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Friday, 27 December, 2024
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वाराणसी के ज्ञानवापी से लेकर दिल्ली के कुतुब मीनार तक – ‘पूजा के अधिकार’ पर उर्दू प्रेस का फोकस

उर्दू मीडिया ने इस सप्ताह किन खबरों को प्रमुखता से छापा और अपने संपादकीय पेजों पर क्या कुछ लिखा, इस पर दिप्रिंट का राउंड-अप

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नई दिल्ली: वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और कुतुब मीनार में पूजा के अधिकारों के लिए चल रही कानूनी लड़ाई और शाही ईदगाह बनाम कृष्ण जन्मभूमि मामला उर्दू अखबारों में इस हफ्ते छाया रहा. वहीं, कश्मीरी अलगाववादी यासीन मलिक की उम्रकैद और क्वाड सम्मेलन में भारत की उपस्थिति जैसी खबरें भी लगातार सुर्खियों में रहीं.

अखबारों ने मोदी सरकार के आठ साल के कार्यकाल पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया, मदरसों में कम उपस्थिति और मीडिया द्वारा इजरायल-फिलिस्तीन संकट जैसे मुद्दों को छुआ.

दिप्रिंट इस सप्ताह उर्दू प्रेस की सुर्खियों में रही खबरों और संपादकीय को लेकर आया है.

ज्ञानवापी, शाही ईदगाह और कुतुब मीनार

23 मई को रोजनामा, राष्ट्रीय सहारा और इंकलाब ने ज्ञानवापी मस्जिद दीवानी मुकदमे को वाराणसी जिला अदालत में स्थानांतरित करने के सुप्रीम कोर्ट की खबर को पहले पन्ने पर प्रकाशित किया.

जहां हिंदू महिलाओं का एक समूह मस्जिद के अंदर हिंदू देवी मां श्रृंगार गौरी की पूजा के अधिकार के लिए लड़ रहा है. वहीं, काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत या मुख्य पुजारी ने एक अदालत की निगरानी में सर्वे के दौरान मस्जिद में कथित तौर पर मंदिर के अंदर पाए गए ‘शिवलिंग’ की पूजा करने के अधिकार के लिए याचिका दायर की है. उधर मस्जिद ने दावा किया है कि जिसे ‘शिवलिंग’ बताया जा रहा है दरअसल वह एक फव्वारा है.

दोनों अखबारों ने कुतुब मीनार स्मारक के परिसर में हिंदू और जैन देवताओं की मूर्तियों की उपस्थिति के आधार पर पूजा करने के अधिकार के लिए दिल्ली की एक अदालत में हिंदुत्व समूहों द्वारा दायर एक याचिका पर लेख भी प्रकाशित किए.

ज्ञानवापी और कुतुब मीनार के मामलों में क्या चल रहा है इसकी एक रिपोर्ट रोजाना सहारा, इंकलाब और सियासत में छापी जाती है.

25 मई को सहारा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश के बारे में जानकारी दी जिसमें मथुरा की एक अदालत को चार महीने के भीतर कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद मुद्दे पर फैसला करने के लिए कहा गया था. शाही ईदगाह मस्जिद को उसके वर्तमान स्थान से हटाने के लिए यह कहते हुए एक याचिका दायर की गई है कि इसे भगवान कृष्ण के जन्म स्थान पर बनाया गया है.

विश्व हिंदू परिषद के इस दावे के बाद कि मस्जिद में खुदाई के दौरान मंदिर जैसी वास्तुकला मिली है. मंगलुरु की मलाली जुमा मस्जिद के 500 मीटर के भीतर बड़ी सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इस खबर को इंकलाब और सहारा ने अपने पहले पन्ने पर जगह दी.


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यासीन मलिक फैसला

26 मई को  इंकलाब और सहारा दोनों ने कश्मीरी अलगाववादी यासीन मलिक को 2017 के टेरर-फंडिंग मामले में एनआईए अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने की खबर को पहले पेज पर कवर किया.

सहारा ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी के संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेट को पत्र लिखकर भारत से मलिक को सभी आरोपों से बरी करने और जेल से उनकी शीघ्र रिहाई सुनिश्चित करने का आग्रह करने की भी रिपोर्ट दी. अखबार ने मलिक के समर्थन में आवाज उठा रहे पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर शाहिद अफरीदी को भी कवर किया.

मोदी सरकार के 8 साल पूरे होने पर विपक्ष

27 मई को सहारा और इंकलाब ने अपने पहले पन्ने पर बताया कि कांग्रेस देश के 140 संसदीय क्षेत्रों का दौरा करेगी और केंद्र में एनडीए सरकार के आठ साल पूरे होने के मौके पर ‘मोदी सरकार की विफलताओं’ का प्रचार करेगी.

