नई दिल्ली: आगामी विधानसभा चुनाव, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और पंजाब के मुद्दे अब तेजी के साथ उर्दू अखबारों के समाचारों में प्रमुखता पा रहे हैं लेकिन हरिद्वार धर्म संसद में कथित तौर पर नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले में ‘पुलिसया कार्रवाई की कमी’ और देश में बिगड़ते माहौल का मुसलमानों के लिए क्या मायने हैं, वाले विषय से उनका ध्यान अभी हटा नहीं है.
कोविड महामारी की स्थिति गंभीर बनी हुई है और इस वजह से इसकी खबरें भी सप्ताह के लगभग हर दिन पहले पन्ने पर थी.
दिप्रिंट आपके लिए इस सप्ताह उर्दू प्रेस में क्या कुछ सुर्खियां बटोर रहा है और कुछ प्रमुख समाचार पत्रों के संपादकीय रुख का एक राउंडअप लेकर आया है.
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‘हेट स्पीच’ और मुसलमानों के लिए इसके संदेश
हरिद्वार धर्म संसद के दौरान कथित तौर पर दिए गए घृणास्पद भाषणों (‘हेट स्पीच) पर ‘कार्रवाई की कमी’ से संबंधित कई सारे आलेख सप्ताह के अधिकांश समय उर्दू अखबारों के पन्नों के शीर्ष पर रहे. 18 जनवरी को पहले पन्ने पर छपे अपने संपादकीय में ‘इंकलाब’ ने दावा किया कि जब से नरेंद्र मोदी ने 2019 में दूसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभाला है, तब से मुस्लिम संगठन प्रधानमंत्री से मिले ही नहीं हैं. अख़बार लिखता है यह जरूरी है और ‘मिलना जरूरी है’ वाले शीर्षक के साथ लिखे गए संपादकीय में इस अखबार का कहना है कि लगातार नफरत उगलने वाले भाषणों को देखते हुए उनसे मिलना और उनसे यह पूछना कि ‘मुस्लिम समुदाय ने क्या गलत किया है जो उससे इस तरह का व्यव्हार किया जा रहा है’, बहुत जरूरी है.
इसी अखबार ने 17 जनवरी को अपने पहले पन्ने की सबसे प्रमुख खबर के रूप में हरिद्वार में नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले में हस्तक्षेप करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाने वाले पूर्व सैन्य अधिकारियों से संबंधित एक रिपोर्ट भी छापी थी. याचिकाकर्ताओं ने कथित तौर पर इसे आजादी के बाद इस तरह की भाषा के इस्तेमाल का पहला मामला बताया और कहा कि इस प्रवृत्ति से देश की भलाई के लिए खतरा पैदा होता है.
उस खबर के साथ ही एक खबर छापी गयी थी कि कैसे कर्नाटक के उडुपी जिले के एक सरकारी कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों को सिर्फ इस वजह से गैरहाजिर घोषित किया जा रहा था क्योंकि उन्होंने हिजाब पहन रखा था. ‘रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा’ ने एक दिन बाद अपने पहले पन्ने पर उसी खबर का फॉलो-अप छापा.
रोज़नामा के 18 जनवरी के संपादकीय में यह बात कही गई है कि जितेंद्र त्यागी (पूर्व में वसीम रिज़वी, जिसे हरिद्वार धर्म संसद में कथित रूप से घृणास्पद भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था) जैसे अपराधियों को कानूनी कार्रवाई का सामना करने में काफी समय लग सकता है- जब तक कि उसका अपराध अदालत में साबित नहीं हो जाता- परंतु इस तरह की अभद्र भाषा से समूचे देश की छवि खराब होती है. एक दिन बाद, इसी मामले में इसके प्रमुख खबर के माध्यम से मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री से यह पूछा कि वह मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषणों पर अपनी ‘चुप्पी’ के साथ भारत और बाकी दुनिया के मुसलमानों को क्या संदेश देना चाहते हैं?
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कोविड के लिए दवाएं
15 जनवरी को, ‘सियासत’ ने कोविड के इलाज के लिए दो नई दवाओं की सिफारिश के बारे में प्रमुखता से खबर छापी. इसमें गंभीर बीमारी के लिए ‘बारिसिटिनिब’ और गैर-गंभीर बीमारी के लिए ‘सोट्रोविमैब’ (जिसकी ओमिक्रॉन संस्करण के खिलाफ प्रभावकारिता पर और अधिक डेटा अभी लंबित है) का जिक्र किया गया था.
