बेंगलुरु: क्राउडफंडिंग यानी किसी भी मौके पर धनजुटाने के लिए इंटरनेट द्वारा प्रदान की गई रणनीति. इसने इस लोकसभा चुनाव में चुनाव प्रचार करने, फिल्में बनाने, जानवरों को कैद से छुड़ाने और लोगों को घूमने-फिरने में मदद की है. अब यह तीन सहस्राब्दी पुरानी भारतीय भाषा संस्कृत के अंतिम गढ़ों में से एक को संरक्षित करने में मदद कर रही है जो अब केवल कुछ लोगों के ही जुबान पर है. इसके लिए 17 मार्च को शुरू हुई क्राउडफंडिंग में पूरी दुनिया से लगभग 1000 दानदाताओं कर्नाटक के मेलुकोटे में श्री आचार्य पाठशाला को बचाने में 26 लाख रुपये दान कर चुके हैं.
आनंद आश्रम के नाम से पहचाने जाने वाले मेलुकोटे में चार सदियों पुराने आखिरी संस्कृत स्कूल को दक्षिण का नालंदा भी कहा जाता है. इसके स्थापित होने के लगभग एक दशक बाद ही, स्कूल जर्जर हालत में पड़ा हुआ है और छत से पानी टपक रहा है और ऐसी परिस्थिति में स्कूल के 20 छात्र पढ़ने को मजबूर हैं. अक्सर उन्हें खाने को भोजन भी नहीं मिलता है.
स्कूल की सेक्रेट्ररी पद्मिनी बताती हैं, ‘स्कूल की स्थिति ऐसी है कि छात्र को बहुत ही जर्जर अवस्था में पढ़ाई करनी पड़ रही है. छत की हालत खराब है और बारिश होने पर वो चुने लगती है.’
वो बताती हैं कि गर्मी के दिनों में, क्लास में लगी एस्बेस्टस शीट इतना गर्म कर देती है कि बच्चों को छाले पड़ जाते हैं. एक मेलुकोटे निवासी ने कहा, ‘यह स्कूल ऐसी स्थिति में है कि कई बार बच्चों को खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है.’ वहां के एक निवासी ने, यह समझाते हुए कि इस तरकीब में आपूर्ति खराब होने का डर है, बताते हैं, ‘(जब हमारे पास फंड होता है) हमें महीनों पहले से ही एडवांस में भोजन खरीदना पड़ता है, ‘ स्कूल में बचे पांच शिक्षकों को 19 महीने से अधिक समय से तनख्वाह नहीं मिली है.
संस्कृत जीवन का एक तरीका है
मेलुकोटे भारत के उन बचे हुए केंद्रों में से एक है जहां संस्कृत केवल संचार की भाषा नहीं है, बल्कि जीवन का एक तरीका है. यह 18 वीं शताब्दी के मैसूर शासक टीपू सुल्तान के अधीन लूटे जाने और नष्ट हो जाने के बाद भी प्राचीन परंपराओं को संरक्षित कर रहा है. मेलुकोटे के लोग संस्कृत में शिक्षित हैं और वेदों, उपनिषदों और अन्य प्राचीन ग्रंथों में पारंगत हैं. बेंगलुरु से 150 किलोमीटर दूर स्थित इस हिलटॉप टाउन में 20 ऐसे स्कूलों को बंद कर दिया गया था, जो संस्कृत में गणित से लेकर भूगोल तक के विषय पढ़ाते थे, लेकिन पिछले 10 वर्षों में धन की कमी के कारण सभी बंद हो गए.
श्री आचार्य पाठशाला की स्थापना परमहंस अय्यदी सतगोपा रामानुज जियार ने, श्रीविल्लिपुत्तुर के प्रसिद्ध द्रष्टा, में साल 2010 में की थी. उन्होंने सोचा था कि यह बच्चों के लिए एक खुशहाल जगह होगी और इसलिए उन्होंने इसे आनंद (आनंद) आश्रम कहा. स्कूल में आज 7 से 14 वर्ष के 20 के करीब बच्चे हैं जो प्राचीन ग्रंथों से संस्कृत, गणित, भूगोल और सामाजिक विज्ञान का अध्ययन करते हैं.
इसे बेंगलुरु विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त है, और अब कर्नाटक संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्धता के लिए आवेदन किया है. कर्नाटक संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो पद्मा शकर ने कहा, ‘स्कूल गीता, वेद, उपनिषद, भागवत, श्री भाष्य और अन्य ग्रंथों को पढ़ा रहा है.’
‘हमने संबद्धता के लिए उनका आवेदन प्राप्त कर लिया है. इसके बाद, हमारे अधिकारियों ने स्कूल का दौरा किया और बुनियादी ढांचे का निरीक्षण किया. रिपोर्ट के आधार पर, हम इस शैक्षणिक वर्ष से कक्षाएं चलाने के लिए समर्थन और अनुमति प्रदान करेंगे.’
अस्तित्व की लड़ाई
बीते कई सालों में, मेलुकोटे भारत की सूचना प्रौद्योगिकी राजधानी और कर्नाटक की राजधानी के निकट होने के बावजूद बदलते समय से अछूता रहा है. लेकिन परंपरा को बचाना, अस्तित्व के लिए अपनी हताशा में बाहर की ओर देखने के लिए मजबूर थी. क्राउडफंडिंग, जिसने कई संगठनों को पुनर्जीवित करने और राजनीतिक अभियानों को बढ़ावा देने में मदद की है, ने आदर्श समाधान की पेशकश की. आनंद आश्रम के अधिकारियों का मानना था कि संस्कृत के इस अभयारण्य को संरक्षित करने में मदद करने के लिए उत्सुक कई लाभार्थी होंगे – उन्हें यह सब करना था.
जैसे ही स्कूल के ढहते बुनियादी ढांचे और अचानक से बंद होने की बात हर जगह फैली, कई पेशेवरों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया. क्राउडफंडिंग में मदद करने वाले एक प्लेटफॉर्म ‘केटो’ ने अब तक स्कूल को यूके और यूएस से लेकर सिंगापुर और मिडिल ईस्ट तक पूरी दुनिया में स्थित 998 डोनर्स में से 26.5 लाख रुपये जुटाने में मदद की है.
‘केटो’ के सीईओ वरुण सेठ ने कहा, ‘प्राचीन भारतीय भाषाओं का संरक्षण अत्यंत ही महत्वपूर्ण और समय की मांग है.’
‘यह बहुत अच्छा लगता है कि हमारा मंच इस स्कूल के लिए धन जुटाने में मदद कर रहा जो बंद होने के कगार पर था, जिससे हमारी भारतीय शास्त्रीय भाषा की रक्षा हो रही थी और हमारी सांस्कृतिक जड़ें मजबूत हुईं.’
अभियान में भाग लेने वाले प्रचारकों में से एक, चेन्नई के एक डेटा वैज्ञानिक विजयराघवन, जो स्कूल की देखरेख करने वाले जियार म्यूट के शिष्य भी हैं, ने कहा कि क्राउडफंडिंग ने उनकी काफी मदद की है.
‘शुरू में, जब हममें से कुछ ने स्कूल के लिए फंड जुटाने का फैसला किया, तो हमें यह काफी मुश्किल लगा. अगर हमने क्राउडफंड नहीं किया होता तो हम सिर्फ 10 लाख रुपये जुटाते. ‘
वे बताते हैं, ‘अब हमने 25 लाख का आंकड़ा पार कर लिया है और बच्चों और अधिकारियों को पर्याप्त आराम और सुविधाएं देते हुए स्कूल को उसके मूल गौरव के निर्माण की उम्मीद है.’
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