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Thursday, 25 April, 2024
होमसमाज-संस्कृति'BJP के लिए नफरत की राजनीति की कीमत समझने का समय आ गया है'- नूपुर और जिंदल की 'ईशनिंदा' पर उर्दू प्रेस की टिप्पणी

‘BJP के लिए नफरत की राजनीति की कीमत समझने का समय आ गया है’- नूपुर और जिंदल की ‘ईशनिंदा’ पर उर्दू प्रेस की टिप्पणी

पेश है दिप्रिंट का इस बारे में राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार सम्बन्धी घटनाओं को कवर किया, और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख अख्तियार किया.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल द्वारा की गई और अब ख़ासी बदनाम हो चुकी टिप्पणियों पर भड़का मुस्लिम दुनिया का आक्रोश पिछले हफ्ते के ज़्यादातर वक्त में उर्दू प्रेस के पहले पन्नों पर छाया रहा.

उर्दू प्रेस ने पैगंबर मुहम्मद पर की गई इन टिप्पणियों से पैदा हो रहे राजनयिक और राजनीतिक प्रभावों खास तौर पर मुस्लिम दुनिया से मिल रही विपरीत प्रतिक्रिया को कवर किया. इन अख़बारों के संपादकीय में यह दलील दी गई  कि हालांकि भाजपा दावा कर सकती है कि पार्टी इन विचारों को नहीं मानती है, मगर विवाद ने अब एक ऐसा माहौल बना दिया है जहां जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को भी लगेगा कि वे बिना किसी डर के  इस तरह की टिप्पणी कर सकते हैं.

अन्य प्रमुख मुद्दों के रूप में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद और कर्नाटक में हिजाब विवाद इस हफ्ते उर्दू प्रेस की सुर्खियों में बने रहे

दिप्रिंट इस सप्ताह आपके लिए उर्दू प्रेस में छपी सुर्खियों और संपादकीय का एक संक्षिप्त विवरण लेकर आया है.

नूपुर शर्मा, पैगंबर मुहम्मद और राजनयिक दुविधा

6 जून को ‘इंकलाब’ की खास खबर में यह बताया गया कि शर्मा को बीजेपी से निलंबित कर दिया गया है. दूसरी बड़ी खबर उन दंगों के बारे में थी जो शर्मा की टिप्पणियों और जिंदल के ट्वीट्स ने उत्तर प्रदेश के कानपुर में शुरू कर दी थीं. अखबार ने बताया कि पुलिस द्वारा गिरफ्तारी जारी रखने के बावजूद शहर में सांप्रदायिक तनाव कायम है. एक तीसरी खबर में बताया गया कि कुवैत, ईरान और कतर में भारतीय राजदूतों को इन टिप्पणियों की वजह से सफाई देने को तलब किया गया है.

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हालांकि, ‘रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा’ ने शर्मा के निलंबन और जिंदल के भाजपा से निष्कासन की सूचना दी, लेकिन इसकी प्रमुख खबर केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी की हज 2022 संबंधी घोषणा थी.

‘सियासत’ ने अपने पहले पन्ने पर इन दो भाजपा नेताओं के खिलाफ वाली खबर को सिर्फ़ एक कॉलम में छापा और इसके बजाय बांग्लादेश में एक कंटेनर डिपो में लगी आग, जिसमें 49 लोग मारे गए थे, को अपनी खास खबर बनाने का फैसला किया. हालांकि, इस अखबार ने अपने संपादकीय में दलील दी कि निलंबन एक बहुत छोटी सी सजा है और सभी धर्मों के सम्मान के बारे में भाजपा के एलान के बावजूद, देश में माहौल इतना खराब हो गया है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी आम  लोगों की भावनाओं की परवाह किए बिना अनुचित टिप्पणी कर रहे हैं.

इस बीच 8 जून को, सहारा के पहले पन्ने पर केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के इस दावे से संबंधित खबर छपी कि शर्मा के बयान का खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

7 जून को, ‘सियासत’ ने इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के उस बयान को जगह दी जिसमें इसने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए उससे भारतीय मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया था. अखबार ने दोनों नेताओं के खिलाफ पार्टी द्वारा की कार्रवाई को लेकर भाजपा में उपजे आंतरिक तनाव के बारे में भी बताया. इसने कहा कि जहां कुछ भाजपा समर्थक इन दोनों नेताओं के खिलाफ पार्टी की कार्रवाई को लेकर नाराज़ है, वहीं कुछ अन्य लोग इसके समय को लेकर सवाल उठा रहे हैं. अखबार ने तर्क दिया कि यह तयशुदा था कि भाजपा को अपनी कार्रवाई के लिए राजनीतिक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ेगा, लेकिन उसे नफरत की राजनीति के लिए चुकाई जाने वाली कीमत को भी समझना चाहिए.

10 जून को, ‘सियासत’ ने दिल्ली पुलिस द्वारा  शर्मा और जिंदल पर, और साथ ही पत्रकार सबा नकवी पर भी, अभद्र भाषा के प्रयोग के लिए मामला दर्ज करने संबंधित एक खबर अपने पहले पन्ने पर प्रकाशित की. एक इनसेट वाली खबर में, हैदराबाद से प्रकाशित इस अखबार ने बताया कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी पर भी इसी अपराध के तहत मामला दर्ज किया गया था.

