scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमसमाज-संस्कृतिमेल डोमिनेटिंग मुंबई फिल्म इंडस्ट्री सोसाइटी में हस्तक्षेप, योगदान, कर्मठता और बहादुरी की मिसाल थी लता मंगेशकर

मेल डोमिनेटिंग मुंबई फिल्म इंडस्ट्री सोसाइटी में हस्तक्षेप, योगदान, कर्मठता और बहादुरी की मिसाल थी लता मंगेशकर

लता मंगेशकर दरअसल में हिंदुस्तान की ज़ुबान है उसी का प्रतीक, जिनके होने से इस बात को आस्वस्ति मिलती थी कि हम अपने गहरे दुःख और गहरे आनंद के पलो में उनके साथ कोई साझा पल अपने लिए बटोरते थे, सहेजते थे.

Text Size:

सदियों  के आर पार गूंजने वाली आवाज़ का नाम है लता मंगेशकर. लता मंगेशकर इस देश की सांस्कृत्तिक पहचान रहीं हैं और अगर इसको अतिरेक न माना जाए तो ये कहना चाहिए कि वे उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम भारत की समावेशी कंपोजिट कल्चर का एक बहुत अहम हिस्सा और बड़ा मुकाम रही हैं.

दरअसल मे हिंदुस्तान की ज़ुबान है उसी का प्रतीक, जिनके होने से इस बात को आश्वस्ति मिलती थी कि हम अपने गहरे दुःख और गहरे आनंद के पलों में उनके साथ कोई साझा पल अपने लिए बटोरते थे, सहेजते थे.

एक आम स्त्री के लिए उन्मुक्त आकांक्षा और सपनों को उड़ान देने वाली जिजीविषा का नाम है लता मंगेशकर. लता मंगेशकर जब फिल्मों में आईं तो उस समय भले घर की स्त्रियों के लिए ये क्षेत्र वर्जित माना जाता था.  लेकिन लता मंगेशकर ने अपने हैसियत से, मेहनत से, अपने काम से, अपनी साधना से, ये तय किया कि कोई भी स्त्री अपना बड़ा काम कर सकती है और एक मुकाम रख सकती है अगर वो मेहनत करे. लता मंगेशकर ने सबके लिए दरवाज़ा खोले , आज हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में जो गायिकाओं को इतने बड़े मुकाम पर देखा जाता है और तमाम सारे लोग अपना करियर बना पाए उसकी नींव में  लता की सासें धड़कती हैं.

एक समय था जब म्यूजिक कंपनियों, रिकॉर्ड कंपनियों से लेकर एआईआर, दूरदर्शन कहीं भी पार्श्व गायक, गायिकाओं  के नाम नहीं लिए जाते थे और न लिखे जाते थे तब लता ने ये सुनिश्चित किया कि उनका नाम, उनकी लोकप्रियता भी स्थापित की जाए जिससे आम आदमी और आम श्रोता को भी ये पता चल सके की फलां आवाज़ के पीछे किसकी आवाज़ है , फलां किरदार के पीछे किसकी आवाज़ मौजूद है और आज इसका फायदा सभी को मिल रहा है.

जब वरिष्ठ गायक सिनेमा के खान मस्ताना बीमार हुए तो और लता को लगा उनकी स्थिति खराब है तो उन्होंने रॉयल्टी को लेकर मुहीम शुरू की जिसमे  उनको कई बार विवादों का सामना करना पड़ा. लेकिन रॉयल्टी को लेकर जो उन्होंने सैद्धांतिक लड़ाई लड़ी उसका फायदा नई पीढ़ी को मिल रहा है. और नया से नया नवोदित कलाकार भी एक गाना गाकर भी अपने करियर में आगे निकल जाता है तो उससे होने वाला लाभांश भी उस तक पहुंचता है ये लता मंगलेशकर हैं.

