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Friday, 29 March, 2024
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21वीं सदी में करवा चौथ व्रत का औचित्य क्या?

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अगर करवा चौथ व्रत करने से उम्र बढ़ती है तो पति क्या पत्नियों की लंबी उम्र नहीं चाहते.

नई दिल्ली: छठ, बहुराचौथ, तीज, करवा चौथ लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती कुछ और भी व्रत-उपवास जरूर बाकी होंगे. सूर्यदेव, शंकर जी और फिर चांद से कभी बेटे तो कभी पति की सलामती और उनकी लंबी उम्र की कामना. अब क्योंकि मौका करवा चौथ का है तो आज उसी की बात. तो इस रोमांटिक व्रत की प्रक्रिया कुछ यूं है कि पति के लिए सारा दिन उपवास रखो और फिर पति के ही पैर छूकर उससे सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद पाओ.

मतलब जिसके लिए व्रत रखा अब वह खुद ही के जीने का आशीर्वाद भी देगा. ये तो कुछ यूं हुआ ‘पति का, पति के लिए, पति द्वारा’ दिया गया लंबी जिंदगी का वरदान. जाहिर जब देश की सरकारों को अब तक समझ नहीं आया कि जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन का होना ही सच्चे लोकतंत्र का मूल है तो फिर भला आम जन को कैसे समझ में आएगा कि पति का खुद को आशीर्वाद देने के लिए आखिर पत्नी के सिर की जरूरत क्या है? तो मन में बचपन से उठने वाला पहला सवाल तो ये रहा.

दूसरा सवाल उन डरावनी कथाओं को सुनने के बाद उठता रहा मेरे मन में जिसमें व्रत में जरा सी भी गलती होने पर ईश्वर क्रुद्ध होकर श्राप दे देते थे. करवा चौथ की कथा में भी ईश्वर के भीतर छिपे एक क्रूर खलनायक का जिक्र किया गया है. कैसे? तो सुनिए कथा, ध्यान से सुनिएगा.

संक्षेप में सुनिए, ‘एक बार की बात है एक बहन अपने भाई के घर करवा चौथ का व्रत करने आई थी. बहन सात भाइयों में अकेली थी सो भाइयों से अपनी बहन की भूख-प्यास बर्दाश्त न हुई और चांद निकलने से पहले उन्होंने चलनी के पीछे से दिया दिखाकर बहन को भ्रमित कर उसका व्रत खुलवा दिया. पता है फिर क्या हुआ, उसका पति मर गया. हालांकि वह लड़की भी कम जिद्दी न थी कैसे-कैसे कर अपने पति को एक साल बाद जीवित कर ही लिया.’ हर व्रत के पीछे एक ऐसी ही डरावनी कथा बनाकर औरतों को डराया जाता है फिर अंत में उस औरत को पतिव्रता साबित कर दिया जाता है.

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तो क्या आस्था खौफ से उपजा एक मनोभाव है? बिल्कुल वैसे ही जैसे जीवन बीमा वाले डरा-डराकर अपना कारोबार चलाते हैं. अगर आपको कुछ हो गया तो परिवार का क्या होगा? बच्चों का क्या होगा? उनकी जिंदगी कैसे चलेगी? और एजेंट आपको आपकी मौत की कल्पना के अंतिम छोर तक ले जाते हैं. पसीने पसीने हुए आप फौरन बीमा के लिए राजी हो जाते हैं. क्या बीमा कंपनियां और ईश्वर ‘खौफ’ के अपना कारोबार चलाते हैं. अगर मौत का खौफ न रहे तो बीमा कंपनियां और ईश्वर की आस्था दोनों खत्म हो जाएंगे!

बीमा कंपनियों के एजेंट की चाल तो समझ आती है लेकिन दयानिधि कहा जाने वाला ईश्वर इतना निर्दयी नहीं हो सकता. अगर वह ईश्वर है तो!

तीसरा सवाल इन व्रतों को लेकर जो मेरे ही नहीं ज्यादातर लड़कियों के मन में रह-रहकर उठता है कि क्या इस दुनिया में नर की सलामती की दुआ की ही जरूरत है, मादा की नहीं? तो इसका जवाब शायद ये हो सकता है कि पहले जब सभ्यता का विकास नहीं हुआ था तो खाने की तलाश में पुरुष खाने की खोज में जंगलों में जाते थे. फिर थोड़ा विकास हुआ तो व्यापार के लिए सालों साल जहाजों के जरिए एक देश से दूसरे देश का सफर तय करते थे. ऐसे में कब कोई जंगली जानवर उन पर हमला करेगा और कब कोई समुद्द की लहर जहाज को डुबा देगी किसी को पता नहीं था इसलिए घर की औरतें डरी-सहमी ईश्वर से उनके जीवित रहने की कामना करती रही होंगी. लेकिन अब स्त्रियां और पुरुष दोनों जिंदगी के हर खतरे से रू-ब-रू होते हैं तो आज के समय ये व्रत सिवाए परंपराओं की लकीरों पर चलने के अलावा कुछ नहीं हैं.

आज शाम को जब चांद निकलेगा तो पतियों की लंबी उम्र की कामना करने वाली औरतों के साथ अपने प्रेमियों की सलामती के लिए कुछ अविवाहित लड़कियां भी उसके दीदार के लिए खड़ी होंगी. हालांकि कई बार यूं भी हुआ है प्रेमियों के लिए व्रत रखने वाली लड़कियों का विवाह किसी और लड़के से भी हो गया है. अच्छा चांद जमीन पर नहीं आ सकता नहीं तो न जाने कितनों की पोल खुल जाती. अभी एक नया चलन यह भी है कि पति भी पत्नियों के लिए करवाचौथ करते हैं. ना, ना इसे शुरू हुई कोई नई परंपरा समझने की भूल मत कीजिएगा.

ये कुछ वैसा ही है कि मर्सडीज से उतर कर एक भक्त भगवान के मंदिर में पोछा लगाए. एक काम करने वाली बाई आकर रोज मंदिर में झाड़ू-कटका करे. उससे भी जरा सी भी गलती होगी तो उसे कोसा जाएगा और उस धनी औरत के फूहड़ तरह से लगाए पोछे पर भी उसके गुणगान पुजारी खुद गाएगा.

दरअसल जरूरी ये नहीं कि पति भी व्रत करना शुरू कर दें. जरूरी ये है कि वे इन परंपराओं का विरोध करें. अब इस पर पुरुष कहेंगे भाई हमने कब कहा कि व्रत करो! नहीं, नहीं, आपको अपनी पत्नियों से नहीं बल्कि अपनी मां, बहन के सामने कहना होगा कि ये फालतू के रीति-रिवाज अब घर में नहीं चलेंगे. पति पत्नी के संबंध में कोई न ऊंचा है न कोई नीचा. किसी व्रत-उपवास से न प्यार बढ़ता है और न उम्र. ना ये वैज्ञानिक है, ना ये भावनात्मक है और ना ही ये रोमांटिक है…तो क्या इस बार पति अपने घर में ‘जेंडर बायस्ड’ की ऐसी धारणाओं के खिलाफ खोलेंगे मोर्चा. क्या छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी…!

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