प्रयागराज: कुंभ में इस बार किन्नर अखाड़े की काफी चर्चा है. इसका कारण है कि पहली बार किन्नर अखाड़ा को इसमें जगह मिली है. लेकिन जितनी जद्दोजहद किन्नर अखाड़े को यहां जगह बनाने को लेकर करनी पड़ी है उतनी ही मुश्किलें इसके कई सदस्यों ने अपने जीवन में भी झेली हैं. इन्हीं में से एक सदस्य हैं महाराष्ट्र के अमरावती की रहने वाली आंचल जोगी.
आंचल पेशे से शिक्षक रही हैं. पहले बच्चों को ड्राॅइंग (चित्रकारी) सिखाती थीं. बच्चों को रंगों की जानकारी देने वाली आंचल ने जीवन में भी कई रंग देखे हैं. उनके मां-बाप को जब पता चला कि उनकी संतान किन्नर है तो उन्होंने उससे दूरी बनाना शुरू कर दिया. जब बेटे की शादी तय हो रही थी तो आंचल को बाहर निकलने से मना कर दिया. कारण था कि की बेटे के ससुराल वालों के सामने कहीं बेइज़्ज़ती न हो जाए. वहीं आस-पड़ोस वाले भी आए दिन ‘टेढ़ी नज़र’ से देखते थे और कई बार तंज भी कसते थे. एक दिन परेशान होकर आंचल घर से भाग कर किन्नर पार्वती माई के पास चली गईं. पार्वती के संपर्क में वह कई साल से थीं. घर वालों को ये सब स्वीकार नहीं था, लेकिन आखिरकार हालातों से उसे ‘आज़ादी’ मिल ही गई.
आंचल घर व नौकरी छोड़ अपनी गुरू के पास रहने लगीं. वहां अन्य किन्नर भी रहते थे लेकिन आंचल की दिलचस्पी पढ़ाई में बरकरार थी. वह किन्नरों के साथ जाती थी लेकिन उसका अधिकतर समय किताबें पढ़ने व चित्रकारी में बीतता. इसे ध्यान में रखते हुए उसकी गुरू ने उसे एक ट्रस्ट में एजुकेशन काउंसलर बनवा दिया. वहीं से आंचल का जीवन बदल गया. वह अब किन्नरों के बीच भी शिक्षा को लेकर जागरुकता बढ़ा रही हैं.
आंचल पार्वती माई की सबसे प्रिय शिष्या बन गईं. जहां भी पार्वती माई जाती हैं आंचल उनके साथ रहती हैं. इन दिनों वह कुंभ के किन्नर अखाड़े में रह रहा हैं. यहां पर वह भजन-कीर्तन भी करती हैं और शिक्षा के बारे में भी देश भर से आए किन्नरों को जागरुक करती हैं. आंचल का लक्ष्य है कि देशभर के निर्धन परिवारों के बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ कर सकें व किन्नर समाज में भी शिक्षा की अलख जगा पाएं.
जगह बनाने के लिए किन्नर समाज की मशक्कत
कुंभ में ऐसा पहली बार हो रहा है जब 13 अखाड़ों के अलावा किसी अन्य अखाड़े ने पेशवाई निकाली हो. पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता प्राप्त 13 अखाड़े ही पेशवाई निकालते थे लेकिन लंबी लड़ाई के बाद किन्नर अखाड़ों को कुंभ में एंट्री की इजाज़त मिली है.
किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी का कहना है कि कुंभ में एंट्री के लिए हम लोगों ने बड़ी लम्बी लड़ाई लड़ी है. काफी मेहनत और मशक्कत के बाद मंज़िल मिली है. उज्जैन में हमारा अखाड़ा स्थापित हुआ था. प्रयाग में इसका वजूद बरकरार है. ये कुंभ दर्शाता है मेरे भारत की विविधता और सनातन धर्म का विस्तार है कि वो हर एक जाति और हर एक लैंगिकता को अपने अंदर समाता है.
दिनभर रहती है सेल्फी के लिए भीड़
यूं तो सुबह से ही किन्नर अखाड़े में भक्तों की भीड़ लग लग जाती है, लेकिन श्रृंगार के बाद दोपहर में महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी सभी भक्तों से मिलती हैं और आशिर्वाद देती हैं. इस दौरान सेल्फी की भी काफी डिमांड रहती है. किन्नर अखाड़े में ही आर्ट विलेज बनाया गया है. इसमें चित्र प्रदर्शनी, कविता, कला प्रदर्शनी, फोटोग्राफी, साहित्य, स्थापत्य कला, नृत्य एवं संगीत आदि का आयोजन किया जा रहा है. इतिहास में रामायण, महाभारत आदि में किन्नरों के महत्व के बारे में भी लोग जान सकते हैं.
किन्नर अखाड़े की हर सदस्य की अलग कहानी है. उत्तर भारत की महामंडलेश्वर भवानी ने ख़ुद इस्लाम छोड़कर हिंदुत्व को अपनाया है. वह हज पर भी जा चुकी हैं. हालांकि, 2010 में इस्लाम धर्म को अपनाने से पहले वह हिंदू थीं. उनके मुताबिक, ‘मैं लगातार हो रहे भेदभाव से परेशान हो गई थी और इसलिए मैंने इस्लाम को अपनाया. हज पर भी गई. मुझे इस्लाम ने नमाज़ पढ़ने की आज़ादी दी, मुझे हज पर जाने दिया. जब मुझे मौका मिला कि मैं अपनी सनातन परंपरा में वापस आ जाऊं और इसमें रहकर अपने समाज के लिए कुछ कर सकती हूं तो मैं आ गई. घर वापसी की कोई सज़ा थोड़ी है.’
भले ही इस बार किन्नर अखाड़े को हिस्सा बनने का मौका मिल गया हो, लेकिन समाज का एक बड़ा हिस्सा उन्हें स्वीकार करने से बचता आया है. आज किन्नर अखाड़े की चर्चा हर ओर है. कोई उनके श्रृंगार की चर्चा करता है तो कोई उनकी पेशवाई की, लेकिन इन सब के बीच अखाड़े के हर सदस्य की अपनी कहानी है जो कि आइने की तरह हमारे समाज का दूसरा चेहरा भी दिखाती है.