नई दिल्ली: नई वाली हिन्दी के चहेते लेखकों में शुमार हैं दिव्य प्रकाश दुबे. ‘मसाला चाय’, ‘मुसाफिर कैफे’, ‘अक्टूबर जंक्शन’, ‘इब्नेबतूती’ जैसी बैस्टसेलर किताबों से हिन्दी के पाठकों में बेहद लोकप्रिय दिव्य अपने बेहद विनम्र स्वभाव और हंसमुख मिजाज के लिए भी जाने जाते हैं.
पहले इंजीनियरिंग और फिर मैनेजमैंट की पढ़ाई के बावजूद अपने पहले प्यार लेखन को अपना कैरियर बनाने वाले दिव्य इस समय चर्चा में हैं निर्देशक मणिरत्नम की महत्वाकांक्षी फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन भाग-1’ को लेकर. 30 सितंबर को एक साथ पांच भाषाओं में रिलीज होने जा रही सैंकड़ों करोड़ के बजट वाली इस फिल्म के हिन्दी संवाद दिव्य ने लिखे हैं.
मणिरत्नम जैसे फिल्मकार के साथ काम करना एक नवेले लेखक के लिए किसी सपने के सच होने जैसा हो सकता है. लेकिन दिव्य साफगोई से कहते हैं, ‘सच कहूं तो मैंने ऐसा सपना भी कभी नहीं देखा था.’
दिव्य ने आगे कहा, ‘मैं पिछले कई वर्षों से मुंबई में हूं और फिल्मी दुनिया से भी जुड़ा हुआ हूं लेकिन व्यावहारिक बात करूं तो मैंने कभी यह सपना नहीं देखा था कि एक दिन मैं मणिरत्नम सर के साथ मिल कर एक ऐसी फिल्म पर काम करूंगा जिसमें सिनेमा की दुनिया के बड़े-बड़े लोग होंगे.’
पिछले कई साल से मुंबई में रह कर लिखने के अलावा दिव्य नौकरी भी कर रहे थे. वह लंबे समय से स्टार ग्रुप, हॉटस्टार में कंटेट हेड के तौड़ पर जुड़े हुए थे. वहां उनका काम कहानियां सुनना और उसमें से अच्छे कंटैट को सलेक्ट कर नया रूप देना था. हालांकि, दिव्य ने 2020 में कोरोना आने से ठीक पहले नौकरी छोड़ दी थी. वह कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि यह अच्छा ही हुआ.’
वह आगे कहते हैं, ‘अगर मैं कोराना काल में भी नौकरी करता रहता तो फिर मैं उसे कभी नहीं छोड़ पाता क्योंकि कोरोना ने लोगों को नौकरी का महत्व बता दिया था. और नौकरी छोड़ना कोई आसान भी नहीं था.’
लेकिन बस, मेरे मन में आया और मैं उस काम को छोड़ कर बाहर आ गया और चीजें उसके बाद भी सही होती चली गईं.
मणिरत्नम जैसे दिग्गज फिल्मकार की इस बेहद महत्वाकांक्षी और बिग-बजट फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन’ से जुड़ने के बारे में दिव्य बताते हैं, ‘यह भी एक फिल्मी-सी कहानी है. असल में मेरी पहचान विक्टर सर यानी विजय कृष्ण आचार्य जी से थी जिन्होंने ‘धूम’ सीरिज की फिल्में लिखी हैं व ‘टशन’, ‘धूम 3’ का निर्देशन किया है. वह हिन्दी को लेकर बहुत इमोशनल हैं.
मणिरत्नम सर के लिए उन्होंने ‘गुरु’ और ‘रावण’ के हिन्दी डायलॉग्स लिखे हैं. उन्होंने ही एक दिन मुझे कहा कि साऊथ की एक फिल्म है और बहुत अच्छे लोग हैं, तुम एक बार उनसे मिल लो. उन्होंने यह नहीं बताया था कि मणिरत्नम सर की फिल्म है. अगर वह बताते तो मैं शायद प्रेशर में आ जाता. जब मैं मिलने गया तो मेरे सामने मणि सर बैठे थे लेकिन मेरे जेहन में कभी ‘बाम्बे’ चल रही थी तो कभी ‘दिल से’. आप यकीन नहीं करेंगे कि मैं अभी भी सोचता हूं कि क्या यह सब सच था? क्या सचमुच मैंने उनके साथ काम किया!’
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किताबों से वेब-सीरिज तक और अब फिल्में
किताबी लेखन चल कर फिल्मी लेखन तक आए दिव्य प्रकाश दुबे को यह लेखन कितना अलग लगा? इस सवाल पर वह बिना रुके कहते हैं, ‘फिल्मी लेखन से जुड़ा काम तो मैं लंबे समय से कर ही रहा था. स्टार में रहते हुए इस लेखन को बहुत करीब से देखा था. ‘डॉ. अरोड़ा’ वाली वेब-सीरिज जैसी बहुत सारी चीजें लिखी भी थीं तो यह मेरे लिए कुछ नया नहीं था.
