे ‘कामराज प्लान’ के नाम से जाना जाता है. उन्होंने नेहरू को सुझाव दिया कि पार्टी के बड़े नेता सरकार में अपने पदों से इस्तीफा दे दें और अपनी ऊर्जा कांग्रेस की चूलें कसने के लिए लगाएं.
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इस प्लान के मुताबिक कामराज ने खुद दो अक्तूबर 1963 को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और लाल बहादुर शास्त्री, बीजू पटनायक, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई और एसके पाटिल जैसे बड़े नेताओं को इस्तीफा देना पड़ा. इस योजना के अंतर्गत करीब आधे दर्जन केंद्रीय मंत्रियों और करीब इतने ही मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा. यही योजना ‘कामराज प्लान’ के नाम से फेमस हुई.
भारतीय राजनीति में ऐसा माना जाता है कि इस प्लान की बदौलत वह केंद्र में इतने मजबूत हो गए कि जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने में उनकी भूमिका किंगमेकर की रही. इसके बाद वह तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे.
भारतीय राजनीति में सत्ता से जुड़े रहने के लिए सिद्धांतों के साथ समझौता करने वाले तमाम उदाहरण मिल जाएंगे. लेकिन कामराज ने अपनी पार्टी की कमजोर होती जड़ों को फिर से मजबूत करने के लिए न सिर्फ सत्ता को छोड़ा बल्कि नि:स्वार्थ राजनीति की नजीर पेश की. किंगमेकर कामराज ने कांग्रेस को दी थी नई दिशा पार्टी चाहे तो अब भी सीख ले सकती है.
नेहरू के बाद कौन?
1964 में पंडित नेहरू के गुजर जाने के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस में दो दावेदारों के बीच संघर्ष शुरू हुआ तो प्रधानमंत्री चुनने का सारा दारोमदार कामराज के कंधो पर आ गया, तब उन्होंने शास्त्री का समर्थन किया.
लाल बहादुर शास्त्री की जनवरी 1966 में मौत हो गई. मोरारजी देसाई ने सर्वसम्मति की बात मानने से इंकार कर दिया इस बार वे मतदान कराने की बात पर अडिग हो गए. सिंडीकेट ने कामराज का नाम दिया, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया. पश्चिम बंगाल के नेता अतुल्य घोष से कहा जिसे ठीक से हिंदी और अंग्रेजी न आती हो, उसे इस देश का पीएम नहीं बनना चाहिए.
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कामराज ने इंदिरा का समर्थन प्रधानमंत्री पद के लिए किया कुल 355 सांसदों का समर्थन पाकर प्रधानमंत्री बन गईं. कामराज ने भारत के दो प्रधानमंत्री बनाने में मुख्य भूमिका निभाई जिसकी वजह से उनको किंगमेकर कहा जाता है.
कैसे कमजोर हुआ ‘किंगमेकर’
1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कई राज्यों में हार गई लोकसभा में भी महज 285 सीटें मिलीं. कामराज तमिलनाडु में अपनी गृह विधानसभा विरदुनगर की सीट नहीं बचा पाए, जिसके बाद से इंदिरा गांधी ने भी उनको किनारे लगाने शुरू कर दिया.
इसके बाद केंद्र की राजनीति को छोड़ कामराज ने तमिलनाडु की तरफ रुख किया. 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें जीत मिली लेकिन संगठन के ज्यादातर नेताओं को हार का सामना करना पड़ा.
2 अक्टूबर 1975 को गांधी जयंती के दिन हार्टअटैक से उनकी मौत हो गई. उस समय वो 72 साल के थे.
लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कामराज को 1976 में मरणोपरांत ‘भारत रत्न‘ से नवाजा गया.