21 जनवरी को, रोज़नामा ने अपने पहले पन्ने की सबसे प्रमुख खबर के रूप में दिल्ली में 24 घंटे दौरान कोविड से 43 मौतों की खबर को छापा. इससे एक दिन पहले, कोविड से अपनी जान गंवाने वाले लोगों को दिए जाने वाले मुआवजे के सिलसिले में जिस तरह का तरीका राज्यों में अपनाया जा रहा है, उस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जाहिर की गई नाखुशी के बारे में पहले पन्ने पर खबर छापी गई थी.
19 जनवरी को लिखे गए एक संपादकीय में ‘रोज़नामा’ ने कोविड प्रोटोकॉल के साथ स्कूलों को फिर से खोलने के पक्ष में तर्क दिया, ताकि बच्चे अपनी तालीम (शिक्षा) फिर से शुरू कर सकें. अखबार का कहना था कि इसका विकल्प ‘अज्ञानता में डूबी पीढ़ी’ ही होगी.
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र द्वारा दिया गया यह हलफनामा कि कोविड के टीके को जबरिया नहीं लगाया जा सकता है, सियासत और रोज़नामा दोनों के पहले पन्नों पर छापा गया था.
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उत्तर प्रदेश में चुनावी जंग
जैसा कि अगले कुछ हफ्तों में होने की उम्मीद है, उत्तर प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम ने अधिकांश उर्दू अखबारों के पहले पन्ने की सुर्खियां बटरोनी शुरू कर दी हैं. 20 जनवरी को, इंकलाब और सियासत ने समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की सौतेली बहू अपर्णा यादव के भाजपा में शामिल होने की खबर को प्रमुखता से छापा. सियासत ने उत्तर प्रदेश में अपना दल और निषाद पार्टी के साथ भाजपा के चुनावी गठबंधन को अंतिम रूप देने की खबर को भी पहले पन्ने पर जगह दी.
इससे कुछ दिन पहले, 15 जनवरी को, छापे गए एक संपादकीय में, सियासत ने लिखा था कि उत्तर प्रदेश ने विभिन्न दलों के नेताओं के चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल होने की सामान्य प्रवृत्ति को पलट दिया है. इसके बजाय, इसे यूपी में कई भाजपा विधायकों को खोना पड़ा और ऐसा लगता है कि इसी वजह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो ‘खुद को सबसे अच्छा मानते हैं’, को एक दलित के घर में भोजन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है.’
20 जनवरी को लिखे गए एक अन्य संपादकीय में, सियासत ने लिखा कि भाजपा न केवल उत्तर प्रदेश में, बल्कि उत्तराखंड में भी एक कठिन लड़ाई का सामना कर रही है और इस बात की पुष्टि उसके अपने आंतरिक सर्वेक्षणों से भी हुई है. इसने पहाड़ी राज्य की स्थिति को भाजपा के लिए ‘सब्र का इम्तेहान’ करार दिया. 18 जनवरी को, कई पार्टियों की अपील के बाद पंजाब में चुनाव टाले जाने की खबर को भी तीनों अखबारों के पहले पन्ने पर छापा गया.
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क्लब हाउस और मुस्लिम महिलाएं
दिल्ली महिला आयोग द्वारा ‘क्लबहाउस’ ऐप पर किये गए एक चैट के दौरान मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी वाले मामले में ‘कार्रवाई’ की कथित कमी पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किये जाने की खबर को इंकलाब और सियासत दोनों ने 19 जनवरी को अपने पहले पन्ने पर जगह दी थी.
इंकलाब ने लिखा है कि दिल्ली महिला आयोग की प्रमुख स्वाति मालीवाल ने इस मामले को उठाया था और सोशल मीडिया पर इसके ‘बड़े पैमाने पर हुए विरोध’ के बाद पुलिस से प्राथमिकी दर्ज करने का आग्रह किया था.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में मोदी का भाषण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘वर्चुअल वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ में दिया गया संबोधन 18 जनवरी को सभी उर्दू अखबारों के पहले पन्ने पर था. एक ओर जहां इंकलाब और रोज़नामा की सुर्खियों में निवेशकों को उनके निमंत्रण के बारे में बात गयी थी, वहीं सियासत ने क्रिप्टोकरेंसी जैसे मुद्दों को हल करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर जोर दिया.
एक दिन बाद, इंकलाब ने अपने पहले पन्ने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस व्यंग्यात्मक बयान को भी छापा कि प्रधानमंत्री ‘इतना झूठ बोलते हैं कि टेलीप्रॉम्प्टर भी इसे सहन नहीं कर सका’. यह प्रधानमंत्री के भाषण में एक अचानक आये विराम के संदर्भ में किया गया था, जिसके लिए गलती से टेलीप्रॉम्प्टर में हुई कथित गड़बड़ को जिम्मेदार ठहराया गया था.
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