नई दिल्ली: जिस भाषा में ज्ञानकोश नहीं है वह भाषा अपंग है. ज्ञान कोष विहीन भाषा दरिद्रता युक्त हो जाती है. हिंदी में सौ साल पहले ज्ञानकोष आया था. लेकिन, वह हिंदी की उत्पत्ति नहीं थी. यह कहना है हिंदी साहित्य ज्ञानकोश के संपादक शंभूनाथ का. शंभुनाथ ने दिप्रिंट को बताया कि ‘हिन्दी भाषी लेखकों और आम लोगों में उस जातीयता का बोध नहीं ,जो दूसरी भाषाओं के लेखकों में है. उन्होंने कहा कि यही वजह है कि अन्य भाषाओं की तुलना में हिंदी में ज्ञानकोश पर काम नहीं हुआ या ये कहूं कि काफी देर से हुआ.
‘हिंदी साहित्य में व्यक्तिवाद और आंतरिक कलह अधिक है. अगर हमने ‘हिंदी’ की ताकत को समझा होता तो हिंदी ज्ञानकोश बहुत पहले तैयार हो गया होता. यह हिंदी की सांस्कृतिक गरिमा का प्रतीक है.’
शंभूनाथ ने कहा, ‘हिन्दी की प्रकृति और भूमिका अन्य भारतीय भाषाओं से विशिष्ट है. इसलिए ज्ञानकोश में हिन्दी राज्यों के अलावा दक्षिण भारत, उत्तर-पूर्व और अन्य भारतीय क्षेत्रों की भाषाओं-संस्कृतियों से भी परिचय कराने की कोशिश है.’
275 लेखकों की है मेहनत
सात खंडों में आए इस ज्ञान कोष में 4560 पृष्ठ है और इसे तैयार करने मेें पांच साल लगे. इसमें हिंदी साहित्य से संबंधित इतिहास, साहित्य सिद्धांत के साथ-साथ सामाजिक विज्ञान, धर्म, भारतीय संस्कृति, मानवाधिकार, पौराणिक चरित्र, पर्यावरण, पश्चिमी सिद्धांतकार, अनुवाद सिद्धांत, नवजागरण और वैश्विकरण उत्तर औपनिवेशिक विमर्श आदि कुछ 32 विषय हैं. वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक श्री अरुण माहेश्वरी ने बताया कि इसमें हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश में 2660 प्रविष्टियां आई थीं. यह पांच साल की मेहनत का नतीज़ा है. इसमें हिन्दी क्षेत्र की 48 लोक भाषाओं और कला-संस्कृति पर सामग्रियां एकत्रित की गई हैं. यह देश भर के लगभग 275 लेखकों के मेहनत की उपज है जिनकी वजह से उनके ऐतिहासिक सहयोग से यह ज्ञानकोश बन पाया है.
हिंदी का पहला ज्ञानकोष
शंभुनाथ ने कहा, ‘पिछले पचास सालों में दुनिया में ज्ञान का विस्फोट हुआ है, उनकी रोशनी में एक तरह से भारतीय भाषाओं में हिन्दी में बना यह पहला ज्ञानकोश है. यह हिंदी पाठकों से लेकर विद्यार्थियों और आम हिन्दी पाठकों को बौद्धिक संबंल प्रदान करेगा.
उन्होंने कहा कि हिन्दी का पहला ‘हिन्दी विश्वकोश’ नगेन्द्रनाथ बसु के सम्पादन में 1916 से 1931 के बीच तैयार किया गया था. लेकिन इसे हिंदी का शब्दकोष कहना गलत होगा क्योंकि यह उनके बांग्ला विश्वकोश का ही हिन्दी अनुवाद था. इसके बाद ‘हिन्दी साहित्य कोश’ 1956 में आया था. नागरी प्रचारिणी सभा ने 1960 से 70 के बीच हिन्दी विश्वकोश प्रकाशित किया था. लेकिन वह भी पूरी तरह से हिंदी अब इसके बाद भारतीय भाषा परिषद के ‘हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश’ को बड़े रूप में सामने लाया है. वहीं यह भी बताया गया कि आने वाले समय में हर साल इसमें संशोधन किया जाएगा और उनसे पाठकों को परिचित कराया जाएगा. इसमें डिजिटल को संस्करण भी जल्द ही सामने लाया जाएगा.
शंभूनाथ ने कहा कि अंग्रेजी सहित अलग-अलग विधाओं में तो बहुत काम हुआ है लेकिन किसी ने हिंदी की क्षमता को नहीं पहचाना. जबकि हिंदी 21वीं सदी के अत्याधुनिक मोड़ पर है. उन्होंने कहा कि हिंदी के मामले में विकीपीडिया पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि हिन्दी को लेकर बहुत ही भ्रामक और सीमित सूचनाएं हैं.
क्यों नहीं आया अभी तक हिंदी में शब्द कोश
शंभुनाथ ने दिप्रिंट से विशेष बातचीत में कहा कि ‘हिन्दी भाषी लेखकों और आम लोगों में उस जातीयता का बोध नहीं जो अन्य भाषाओं के लेखकों में है. यही वजह है कि अन्य भाषाओं की तुलना हिंदी में ज्ञानकोष पर काम देर से हुआ. हिंदी साहित्य में व्यक्तिवाद और आंतरिक कलह अधिक है.’ अगर हमने ख़ुद को ‘हिंदी’ समझा होता तो यह बहुत पहले तैयार हो गया होता. यह हिंदी की सांस्कृतिक गरिमा का प्रतीक है. शंभूनाथ ने कहा, ‘हिन्दी की प्रकृति और भूमिका अन्य भारतीय भाषाओं से विशिष्ट है. इसलिए ज्ञानकोश में हिन्दी राज्यों के अलावा दक्षिण भारत, उत्तर-पूर्व और अन्य भारतीय क्षेत्रों की भाषाओं-संस्कृतियों से भी परिचय कराने की कोशिश है.’
वहीं प्रकाशक अरुण मेहेश्वरी ने कहा कि इस ज्ञानकोश के माध्यम से हिंदी के लिए नई खिड़कियां खोलने की कोशिश की है. हिंदी जो सिर्फ साहित्य तक सीमित रह गया था.लेकिन हिंदी अब विशाल क्षेत्र बन चुका है.