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Monday, 16 September, 2024
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J&K में अनुच्छेद-370 हटाने के BJP को फायदा नहीं मिला, उसे मालूम है यह कोई उपलब्धि नहीं है — उर्दू प्रेस

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले हफ्ते के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख अपनाया.

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नई दिल्ली: उर्दू अखबार इंकलाब ने इस हफ्ते अपने संपादकीय में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की आलोचना करते हुए कहा कि पार्टी जम्मू-कश्मीर में आगामी चुनावों के लिए अनुच्छेद-370 को निरस्त करने का कोई फायदा नहीं उठा पा रही है क्योंकि जिसे वो उपलब्धि मानती थी, अब उसे उपलब्धि नहीं माना जा रहा है. अखबार ने उल्लेख किया कि पार्टी को चुनावों से पहले राज्य में गंभीर आंतरिक विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है.

इंकलाब, रोजनामा ​​राष्ट्रीय सहारा और सियासत के संपादकीय में सांप्रदायिक हिंसा और बुलडोजर कार्रवाई के लिए केंद्र की मोदी सरकार की आलोचना की गई है, जिसमें लिखा है कि 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से मुसलमानों को निशाना बनाकर भीड़ द्वारा हिंसा करना आम बात हो गई है.

पांच सितंबर को सहारा के संपादकीय में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में बलात्कार-हत्या का मामला एक महीने से भी अधिक समय बाद भी अनसुलझा रहने पर चिंता जताई गई.

दिप्रिंट आपके लिए इस हफ्ते उर्दू प्रेस में पहले पन्ने पर सुर्खियां बटोरने और संपादकीय में शामिल सभी खबरों का एक राउंड-अप लेकर आया है.

‘अनुच्छेद-370 भाजपा के लिए उपलब्धि नहीं’

तीन सितंबर को इंकलाब के संपादकीय में कहा गया कि अगर अनुच्छेद-370 को हटाना और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाना वाकई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं, जैसा कि भाजपा अक्सर दावा करती रही है, तो पार्टी को राज्य में आगामी चुनावों में बेहतर संभावनाएं दिखनी चाहिए थीं.

हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि वास्तविकता अलग है. अखबार का आरोप है कि भाजपा को मालूम है कि इन कदमों के पीछे उसके कुछ और मकसद थे.

संपादकीय में कहा गया है, “चुनावों में इस ऐतिहासिक उपलब्धि को भुनाने की कोशिश न करने के सिर्फ दो कारण हैं. पहला, भाजपा जिसे उपलब्धि मानती है, वो असल में उपलब्धि नहीं है. दूसरा, वो जनता के असंतोष से वाकिफ हैं.”

इसमें आगे कहा गया है: “लोगों ने समय-समय पर इस भावना की पुष्टि की है. हालांकि, ये अपेक्षाकृत पुराने मुद्दे हैं. मौजूदा स्थिति यह है कि जम्मू में भाजपा को अपने ही पार्टी कार्यकर्ताओं से असंतोष का सामना करना पड़ रहा है.”

26 अगस्त को टिकट वितरण शुरू होने के बाद से जम्मू के उपनगरों और अन्य जिलों में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध प्रदर्शन की खबरें आ रही थीं. इसके जवाब में पार्टी हाईकमान ने असंतोष को नियंत्रित करने और स्थिति को शांत करने के लिए केंद्रीय मंत्रियों और प्रमुख नेताओं को तैनात किया है.

‘भीड़ द्वारा हिंसा + बुलडोजर कार्रवाई = क्या?’

छह सितंबर को सियासत अखबार के संपादकीय में कहा गया कि तेलंगाना सांप्रदायिक ताकतों द्वारा तेज़ी से निशाना बनाया जा रहा है, आरोप लगाया गया कि उत्तर भारत में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा भड़काने वाले संगठन अब देश के दक्षिणी हिस्से में अपनी विभाजनकारी रणनीति लाने का प्रयास कर रहे हैं.

दक्षिणी राज्यों में बड़े पैमाने पर खारिज किए जाने के बावजूद, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के अप्रत्यक्ष समर्थन से भाजपा ने तेलंगाना में आठ लोकसभा सीटें जीतीं, जिससे उसे मजबूती मिली. सियासत ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप, बजरंग दल जैसे समूह राज्य में शांति भंग करने की योजना बना रहे हैं. इसने कहा कि राज्य के सद्भाव और शांति को बनाए रखने के लिए इन तत्वों को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है.

तीन सितंबर को सियासत ने आरोप लगाया कि जब से उत्तर प्रदेश में ‘बुलडोजर कार्रवाई’ शुरू हुई है, तब से यह प्रवृत्ति मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा सहित अन्य राज्यों में फैल गई है. इस तरह की कार्रवाइयों ने कानूनी ढांचे की अनदेखी करने और राजनीति से प्रेरित होने के आरोपों को जन्म दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विध्वंस के लिए न्यायिक दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए, तथा सरकारों और अधिकारियों से कानून के दायरे में काम करने का आग्रह किया है.

दो सितंबर को इंकलाब ने “भीड़ हिंसा + बुलडोजर कार्रवाई = क्या?” शीर्षक से एक संपादकीय लिखा, जिसमें भीड़ हिंसा को रोकने में कानून और सरकार की विफलता की आलोचना की गई. यह देखते हुए कि इस तरह की घटनाएं किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरे देश में होती हैं, तर्क दिया कि सत्ता में बैठे लोगों की चुप्पी और मिलीभगत ने इस समस्या को बढ़ावा दिया है.