लता ने कभी दुअर्थी बोलों को वरियता नहीं दी बल्कि इस तरह के गानो से परहेज किया. और यही कारण था जब वे शिखर पर थीं तो उस दौर के दिग्गज गीतकारो को साहिर लुधियानवी, मजरूह सुल्तानपुरी, शेलेंद्र जैसे लोगो को भी रिकॉर्डिंग स्टूडियो में इस बात के लिए बैठना पड़ता था कि फलाना गाना जो लताजी गाने जा रही हैं उसमे कोई अमुक शब्द अगर उनको सटीक नहीं बैठता है तो उसे बदल सके. एक मेल डोमिनेटिंग मुंबई फिल्म इंडस्ट्री सोसाइटी में लता का ये हस्तक्षेप , ये योगदान, ये कर्मठता उनकी बहादुरी की मिसाल है.

लता ने तमाम तरह के गीत गाये, लगभग 36 से ज्यादा भाषाओं में गाने गाये और कभी उनको गाते हुए आप ये नहीं कहे सकते कि वे उस क्षेत्र या अंचल की गायिका नहीं है.  जब उन्होंने बंगाली में गाने गाये, जब उन्होंने रवींद्र संगीत गाया, नात गाये, अभंग गाये, गुरुवाणी गाई, शब्द कीर्तन गाया, कव्वाली गाई , भजन गाये, शास्त्रीय संगीत तो उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि आवाज़ की गरिमा, सुरों की सच्चाई और अपने गीत से लगाव उभरने चाहिए.

संवेदना सूत्र

उन्हें तमाम सारे गुरुओं ने छोटी-छोटी बात सिखाईं. अनिल विश्वास ने उन्हें बताया था कि गानों के बीच में बोल पढ़ते समय कब सांस लेनी है कि लोगों को ये पता न चले की कहां सांस ली गई और कहां सांस छोड़ी गई. मास्टर गुलाम हैदर ने बताया कि जब कोई गाना गया जाये तो उसके बोल इस तरह से स्पष्ट हों कि उसके शब्दों और अर्थो की मात्रा रेखांकित हो सके और धुन उस पर ओवरलैप न करे. ये लता थीं जिन्होंने अपने तलफ्फुज़ को ठीक करने के’ लिए उर्दू भाषा के गीत गाने के लिए बाकायदा एक मौलवी महबूब को लगा कर के उर्दू के रदीफ काफिया को समझने में मदद मिली.

जब वो गीता और ज्ञानेश्वरी जैसी चीज़े रिकॉर्ड कर रही थी तो अपने दौर के बड़े संस्कृतज्ञ गोनी दांडेकर से भी उन्होंने सीखा, संस्कृत के फोनोटिक्स पर काम किया और उसके बाद जाकर के गीता रिकॉर्ड की. इतना ही नहीं फिल्म संगीत के अपने शौहरत भरे करियर में, उन व्यस्तम दिनों में उनका नए प्रयोग करने का मन हुआ तो उन्होंने मीराबाई के भजन गाए, तुलसी दास की चौपाईयां गाईं. राम रत्न धन पायो जैसा रिकॉर्ड बनाया. पंडित भीम सैन जोशी के साथ राम श्याम गुणगान नाम का एल्बम तैयार किया. तो लता मंगेशकर थीं जो फिल्म संगीत में ही नहीं इससे बाहर भी उनका दायरा जाता है.

दक्षिण एशियाई देशों में स्त्री की आवाज की जो पहचान हैं उसमें लता मंगेशकर अप्रतिम है. और आज के समय में उन्हें पूरी दुनिया में लोग सराहते हैं. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी लोग उनका सम्मान करते हैं. लता मंगेशकर एक ऐसी कड़ी हैं जो दो देशों के बीच में संवेदना के सूत्र पिरो सकती हैं. उन्हें जोड़कर रख सकती हैं. एक आम आदमी जो सिर्फ रेडियो पर गीत सुनता था जिसको आज की डेट में ये नहीं पता होगा कि सोशल मीडिया में फेसबुक और ट्विटर की क्या हैसियत है उसको भी लता मंगेशकर ने प्रभावित किया है.  उनके निधन पर देश के कई हिस्सों शोक मनाया गया होगा. उनकी सबकी प्रिय सच्ची, सुरीली साधिका उनके बीच नहीं है.