25 मई को  इंकलाब ने इंग्लैंड के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा की गई बीजेपी सरकार की आलोचना को फ्रंट-पेज पर छापा. राहुल गांधी ने कांग्रेस में गांधी परिवार की भूमिका और बीजेपी की ‘ध्रुवीकरण की राजनीति’ के चलते ‘5 करोड़ भारतीयों’ (देश के धार्मिक अल्पसंख्यक) के अलग-थलग होने की बात कही थी.

अगले दिन इंकलाब, सियासत और सहारा ने कांग्रेस के दिग्गज नेता कपिल सिब्बल के पार्टी छोड़ने की खबर प्रकाशित की. इंकलाब ने सिब्बल और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल के यूपी से राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल करने के बारे में भी लिखा है.

उत्तर प्रदेश में चल रहे विधानसभा सत्र की खबरें – राज्यपाल के अभिभाषण से लेकर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के सदस्यों के वेल तक पहुंच जाने – को भी विस्तार से छापा गया.


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क्वाड में पीएम

24 मई को इंकलाब, सियासत और सहारा ने टोक्यो में क्वाड समिट में शामिल होने से पहले, जापान में भारतीय प्रवासियों को पीएम मोदी के संबोधन का विवरण दिया. अखबारों ने पीएम के हवाले से कहा कि ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ (भारतीय स्वतंत्रता के 75 वर्ष का उत्सव) के दौरान भारत के विकास और समृद्धि का ऐसा दौर लिखा जाएगा, जिसे मिटाना नामुमकिन होगा.

अगले दिन इंकलाब और सहारा ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ एक द्विपक्षीय बैठक में पीएम को यह कहते हुए रिपोर्ट की कि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी और दोस्ती वैश्विक शांति और स्थिरता और मानवता की भलाई के लिए एक ताकत है. बैठक क्वाड शिखर सम्मेलन के मौके पर आयोजित की गई थी.

उसी दिन सहारा ने यह भी खबर भी छापी कि क्वाड देशों अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं ने मुंबई पर 26/11 के आतंकवादी हमलों समेत आतंकवाद के हर रूप की निंदा की और कहा कि वे सभी आतंकवादी संगठनों के खिलाफ हैं.

इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर मीडिया

25 मई को एक संपादकीय में, इंकलाब ने दि वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक ओपिनियन का जिक्र किया. इसका शीर्षक था, ‘कैसे मीडिया कवरेज फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायली हिंसा को दरकिनार करता है’. यूक्रेन द्वारा अपने ऊपर किए रूसी हमले की तुलना फिलिस्तीन के खिलाफ इजरायली हिंसा से किए जाने पर वाशिंगटन पोस्ट के ओपिनियन पीस में कहा गया है, हमने देखा है कि समाचार एजेंसियों बिना यह महसूस किए कि इजरायल की सैन्य ताकत और ‘कमजोर फिलिस्तीनी नागरिक’ के बीच कोई तुलना नहीं है, इजरायल और फिलिस्तीन के बीच की स्थिति को अक्सर ‘आपसी तनाव’ बता दिया जाता है.

इंकलाब के संपादकीय के अनुसार, पोस्ट के कॉलमनिस्ट ने लिखा है कि ये समाचार पत्र और मीडिया हाउस फिलिस्तीन पर इजरायल की छापामारी में मारे गए लोगों के जीवन की भयावहता को नहीं समझते हैं. इसलिए ये मीडिया हाउस फिलिस्तीनियों को समान रूप से जिम्मेदार ठहराते हैं. उनके लिए उत्पीड़क और उत्पीड़ित के बीच कोई अंतर नहीं है.

मदरसा की स्थिति

23 मई को एक संपादकीय में  इंकलाब ने मदरसा में कम उपस्थिति के मुद्दे को उठाया. अखबार ने लिखा, जबकि यह उम्मीद की जा रही थी कि जिन लोगों ने कोविड महामारी के कारण मदरसों में जाना बंद कर दिया था, वे कक्षाएं शुरू होने के बाद लौट आएंगे लेकिन कई मदरसों से लगातार कम उपस्थिति की रिपोर्ट आ रही है.

संपादकीय ने इस बात पर अफसोस जताया कि आर्थिक तंगी की वजह से कई छात्र छोटी-मोटी नौकरियों कर रहे हैं और इसलिए वे कक्षाओं में वापस नहीं आ सकते हैं.

24 मई को इंकलाब ने उस खबर को फ्रंट-पेज पर छापा जिसमें कथित तौर पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि मदरसा शब्द के अस्तित्व को खत्म कर देना चाहिए.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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