इंकलाब ने कहा, “भीड़ हिंसा का जारी रहना और अधिकारियों की निष्क्रियता मानवाधिकारों के महत्वपूर्ण उल्लंघन को उजागर करती है, जिसमें सत्ता में बैठे लोग या तो मिलीभगत करते हैं या फिर लापरवाही.”

एक सितंबर को सियासत के संपादकीय में दावा किया गया कि 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से मुसलमानों को निशाना बनाकर की जाने वाली भीड़ हिंसा अधिक आम हो गई है. कई लोगों को गौरक्षकों द्वारा पीट-पीटकर मार डाला गया है, जिनका दावा है कि वे गोमांस ले जा रहे थे या गायों की तस्करी कर रहे थे, फिर भी आरोपी अक्सर सज़ा से बच जाते हैं, सियासत ने आरोप लगाया कि या तो कानून प्रवर्तन कार्रवाई करने में विफल रहता है या फिर राजनीति इसमें शामिल होती है.

अखबार ने कहा कि महाराष्ट्र में एक बुजुर्ग व्यक्ति पर ट्रेन में कुछ लोगों द्वारा हमला किए जाने के बाद, अधिकारियों की ओर से धीमी प्रतिक्रिया आई है, जिससे कथित पक्षपात की चिंता बढ़ गई है. अखबार ने यह भी कहा कि ऐसी घटनाओं पर सरकार की चुप्पी परेशान करने वाली है.

‘हरियाणा में राजनीतिक परिदृश्य बदल रहा है’

पांच सितंबर को सियासत के संपादकीय में आगामी हरियाणा विधानसभा चुनावों पर चर्चा की गई, जिसमें बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों पर ध्यान दिया गया. जैसा कि भाजपा तीसरे कार्यकाल के लिए लक्ष्य बना रही है, जबकि कांग्रेस वापसी के लिए संघर्ष कर रही है. फिर भी, लोकसभा चुनावों के बाद, जिसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों ने राज्य में पांच-पांच सीटें जीतीं, राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है.

इसने लिखा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन बनाने का सुझाव दिया है और कांग्रेस और आप के बीच बातचीत कथित तौर पर आगे बढ़ रही है, जिसमें सीट बंटवारे पर चर्चा केंद्रित है.

‘जाति जनगणना के लिए RSS का समर्थन विडंबनापूर्ण’

चार सितंबर को सियासत ने भारत में जाति जनगणना के बढ़ते महत्व पर प्रकाश डाला, जिसका कांग्रेस, कई क्षेत्रीय दलों और यहां तक कि भाजपा के कुछ सहयोगियों ने भी समर्थन किया है. नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) सरकार ने बिहार में जाति जनगणना कराई और कांग्रेस शासित राज्य भी इसका अनुसरण करने की कोशिश कर रहे हैं.

हालांकि, भाजपा इस मुद्दे पर अनिर्णीत बनी हुई है, न तो इसका समर्थन कर रही है और न ही इसका विरोध कर रही है. आरएसएस हालांकि, आधिकारिक तौर पर सरकारी फैसलों में शामिल नहीं है, ने जाति आधारित जनगणना के लिए समर्थन व्यक्त किया है, इस बात पर जोर देते हुए कि इसे राजनीतिक लाभ या सरकारी योजनाओं तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए. सियासत ने कहा कि यह रुख विडंबनापूर्ण लगता है क्योंकि भाजपा का इतिहास धार्मिक मुद्दों को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने का रहा है.

‘पश्चिम बंगाल बलात्कार का मामला अभी भी अनसुलझा’

पांच सितंबर को सहारा के संपादकीय ने आरजी कर मामले पर चिंता जताई — यह देखते हुए कि यह अभी भी अनसुलझा है. इसने यह भी उल्लेख किया कि पश्चिम बंगाल विधानसभा ने बलात्कार विरोधी विधेयक पारित किया है, जिसमें पीड़ित की मृत्यु होने या कोमा में जाने पर अपराधियों के लिए मृत्युदंड का प्रस्ताव है और तेज़ी से सुनवाई के लिए विशेष अदालतें स्थापित की गई हैं.

इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि हालांकि, पहले से ही सख्त कानून मौजूद हैं और सालों पहले विशेष अदालतें स्थापित की गई थीं, लेकिन पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनों को और मजबूत करने का आग्रह किया. अखबार ने लिखा, “नए विधेयक के बावजूद, भारत में बलात्कार के खिलाफ मौजूदा कानून पहले से ही सख्त हैं, फिर भी आगे की कार्रवाई की ज़रूरत स्पष्ट है.”

‘क्या भारत सच में ग्लोबल लीडर है?’

चार सितंबर को सहारा ने इस दावे पर सवाल उठाया कि भारत जल्द ही एक वैश्विक नेता के रूप में अपना दर्जा हासिल कर लेगा — जैसा कि विदेशी और औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा शोषण किए जाने से पहले था. पिछले 10-11 सालों में भारत के पुनर्निर्माण पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने और शिक्षा में पश्चिम से आगे निकलने की घोषणाओं का जमकर प्रचार किया गया है, लेकिन वास्तविकता इससे अलग है.

इसमें दावा किया गया है कि सामाजिक प्रगति पिछड़ रही है; शिक्षा क्षेत्र संकट में है और बढ़ती बेरोज़गारी युवाओं में डिप्रेशन को बढ़ावा दे रही है. सहारा ने किशोरों में आत्महत्याओं में चिंताजनक वृद्धि को भी रेखांकित किया.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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