75 साल का देश 75 का हुआ लता करियर

मैं हमेशा से उनके सांस्कृतिक इतिहास को इसरूप में देखता आया कि जब देश आजाद हुआ उसी के साथ लता मंगेशकर का संगीत का करियर शुरू हुआ. ये देखने वाली बात है कि 1947 में जब आपकी सेवा में पा लागूं कर जोरी, श्याम मोसे खेलो न होरी गा रही थी. उसी समय देश आजाद हुआ. आज जब देश को आजाद हुए 75 साल हो गए हैं तो लता मंगेशकर का करियर भी 75 साल का हो गया है. तो अगर इसे एक रूपक के बहाने कहे तो यह कह सकते हैं कि जो इस देश के बनने का इतिहास है वही लता मंगेशकर के संगीत के जीवन की यात्रा भी है. लता मंगेशकर इस मामले में बहुत महत्वपूर्ण हैं कि जब वे दो मिनट के, तीन मिनट गीतो में अभिव्यक्तियां करती हैं तो उसमें शास्त्रीय संगीत के, लोक संगीत के कारण उनके पुकार तान के, उनके आलाप के और तमाम गुरुओं से और श्रेष्ठ गुणी जनों से सीखी हुईं चीज़ें शामिल होती हैं. उनके लिए तमाम तरह की एक्सपेरिमेंटल धुनें बनायी जाती थी. इसमें अनिल विश्वास, सलिल चौधरी, आरडी बर्मन, सज्जाद हुसैन, खय्याम जैसे लोग शामिल थे.

लता जी जटिल से जटिल गानों को भी सहज और सुगम करके गा देती थीं. शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत की तुलना में फिल्म संगीत को हमेशा कम तरजीह दी जाती है उसे ख़ास वर्ग का, प्रबुद्ध वर्ग का गायन माना जाता है लेकिन ये लता जी की शोहरत और कामयाबी का मामला था कि उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति का दमखम था कि बड़े बड़े संगीतज्ञ ने उनके आगे सिर नवाया और उनकी गायिकी के आगे अपनी गायिकी को छोटा माना. यह बात नहीं है कि उनकी गायिकियां छोटी थीं लेकिन उन्हें सम्मान दिए जाने का तरीका था.

पंडित जसराज कहते थे कि वो तो अच्छा है कि लता मंगेशकर शास्त्रीय संगीत में नहीं है, नहीं तो हम जैसों का क्या होगा.

आज के समय में जब आज मैं कह सकता हूं,  मैं कह रहा हूं कि इस देश सांस्कृतिक परिदृश्य अब दो समयों में बांट कर देखा जाएगा एक लता मंगेशकर के रहने के समय भारत और एक लता मंगेशकर के बाद भारत. तो तब लता जी को देखने, समझने, खोजने, और अन्वेषण करने लेकर उनसे प्रेरणा लेने का पूरा युग चलने वाला है.

मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत लता

लता जी इस मामले में अप्रतिम है कि उन्होंने सभी अभिव्यक्तियों को, सभी मानवीय संवेदनाओं को गाकर बड़ा बनाया. मैं व्यक्तिगत तौर पर यह जानता हूं कि लता जी ने कभी किसी भी अपने समकालीन पार्श्वगायक या गायिका के लिए या किसी गीतकार के लिए या किसी बड़े बैनर के लिए  या फिर आने वाले नवोदित गायकों के लिए कभी अपने मन में कोई ख़राब बात, कोई कड़वाहट नहीं पाली.  जब ये उनसे बात करते थे वे आदर से भरी हुई होती थीं. ये लता मंगेशकर थीं एक तरफ वो  उस्ताद बड़े गुलाम अली खां, सिद्धेश्वरी देवी और  बेगम अख्तर की कायल थीं तो सुदूर पाकिस्तान में मेहंदी हसन की गजलों की मुरीद थीं और फरीदा खानम की सहेली थी.

