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Monday, 6 May, 2024
होमसमाज-संस्कृतिक्या ईद पर एंटरटेनमेंट का तोहफा दे पाई ‘किसी का भाई किसी की जान’, भाई जान की फिल्म में है कितना दम?

क्या ईद पर एंटरटेनमेंट का तोहफा दे पाई ‘किसी का भाई किसी की जान’, भाई जान की फिल्म में है कितना दम?

पूरी फिल्म में न तो भाई जान का नाम बताया गया है और न ही यह कि वह काम क्या करता है. साफ है कि इस नायक-प्रधान कहानी में खूब सारा एक्शन होगा. है भी और होना भी चाहिए. आखिर सलमान खान की फिल्म से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है.

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ईद का मौका और सलमान खान की फिल्म. इससे बड़ा तोहफा भाई जान के चाहने वालों के लिए भला और क्या हो सकता है. लेकिन इस ईद पर आई सलमान खान की फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ देख कर लगता है कि भाई जान ने अपने चाहने वालों को तोहफे की आड़ में धोखा दे दिया है.

कहानी यह है कि भाई जान अपने तीन भाइयों के साथ दिल्ली की जिस बस्ती में रहते हैं उसे लोकल एम.एल.ए. खाली करवा कर बेचना चाहता है. लेकिन भाई जान हर बार उसके और उसके गुंडों के आड़े आ जाता है. अपने छोटे भाइयों के चक्कर में भाई जान शादी नहीं कर रहा है और इस चक्कर में भाइयों की भी शादी नहीं हो रही. तभी हैदराबाद से एक लड़की आती है और भाई जान को भा जाती है. इन दोनों पर हमले हो रहे हैं लेकिन भाई जान हर हमले का मुंहतोड़ जवाब दे रहा है. ये लोग उस लड़की के घर हैदराबाद जाते हैं तो वहां भी हमले होते हैं. लेकिन भाई जान के आगे भला किस की चली है?

पूरी फिल्म में न तो भाई जान का नाम बताया गया है और न ही यह कि वह काम क्या करता है. साफ है कि इस नायक-प्रधान कहानी में खूब सारा एक्शन होगा. है भी और होना भी चाहिए. आखिर सलमान खान की फिल्म से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है. वैसे भी हाल के बरसों में सलमान खान की फिल्म में कहानी अच्छी हो, बुरी हो, हो या न भी हो, भाई जान को फर्क नहीं पड़ता. रही स्क्रिप्ट की बात, तो अपनी फिल्म में भाई जान जो कर दें, वही स्क्रिप्ट और जो बोल दे, वही संवाद होते हैं. 

फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ का एक दृश्य

यहां गौरतलब बात यह है कि यह फिल्म 2014 में आई जिस तमिल फिल्म ‘वीरम’ का रीमेक है, वह अच्छी-खासी हिट हुई थी. यानी साफ है कि उस फिल्म में कुछ तो दम रहा ही होगा जो सलमान खान ने उस फिल्म को हिन्दी में बनाने के अधिकार खरीदे होंगे. लेकिन इन लोगों ने यह बात क्यों नोटिस नहीं की कि जब 2017 में ‘वीरम’ का तेलुगू में रीमेक बना था तो वह फिल्म बमुश्किल अपनी लागत निकाल पाई थी और 2019 में कन्नड़ में बने उसके रीमेक का बॉक्स-ऑफिस पर बुरा हाल हुआ था. साफ है कि हर कहानी हर भाषा, हर माहौल के लिए मुफीद नहीं होती. बावजूद इसके इन लोगों की मंडली ने इसे हिन्दी में ढालने और ‘किसी का भाई किसी की जान’ के नाम से बनाने का बीड़ा उठाया तो कम से कम कुछ होमवर्क तो कर लेते. कहानी को दिल्ली में फिट करते समय दिल्ली के माहौल को पढ़ लेते, यहां के लोगों की विशेषताओं को जान कर अपने किरदारों को गढ़ लेते. मुंबई में सैट बनाने की बजाय दिल्ली में शूटिंग ही कर लेते. कुछ तो ओरिजनल लगता. फिलहाल तो सब कुछ इतना बनावटी, इतना नकली लग रहा है कि देख कर घिन्न और सोच कर शर्म आती है कि हिन्दी की इतनी बड़ी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा घटिया उत्पादन हो रहा है.

हैरानी होती है कि लगातार थकी हुई चीजें बनाने वाले डायरेक्टर फरहाद सामजी यहां बार-बार मौके भी मिल रहे हैं. सलमान खान की एक्टिंग के बारे में कुछ कहना बेमायने होगा. अपने भाइयों और उनकी गर्ल-सखियों के किरदारों में उन्होंने जिस तरह के हल्के लोग लिए हैं उनके लिए कुछ न ही कहा जाए तो बेहतर होगा. पूजा हेगड़े फिर भी प्यारी लगी हैं भले ही सलमान के सामने वह बच्ची लगती हों. खलनायक कभी हिन्दी तो कभी हरियाणवी बोलने लगता है. अब कहने को तो इस फिल्म में कुछ गुणी कलाकार भी है लेकिन उनके किरदार ही विकसित नहीं किए गए. 

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लगता है दक्षिण की हर ऐरी-गैरी फिल्म के हिन्दी रीमेक बनाने का घड़ा अब भर कर फूटने ही वाला है.

(संपादन: ऋषभ राज)


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