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Tuesday, 5 November, 2024
होमसमाज-संस्कृति'बीजेपी बल से जीतना चाहती थी लेकिन लोकप्रिय वोट से हार गई'- दिल्ली मेयर चुनाव पर उर्दू प्रेस

‘बीजेपी बल से जीतना चाहती थी लेकिन लोकप्रिय वोट से हार गई’- दिल्ली मेयर चुनाव पर उर्दू प्रेस

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.

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नई दिल्ली: दिल्ली के मेयर चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत और केंद्र सरकार की एजेंसियों की छापेमारी ने इस हफ्ते उर्दू प्रेस को व्यस्त रखा. बीबीसी कार्यालय पर आयकर (आई-टी) सर्वे पर ब्रिटेन की प्रतिक्रिया और रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की कीव यात्रा ने भी उर्दू अखबारों के पहले पन्नों पर जगह बनाई.

2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता और महाराष्ट्र में शिवसेना की खींचतान से जुड़ी खबरों को भी उर्दू प्रेस के पहले पन्ने और संपादकीय में प्रमुखता मिली.

इस हफ्ते, कर्नाटक का हिजाब मामला और कर्णप्रयाग में घरों में दरारें, और उत्तराखंड में विनाशकारी तुर्की जैसे भूकंप की संभावना उर्दू अखबारों के पहले पन्नों पर लौट आई.

दिप्रिंट आपके लिए उन खबरों का एक राउंडअप लेकर आया है जिसने इस हफ्ते उर्दू प्रेस को गुलजार रखा.

दिल्ली मेयर चुनाव

इंकलाब ने 18 फरवरी को खबर दी कि मेयर चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) को राहत मिली है. इसने यह भी लिखा कि सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल (एल-जी) द्वारा नामित 10 पार्षदों को दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के मेयर पद के चुनाव में मतदान करने से रोक दिया. सुप्रीम कोर्ट ने एमसीडी और एल-जी के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया कि मनोनीत पार्षद पहली बैठक में मतदान कर सकते हैं.

22 फरवरी को, इसने आप के मेयर पद के उम्मीदवार शेली ओबेरॉय की जीत की सूचना दी. ओबेरॉय को 150 वोट मिले जबकि बीजेपी की रेखा गुप्ता को 116 वोट मिले. डिप्टी मेयर का चुनाव आप के आले मोहम्मद इकबाल ने जीत लिया है.

23 फरवरी को सियासत ने अपने संपादकीय में लिखा कि बीजेपी मेयर का चुनाव कैसे हारी. इसे भाजपा की पूर्ण हार बताते हुए संपादकीय में कहा गया है कि पार्टी लोकप्रिय वोट से हार गई थी, लेकिन वह अपनी शक्ति और एलजी के बल पर जीतना चाहती थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह प्रयास विफल हो गया.

केंद्रीय एजेंसियों की जांच

21 फरवरी को, इंकलाब ने बताया कि कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अपनी आम बैठक से पहले कई नेताओं पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी का कड़ा विरोध किया, इसे डराने-धमकाने का कायरतापूर्ण कृत्य करार दिया. कांग्रेस ने कहा कि यह प्रधानमंत्री की कार्रवाई है जो भारत जोड़ो यात्रा की सफलता और गौतम अडाणी के खिलाफ खुलासे से डरे हुए हैं.

22 फरवरी को सहारा ने एक लीड रिपोर्ट लिखी कि सीबीआई, आई-टी डिपार्टमेंट, ईडी और एनआईए ने कई मामलों में देश के अलग-अलग हिस्सों में कई जगहों पर छापेमारी की.

एनआईए ने आठ राज्यों में एक साथ गैंगस्टर्स और आतंकी संगठनों के कथित सहयोगियों के यहां छापेमारी की. ED ने मनरेगा घोटालों की अपनी जांच में झारखंड में छापे मारे। सीबीआई ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और निजी खाद्यान्न व्यापारियों के बीच कथित लेन-देन की जांच के सिलसिले में पंजाब में कई जगहों पर छापेमारी की.

अखबार ने आगे लिखा है कि इन सभी में आयकर विभाग ने सबसे बड़ी छापेमारी की. इसने यूफ्लेक्स लिमिटेड कंपनी के कुल 64 ठिकानों पर छापेमारी की. इसके 200 से अधिक अधिकारियों ने वित्तीय अनियमितताओं की जांच के सिलसिले में सुबह 8 बजे से उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर, हरियाणा, तमिलनाडु, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कई स्थानों पर छापेमारी की.