भारत के हिंदी फिल्म संगीत में उन्होंने दो बड़े नामों को एक प्रेरणा की तरह देखा जिसमें  केएल सहगल और  नूर जहां शामिल हैं. हालांकि, जब भी उनसे यह बात की जाती थी कि आपकी गायिकी बहुत महान है तो वह हमेशा मुझे टोकते हुए कहती थीं कि मुझसे पहले  केएल सहगल, नूर जहां, कनन देवी, जोहराबाई अंबाला, शमसाद बेगम, मुकेश भैया, मोहम्मद रफी हैं. यह उस महिला की उदारता है जिसको सबने अपने आगे बड़ा माना. जिनके लिए खुद नूर जहां कहती थीं कि लता तो लता हैं उनकी बराबरी तक कोई नहीं पहुंच सकता. यह हमारा सौभाग्य है कि हमने लता मंगेशकर के समय जन्म लिया और उन्हें सुनते, गाते हुए देखते हुए बड़े हुए.

तीन पीढ़ियों तक अपने सुरों से राज करने वाली अब इस देश की भावुकता को, इस देश की उत्सवधर्मिता को, इसे देश के हर आनंद के पलों में लता जी उपस्थित रहीं. ऐसा कोई घर नहीं होगा जहां बच्चा जन्म ले रहा हो, किसी की शादी हो रही हो और ऐसे मौकों पर लता मंगेशकर के गीत से सदके न लिया जाते हों. ये लता जी उपस्थिति का बहुत बड़ा आलम है कि उन्होंने पूरे देश को अपनी आवाज के सम्मोहन में बांध रखा था, इस सम्मोहन की लय हमेशा बरकरार रहेगी लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण वह सशरीर हमारे बीच नहीं रहेगी. ये चीज लता जी को देखते हुए समझ में आती है कि इन्होंने मृत्यु के सच को भी झुठला दिया था. लता ने अपने ही जीवन में तमाम सारे जीवन जी लिए थे. वे अमरता को और बड़ा बनाकर चली गईं.

उन्होंने नश्वरता के बहुत सारे गीत गाए- जो मैं चली फिर न मिलूंगी, नाम गुम जाएगा चेहरा यह बदल जाएगा, हमारे बाद महफिल में अफसाने बयां होंगे, रहें न रहे हम, तुम मुझे यूं भुला न पाओगे– इस तरह के गीतों में लता जी दार्शनिकता, उनकी ठोस तैयारी, उनका अभ्यास, कला प्रति उनका जुनून देखा जा सकता है. लता जी आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी कीर्ती-काया मौजूद है. हम उनके ही संगीत में डूबते उभरते हुए अमरता को टटोलते रहेंगे. ये भारी दुख और पीड़ा का समय है कि जो भारत का सांस्कृतिक परिदृश्य है उसमें लता जी अनुपस्थित है लेकिन समाज निर्माण में लता जी ने वही भूमिका निभाई है जो एक समय पर रविंद्रनाथ टैगोर, रुकमणी देवी, बाला सरस्वती,  प्रेमचंद, पंडित रविशंकर ने निभाई थी. लता जी अमर रहें, इस धरती पर जब-संगीत की बात होगी, जब आवाज की दुनिया का मामला खुलेगा, जब तक जीवन बचा रहेगा, लता जी यही रहने वाली हैं, यही हम सबकी सांसो में, हम सबकी आवाजों में और हम सब की साधना में लता जी मौजूद रहेंगी.

(यतींद्र मिश्र लता मंगेशकर के आधिकारिक जीवनीकार हैं. लता सुरगाथा के लेखक हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.)


यह भी पढ़ें: प्रेम को सुर दिए, व्यथा को कंधा और आंसुओं को तकिया अता की- फिर आना लता जी, आज फिर जीने की तमन्ना है


share & View comments