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Saturday, 22 June, 2024
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चुनावी दंगल में हरियाणा के बाउंसर्स की बढ़ी मांग, लगाएंगे नेताओं का बेड़ा पार

विधानसभा चुनाव के दौरान रेवाड़ी, पलवल, झज्जर, बहादुरगढ़ और फरीदाबाद के ग्रामीण पहलवान और बॉडी बिल्डर नेताओं के चहेते बन जाते हैं.

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नई दिल्ली: हरियाणा विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां बढ़ गई हैं. छोटे-बड़े सभी नेता और कार्यकर्ता रैली और सभाएं कर रहे हैं. चुनाव नेताओं के लिए तो जनता का भरोसा जीतने का ज़रिया है और साथ ही चुनाव हरियाणा के बाउंसर्स के लिए भी प्रोटीन और देशी घी के पैसे का इंतज़ाम करने का जुगाड़ भी है.

हरियाणा के खत्म होते अखाड़ा कल्चर को जीवित रखने के लिए चुनाव रोज़गार उपलब्ध कराते हैं. दिल्ली-एनसीआर के अस्पतालों, बारों और फैशन शो के दौरान मिलने वाले हजारों बाउंसरों का घर हरियाणा हमेशा दूध-दही और पहलवानी के लिए जाना जाता जा रहा है. विधानसभा चुनाव के दौरान रेवाड़ी, पलवल, झज्जर, बहादुरगढ़ और फरीदाबाद के ग्रामीण पहलवान और बॉडी बिल्डर नेताओं के चहेते बन जाते हैं. हरियाणवी बोली पर ज़बरदस्त पकड़ और बढ़िया बॉडी लिए ये बाउंसर वोटर्स का ध्यान आकर्षित करने और अपने प्रतिद्वंद्वियों के बीच पैठ जमाने के काम आते हैं.

प्रतिदिन हज़ार रुपए से लेकर नेताओं से कनेक्शन बनाने तक

बाउंसर्स को चुनावी रैलियों के लिए काम पर रखने का काम देख रहे एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने दिप्रिंट को बताया, जो दिहाड़ी के हिसाब से आते हैं. वो ज्यादातर गांवों की तरफ के लड़के होते हैं. लगभग हर प्रत्याशी 10 से 12 बाउंसर तो रखेगा ही. लेकिन, बाउंसर रखने का क्रेज़ फरीदाबाद और गुरुग्राम विधानसभाओं में ज्यादा है. ग्रामीण हरियाणा में जैसे-जैसे प्रवेश करते जाएंगे वैसे वैसे इस बात का प्रभाव खत्म हो जाएगा कि आपके पास कितने बाउंसर हैं.


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कांग्रेसी कार्यकर्ता ने यह भी बताया कि चुनाव के नेता दो तीन महीने पहले ही बुकिंग कर लेते हैं. जिनको महीने भर के लिए बाउंसर चाहिए वो पहले ही बुकिंग करा चुके हैं. लेकिन जिनको अब 10-15 दिन के लिए चाहिए. वो जिम और अखाड़ों से संपर्क करते हैं. चुनाव की घोषणा से नतीजे आने तक बाउंसर साथ ही रहेंगे.

खाना, सभाएं और बड़ी रैलियां

फरीदाबाद में एक जिम चलाने वाले पवन बताते हैं, ‘जो लड़के एजेंसी के ज़रिए जाते हैं. उन्हें 1000 लेकर 1500 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मिलते हैं. जो जिम के ज़रिए सीधे नेताओं के संपर्क में होतें हैं. वो 1500-3500 प्रति दिन कमा लेते हैं.’ वो आगे कहते हैं, ‘लेकिन जिम और अखाड़ों में आने वाले सारे बॉडी बिल्डर्स पैसे चार्ज नहीं करते हैं. कुछ लड़के तो महंगी कारों में आते हैं. कुछ की लोकल नेताओं से बढ़िया जान पहचान हो जाती है. जैसे मेरे यहां काम करने वाले दो-तीन लड़के कृष्णपाल गुर्जर के साथ काम करते हैं. वो भी बुलाते हैं. ये मदद कर देते हैं.’

नहीं है आसान काम

27 वर्षीय मोहित गुरुग्राम के ग्रामीण इलाके से आते हैं. एक साधारण किसान परिवार से आने वाले मोहित बाउंसर का काम करते हैं. अपने अनुभव साझा करते हुए वो कहते हैं, ‘मुझे शहर की लाइफ बड़ी अच्छी लगती थी. मां-पापा वैसे तो बार में आने नहीं देते. जब बाउंसर बन गया तो ये नौकरी हो गई. मुझे 5 साल होने वाले हैं. बार की भीड़ और रैलियों की भीड़ काफी अलग होती है. मैंने पहले भी एक दो नेताओं के साथ प्रतिदिन के हिसाब से काम किया है. अभी किसी नेता की तरफ से ऑफर नहीं आया है.’

दिल्ली-हरियाणा सीमा पर छतरपुर में एक जिम | मनीषा मोंडल/ दिप्रिंट

फरीदाबाद के एक बाउंसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘राजनीति की अपनी अलग बात होती है. बड़े-बड़े लोगों के साथ उठना बैठना होता है. वो हमारे काम आते हैं और हम उनके. पैसे के लिए बाउंसर नहीं बनते सारे.’

महिला बाउंसर्स की नहीं है डिमांड

दिप्रिंट ने कई एजेंसियों और स्थानीय नेताओं से बात की और जानने की कोशिश की. अभी भी महिला बाउंसर्स की डिमांड उतने व्यापक स्तर पर नहीं होती. चुनाव के लिए पुरुष बाउंसर ही ज्यादा बुक किए जाते हैं. फरीदाबाद में 24 नाम की बाउंसर एजेंसी ने दिप्रिंट को बताया, महिला बाउंसर्स की फीस भी ज्यादा होती है और दूर दराज के इलाके के लिए कई झमेले हो जाते हैं. इसलिए ज्यादातर लोग मेल बाउंसर को ही हायर करते हैं. ऊपर से महिला बाउंसर भी गिनती की ही हैं.’

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हरियाणा के बल्लभगढ़ में एक अखाड़ा | मनीषा मोंडल/ दिप्रिंट

कम से कम 500 जिम और अखाड़ों पर है पुलिस की नज़र

14 सिंतबर को दिल्ली और यूपी पुलिस के साथ हुई मीटिंग में गुरुग्राम पुलिस ने अखाड़ों और जिमों पर नज़र रखने की बात हुई थी. गुरुग्राम पुलिस कमीशनर मोहम्मद अकील ने कहा था कि बॉडी बिल्डर्स, बाउंसर्स और आपराधिक छवि वाले लोगों पर नज़र रखी जा रही है.

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