लेकिन यह बात मुझे महसूस हुई कि फिल्म के माध्यम की अपनी सीमाएं हैं. किताब में तो आप जो आपके मन में आए, वह लिख सकते हैं. कुछ भी, जो तकनीकी रूप से संभव है,नहीं है, आपको वहां रोकने वाला कोई नहीं है. लेकिन यहां चीजों को विजुअलाइज करना पड़ता है. यहां आप सब कुछ नहीं लिख सकते और इन सीमाओं का अपना मजा है क्योंकि यहां आप अपने लिए नहीं लिखते हैं. मैं चूंकि नौकरी में रह चुका हूं और सीमाओं में काम करना जानता हूं इसलिए मेरे लिए यह ज्यादा मुश्किल नहीं था.’
अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि हिन्दी सिनेमा में लेखकों की कम कद्र होती है. इस पर दिव्य कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि जिन लेखकों की कम कद्र होती है, उन्होंने अपनी ज्यादा कद्र करवाने की कभी कोशिश ही नहीं की.
दरअसल यहां मुंबई में बहुत सारे राइटर आते हैं और घर चलाने के लिए अक्सर उन्हें घोस्ट-राइटिंग करनी पड़ती है. अब आप पैसे के लिए घोस्ट-राइटिंग भी करें और यह भी उम्मीद करें कि आपको पूरा सम्मान भी मिले तो यह मुमकिन नहीं है। मैं चैनल में रहा हूं और वहां मैंने देखा है कि अच्छा काम करने वाले की कद्र हर जगह है. मुझे ही लीजिए, यह दक्षिण की फिल्म है और मेरा पहला प्रयास, लेकिन पोस्टर पर सारे लेखकों के नाम बड़ी ही प्रमुखता से दिए गए हैं. तो बेसिक चीज अच्छा काम है, अच्छा कंटैंट है.’
‘उर्दूदां हिन्दी’ नहीं मिलेगी फिल्म में
फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन’ का नाम हिन्दी के दर्शकों के लिए थोड़ा अजीब-सा है. क्या हिन्दी में इसका कोई और नाम नहीं रखा जा सकता था? ‘इस बारे में बहुत ज़्यादा सोच-विचार हुआ लेकिन किसी एक नाम पर सहमति नहीं बनी. और इस कहानी की जो पहचान है, वह इसी नाम की किताब से है जो कल्कि कृष्णमूर्ति जी ने लिखी थी. तो हमने हर जगह एक जैसा ही नाम रखने का फैसला लिया. इसी तरह से इस फिल्म में ऐसे बहुत सारे किरदार हैं जिनके नाम हिन्दी वालों को काफी मुश्किल लगेंगे तो इस पर भी बहुत विचार हुआ.
फिल्म में कुछ एक किरदारों के नाम हिन्दी में बदले गए हैं लेकिन सभी के नाम बदलने से कहानी पर फर्क पड़ता इसलिए यही तय हुआ कि ज्यादातर चीजें मूल रूप में ही रखी जाएं’, दिव्य बताते हैं, ‘हां, संवादों को लेकर हमने काफी सावधानी बरती है. हिन्दी के कम प्रयोग में आने वाले गुप्तचर, अनुभव जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है और कोशिश की गई है इस फिल्म की हिन्दी ‘उर्दूदां हिन्दी’ न हो. लेकिन जिस तरह से हम अपने इतिहास को अलग नहीं कर सकते उसी तरह से हिन्दी और उर्दू अब इस तरह से घुल-मिल चुकी हैं कि उन्हें भी पूरी तरह से अलग कर पाना संभव नहीं है.’
‘पोन्नियिन सेल्वन’ में चोल राजाओं के समय की कहानी का चित्रण है. सवाल उठता है कि क्या हिन्दी के दर्शक 70 साल पहले तमिल में आई एक ऐसी किताब पर बनी फिल्म में दिलचस्पी दिखाएंगे जिसमें एक हजार साल पहले के राजाओं की कहानी दिखाई गई है?
दिव्य इस बात से असहमति जताते हुए कहते हैं, ‘पिछले दो साल में दर्शक ओ.टी.टी. देख कर बहुत समझदार हो गए हैं. उनके लिए नॉर्थ-साऊथ जैसी हदें अब नहीं रह गई हैं. उन्हें जो चीज सही लगती है, वह चाहे जहां से आ रही हो और चाहे जिस तरह की हो, उसे वे स्वीकार कर रहे हैं.
लोग अब ऐसी अलग-सी चीजें ढूंढते हैं और अगर उन्हें कुछ नहीं पता होता है तो वे गूगल करते हैं. तो, मुझे पूरा यकीन है कि इस फिल्म को हिन्दी के दर्शक काफी पसंद करेंगे क्योंकि उन्हें इसमें कुछ नया, कुछ अनोखा देखने को मिलेगा.’
भविष्य की अपनी योजनाओं के बारे में दिव्य बताते हैं, ‘पहले तो इस फिल्म का ही पार्ट-2 है. इसके अलावा भी बहुत कुछ है. लेकिन मेरा इस बार मन है कि अपना ही कुछ करूं. मैंने बहुत कुछ लिख कर रखा हुआ है, उसी पर कुछ बनाने की कोशिश रहेगी. एक-दो वेब-सीरिज वगैरह की बात चल रही है लेकिन पहला ध्यान तो ‘पी एस-2’ पर ही रहेगा.
(दीपक दुआ 1993 से फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं. विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं.)
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