10 जून को लिखे गये अपने संपादकीय में, ‘इंकलाब’ ने लिखा था कि शर्मा और जिंदल की टिप्पणियों से उपजा यह विवाद आसानी से पीछा नही छोड़ेगा और केंद्र सरकार के सामने उसका काम बिल्कुल स्पष्ट है – उसे न केवल आंतरिक तौर पर कानून और व्यवस्था बनाए रखना चाहिए, बल्कि उसे दुनिया की यह भी यकीन दिलाना होगा कि इस तरह की घटनाएं फिर से नहीं दुहराई जाएंगी. अख़बार ने दलील दी कि जब तक भाजपा अपने ‘बड़बोले’ नेताओं पर लगाम नहीं लगाती, तब तक भारतीय कूटनीति काम नहीं करेगी, और न ही उसे वैश्विक मंच पर वह प्रतिष्ठा मिलेगी जो वह चाहती है.


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ज्ञानवापी मस्जिद, और मंदिर-मस्जिद की राजनीति

शर्मा और जिंदल की टिप्पणियों से उपजा अंतरराष्ट्रीय आक्रोश भी मंदिर-मस्जिद विवाद को पहले पन्ने से बाहर नहीं रख सका. 9 जून को, ‘इंकलाब’ ने खबर दी कि वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में कथित रूप से पाए गए शिवलिंग की पूजा करने की मंज़ूरी देने के लिए दायर एक अपील को खारिज कर दिया, और अपीलकर्ता ने इसके बाद देशव्यापी विरोध की घोषणा की है.

4 जून को, ‘इंकलाब’ ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान को पहले पन्ने पर जगह दी कि हर मस्जिद में  शिवलिंग की तलाश करने की कोई ज़रूरत नहीं है.

एक दिन बाद, ‘इंकलाब’ ने कर्नाटक के श्रीरंगपटना में तनाव बढ़ने की सूचना दी, जहां कुछ ‘सांप्रदायिक तत्व’ स्थानीय जामा मस्जिद में हनुमान चालीसा को पढ़ने पर जोर दे रहे हैं. उसी दिन ‘सियासत’ ने इस्लामिक संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद की उस याचिका के बारे में पहले पन्ने पर एक खबर छापी जिसमे इसने सुप्रीम कोर्ट में उपासना स्थल (विशेष अधिनियम प्रावधान) अधिनियम, 1991 की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं में इसे भी एक पक्षकार बनाने के लिए कहा है.

‘इंकलाब’ ने भी एक दिन बाद इसी खबर को पहले पन्ने पर जगह दी.

फिर से उठा हिजाब वाला विवाद

हिजाब के मामले में उपजे विवाद को अब करीबन छह महीने हो चुके हैं मगर यह फिर भी थमने को राज़ी नहीं है. 8 जून को, सहारा ने अपने पहले पन्ने पर यह खबर दी कि कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के उप्पिनंगडी में गवर्नमेंट फर्स्ट ग्रेड कॉलेज में 24 लड़कियों को हिजाब पहनने की वजह से निलंबित कर दिया गया है.

इसी से संबंधित एक अन्य खबर में अखबार ने कर्नाटक के मंत्री यू.टी. खादर द्वारा हिजाब को लेकर  छात्रों को निशाना बनाने वाले शैक्षणिक संस्थानों की आलोचना करने वाले बयानों को जगह दी, मगर साथ-साथ यह भी कहा कि भारतीय नागरिकों को दी गई ‘आजादी’ को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए.

‘सियासत’ ने भी इन छात्रों के निलंबन वाली खबर को पहले पन्ने पर जगह दी. 10 जून को, अखबार ने बताया कि इनमें से छह छात्रों का निलंबन बाद में रद्द कर दिया गया था.

 यूपी उपचुनाव के बारे में

6 जून को ‘इंकलाब’ ने रामपुर और आजमगढ़ संसदीय सीटों के उपचुनाव को लेकर अपने पहले पन्ने पर एक खबारा चलाई. अखबार ने बताया कि जहां भाजपा पहले ही अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है, वहीं समाजवादी पार्टी अभी भी ऐसा करने से हिचक रही है. इस खबर में यह भी बताया गया कि समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान की पत्नी तज़ीन फातिमा और उनके सहयोगी आसिम राजा दोनों रामपुर सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं.

अगले दिन ‘इंकलाब’ ने पहले पन्ने पर यह खबर छापी कि कैसे समाजवादी पार्टी नामांकन दाखिल करने के आखिरी दिन तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने का इंतजार कर रही थी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अंततः 6 जून को अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ सीट से और असीम राजा को रामपुर से मैदान में उतारने का फैसला किया.

कोविड के बढ़ते मामले

9 जून को, ‘सियासत’ ने कोविड के एक बार फिर से बढ़ते मामलों और केंद्र सरकार द्वारा पांच राज्यों – तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र – को पत्र लिखकर उन्हें सतर्क रहने के लिए कहे जाने के बारे में एक संपादकीय में लिखा,

संपादकीय में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों को कोविड मामलों की इस बढ़ती हुई संख्या को संजीदगी से लेना चाहिए और उन्हें जनता से कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए कहना चाहिए, साथ ही यह ही सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उनकी सभी सुविधाएं चाक-चौबंद रहें.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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