इसमें कार्रवाई की निंदा करने वाले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान भी था. उन्होंने दावा किया कि पिछले नौ सालों में 95 फीसदी छापे अकेले विपक्षी नेताओं पर पड़े और उनमें से ज्यादातर कांग्रेस के थे. अखबार ने एनडीटीवी की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से जुलाई 2022 तक कुल 648 ऐसे छापे मारे गए, जिसमें विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया गया.

इन वर्षों में विपक्षी नेताओं या आलोचकों पर कुल 648 छापे मारे गए, जिनमें से 466 छापे ऐसे थे जो सीधे तौर पर भाजपा या उनके रिश्तेदारों के विरोधी थे।

24 फरवरी को उर्दू अखबारों ने कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा को दिल्ली एयरपोर्ट से गिरफ्तार किए जाने की खबर पहले पन्ने पर छापी. खेड़ा पार्टी नेताओं के साथ रायपुर में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने के लिए इंडिगो की फ्लाइट से जाने वाले थे. फिर दिल्ली पुलिस ने उसे पहले ही विमान से उतार दिया और उसके असम समकक्ष ने उसे हिरासत में ले लिया. लेकिन खेड़ा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत तब मिली जब उन्हें उसी दिन अंतरिम जमानत दे दी गई.

उसी दिन, अब रद्द हो चुकी दिल्ली आबकारी नीति में कथित वित्तीय अनियमितताओं की जांच के सिलसिले में ईडी द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पीए को समन भेजे जाने की खबर सहारा के पहले पन्ने पर प्रकाशित हुई थी.


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बिहार की राजनीति

19 फरवरी को, रोज़नामा ने विपक्षी एकता की आवश्यकता को दोहराते हुए अपने बयान के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पहले पन्ने पर जगह दी.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (एमएल) की एक बैठक को संबोधित करते हुए नीतीश ने कहा कि कांग्रेस को अब तय करना है कि 2024 में उसकी रणनीति क्या होनी चाहिए और विपक्षी गठबंधन को कैसे मजबूत करना है.

20 फरवरी को, इसके पहले पन्ने पर कांग्रेस के तीन दिवसीय पूर्ण सत्र के बारे में एक रिपोर्ट थी. पार्टी ने कहा कि 24 फरवरी से सत्र 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्षी गठबंधन पर विचार-विमर्श करेगा और आगे का रास्ता तय करेगा. इसने इस बात पर भी जोर दिया कि कांग्रेस के बिना विपक्ष को एकजुट करने का कोई भी प्रयास सफल नहीं होगा.

21 फरवरी को, सियासत के पहले पन्ने ने नीतीश कुमार के साथ लंबे समय से चल रहे विवाद के बीच उपेंद्र कुशवाहा के जनता दल (यूनाइटेड) से अलग होने की कहानी को आगे बढ़ाया. कुशवाहा ने पार्टी छोड़ने के साथ ही अपनी खुद की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल शुरू करने की भी घोषणा की.

उसी दिन सियासत के संपादकीय में कहा गया कि नीतीश ने विपक्षी गठबंधन के लिए एक नई पहल की है और इस गठबंधन के नेतृत्व को लेकर एक नई बहस भी शुरू की है. कुमार ने स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले आम चुनावों में विपक्ष में एकता होनी चाहिए और इस पहल का नेतृत्व कांग्रेस को करना चाहिए. कांग्रेस को इस संबंध में जल्द फैसला लेना चाहिए.

संपादकीय में आगे लिखा गया है कि जिन राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूत हैं और भाजपा को कड़ी चुनौती दे सकते हैं, वहां कांग्रेस को दूसरा स्थान लेने से नहीं कतराना चाहिए. इसमें कहा गया है कि प्रतियोगिता में उन सीटों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिन पर सफलता निश्चित है या वास्तविक आकलन करने के बाद सफलता की संभावना है.

22 फरवरी को सहारा ने राहुल गांधी के इस बयान को प्रकाशित किया कि अगर विपक्ष एकजुट हो जाए तो आने वाले चुनावों में भाजपा को हराया जा सकता है.

शिवसेना

20 फरवरी को रोज़नामा ने शिवसेना नेता संजय राउत का यह बयान प्रकाशित किया कि शिवसेना के नाम और चुनाव चिह्न को मजबूत करने के लिए अब तक 2,000 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए जा चुके हैं.

21 फरवरी को, सहारा ने बताया कि चुनाव आयोग का निर्णय उद्धव ठाकरे समूह के लिए एक बड़ा झटका था और उन्होंने एकनाथ शिंदे गुट को चुनाव चिन्ह दिए जाने के बाद पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल और यूट्यूब के ब्लू टिक भी खो दिए. अखबार ने लिखा कि विधानसभा में शिवसेना का दफ्तर भी शिंदे गुट को दे दिया गया है. वहीं, उद्धव गुट को सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली है.

उसी दिन, इंकलाब के संपादकीय में कहा गया कि जो लोग सोचते हैं कि इससे शिवसेना कमजोर होती है, वे गलत हैं. लोग उन लोगों को बर्दाश्त नहीं करते हैं जो उनके आत्मविश्वास को कम करते हैं. महाराष्ट्र का इतिहास बताता है कि राज्य बागियों को स्वीकार नहीं करता। इसलिए हमें पूरा यकीन है कि जो कुछ भी हुआ और जो कुछ हो रहा है, उसने शिवसेना को कमजोर नहीं किया है, बल्कि उसे नई ताकत दी है.

22 फरवरी को, इंकलाब ने पहले पन्ने पर खबर दी कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के शिवसेना के नाम और चिन्ह के संबंध में फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम निषेधाज्ञा नहीं दे सकते, यह पार्टी का आंतरिक मामला है. दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब देने को कहा है.

अखबार ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बयान को आगे बढ़ाया है कि चुनाव आयोग ने पहले कभी किसी पार्टी से नियंत्रण नहीं छीना है.

साथ ही इसने उद्धव की शिवसेना के भविष्य पर एक संपादकीय लिखा और कहा कि चुनाव चाहे जब भी हो, ‘विश्वासघात’ से सबसे ज्यादा फायदा ठाकरे को ही होगा.

संपादकीय ने लिखा, ‘इस विश्वासघात से पार्टी कार्यकर्ताओं में आक्रोश है जो दिखता रहेगा. इसमें कोई शक नहीं कि फैसले होते रहेंगे, चुनाव आयोग का फैसला, सुप्रीम कोर्ट का फैसला, लेकिन नजरिए से लोकतांत्रिक चुनाव, सबसे बड़ा फैसला लोगों द्वारा किया जाता है. अगर मतदाता ठाकरे की शिवसेना को वोट देते हैं, जिसकी अत्यधिक संभावना है, तो लगातार हार का परिदृश्य जो वर्तमान में उद्धव की शिवसेना के पतन की ओर जाता दिख रहा है, बदल जाएगा. अतीत की घटनाओं से यह उम्मीद भी मजबूत हुई है.’


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अडाणी-हिडेनबर्ग और बीबीसी

18 फरवरी को, रोज़नामा ने अडाणी-हिंडनबर्ग मामले की जांच के लिए सीलबंद लिफाफे में विशेषज्ञों के नाम देने से सुप्रीम कोर्ट के इनकार की खबर को प्रमुख्ता से छापा है. पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट के आदेश पर सरकार ने मामले की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने पर सहमति जताई थी. सरकार ने सीलबंद लिफाफे में विशेषज्ञों के नाम देने की पेशकश की.

22 फरवरी को रोज़नामा के संपादकीय में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने सीलबंद लिफाफे में नामों की सिफारिश को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. इसने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट से मोदी सरकार को किसी भी अन्य की तुलना में अधिक गंभीर झटका लगा है.

18 फरवरी को, सहारा ने पहले पन्ने पर आई-टी के आरोपों को भी जगह दी, जिसमें उसने बताया कि बीबीसी द्वारा आयकर संबंधी विसंगतियां की गई हैं.

उसी दिन इसने अपने पहले पन्ने पर केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता स्मृति ईरानी की अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दिए गए बयान पर प्रतिक्रिया प्रकाशित की. सोरोस ने म्यूनिख सुरक्षा परिषद में कहा था कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है लेकिन पीएम मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं. उनके तेजी से बड़े नेता बनने का मुख्य कारण मुसलमानों के खिलाफ हिंसा है.

ईरानी ने कहा कि विदेशी धरती से भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है. यह भारत के लोकतंत्र में दखल देने की कोशिश है. कांग्रेस ने भी सोरोस के बयान की निंदा की.

23 फरवरी को रोजनामा ने अपने संपादकीय में लिखा कि भारत में लोकतंत्र पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है, लेकिन दूसरों को स्वतंत्र, लोकतांत्रिक देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का पूर्ण अधिकार नहीं है. इसमें कहा गया है, ‘भारत के लोग मोदी सरकार के लोकतंत्र विरोधी आरोपों का हिसाब लेने के लिए काफी हैं और हिसाब लेने के दिन भी करीब आ रहे हैं.’

24 फरवरी को, शेयर बाजार में गिरावट के बीच, गौतम अडाणी के नेतृत्व में अडाणी एंटरप्राइजेज के 10 में से 8 शेयर गिरने की खबर सहारा रोज़नामा के पहले पन्ने पर जगह बनाने में सफल रही.

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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