नई दिल्ली : इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं के इस्तेमाल के मामले में कई रोचक बातें सामने आई हैं, जैसे कि 10 में 9 यूज़र्स इंटरनेट के इस्तेमाल के समय अंग्रेज़ी की जगह अपनी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा का इस्तेमाल करते हैं. बावजूद इसके इंटरनेट पर हिंदी का कॉन्टेंट महज़ एक प्रतिशत है.
सूचना प्रसारण मंत्रालय में निदेशक राहुल गोसाईं ने जानकारी दी कि भारत में अभी 36 प्रतिशत लोग इंटरनेट इस्तेमाल कर रहे हैं और 12 साल से ऊपर का हर तीसरा आदमी इंटरनेट पर है. उन्होंने ये भी कहा कि हालिया समय में इंटरनेट पर हिंदी के इस्तेमाल ने अंग्रेज़ी के इस्तेमाल को पीछे छोड़ दिया है.
इस दौरान फिक्की में डिजिटल इकोनॉमी कमेटी के सह-प्रमुख अजय दाता ने कहा, ‘हमरा उद्देश्य केंद्र सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ को लगातार समर्थन देना है.’ उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं में काम करने वालों के लिए बेहतर स्थिति पैदा करने से भारत के लिए एक ट्रिलियन की डिजिटल इकॉनमी का रास्ता साफ़ होगा.
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‘गूगल असिस्टेंट’ पर इस्तेमाल के मामले में दूसरे नंबर पर हिंदी
ये बातें फिक्की में हुए दूसरे ‘भाषातंत्र’ से जुड़े एक सिम्पोज़ियम के दौरान सामने आईं. इस दौरान गूगल में लैंग्वेज सर्विस मैनेजर विधि कपूर ने कहा, ‘गूगल असिस्टेंट पर दुनिया भर में दूसरी सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा हिंदी है.’ गूगल अस्सिटेंट गूगल का एक टूल है जिसके सहारे आप फ़ोन से बातचीत करते हुए इसे इस्तेमाल कर सकते हैं.
अंग्रेज़ी के अलावा अन्य भाषाओं के बढ़ते प्रभाव की जानकारी देते हुए विधि ने कहा कि गूगल की-बोर्ड अब 60 भाषाओं को सपोर्ट करता है. वहीं, गूगल पर अब 11 भारतीय भाषाओं को ट्रांस्लेट किया जा सकता है. उन्होंने ये भी कहा कि गूगल मैप को सात भारतीय भाषाओं और गूगल असिस्टेंट को 11 भारतीय भाषाओं में इस्तेमाल किया जा सकता है.
सबसे बड़ी जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि यूट्यूब पर 95 प्रतिशत लोग स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं. क्षेत्रीय भाषाओं को मिलने वाले प्रोत्साहन की जानकारी देते हुए ये भी बताया गया कि गूगल ने ‘नवलेखा’ नाम की एक पहल की है. इसके जरिए क्षेत्रीय भाषाओं में काम करने वाले लोग अपने काम को ऑनलाइन पब्लिश कर सकते हैं.
हालांकि, क्षेत्रीय भाषाओं को व्यापक बनाए जाने में कई अड़चने भी हैं. इस बारे में बात करते हुए कपूर ने कहा कि भाषा के स्थानीयकरण (लोकलाइज़ेशन), इसे बहुभाषीय बनाना (मल्टीलिंगुअलिज़्म) और मानकीकरण (स्टैंडराइज़ेशन) से जुड़ी इंडस्ट्री अभी भी विकासित हो रही है.
इस दौरान इंफॉर्मेशन टेक्नॉलजी मंत्रालय के सचिव अजय प्रकाश साहनी ने कहा, ‘भारत में इंटरनेट यूज़र्स की जितनी संख्या है, अमेरिका और यूरोप उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते क्योंकि ये उनकी आबादी के बराबर है.’ उन्होंने कहा कि एक भाषा के तौर पर इंटरनेट पर अंग्रेज़ी का दबदबा तो है लेकिन इंटरनेट पर रूसी भाषा ने जिस तरह से अपनी पकड़ बनाई है उससे साफ़ है कि भारतीय भाषाओं की लचर स्थिति को एक मौके में बदला जा सकता है.
इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं की हालत बयां करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति समझने का सबसे आसान तरीका किसी भी विकिपीडिया पेज को देखना होगा, अंग्रेज़ी में उसी विषय का पेज़ जानकारियों से भरा होता है. लेकिन हिंदी में पेज़ बेहद हल्का नज़र आता है.
राह सुझाते हुए उन्होंने कहा कि ट्रांसलेशन को बेहतर बनाने के साथ-साथ पहले से मौजूद बेहतर कॉन्टेंट को ऑनलाइन ले जाना होगा और ऐसे टूल्स बनाने होंगे जो इन कामों में मददगार साबित हों. उन्होंने ये स्थिति भी साफ़ की कि अंग्रेज़ी की अच्छी चीज़ें हिंदी में ऑनलाइन मौजूद हैं, लेकिन बाकी भारतीय भाषाओं के मामले में ऐसा नहीं है. इसी के साथ उन्होंने उपाय सुझाते हुए कहा कि इस क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू करने का बहुत अच्छा समय है.
गृह मंत्रालय के आधिकारिक भाषा विभाग की सचिव अनुराधा मित्रा ने इस दौरान कहा कि मंत्रालय ने ‘लीला’ नाम का एक टूल डेवलप किया है. इसमें मौजूद एआई के सहारे भारतीय भाषाओं को मुफ़्त में सीखा जा सकता है. इसके अलावा ‘कंठस्थ’, ‘ई-महाशब्दकोश’ और ‘ई-सरल हिंदी शब्दकोश’ जैसे अन्य टूल विकसित किए गए हैं जो भारतीय भाषाओं को सिखाने में मददगार साबित होंगे. इन सबको rajbhasha.nic.in पर एक्सेस किया जा सकता है.
वहां, सभी मंत्रालयों को ये निर्देश भी दिया गया है कि वो अपना सारा कॉन्टेंट अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी में भी उपलब्ध कराएं.
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क्या है भाषांतर
‘फिक्की- इंडियन लैंग्वेज इंटरनेट अलायसं’ फिक्की की एक पहल है. इसके तहत इंडस्ट्री के साथ मिलकर भारतीय भाषाओं से जुड़ा मज़बूत इकोसिस्टम तैयार करने की कोशिश की जा रही है. इस साल सोमवार को ‘फिक्की- इंडियन लैंग्वेज इंटरनेट अलायसं’ ने सूचना प्रसारण मंत्रालय, माइगॉव, टेक्नॉलजी डेवलपमेंट फ़ॉर इंडियन लैंग्वेजे़ज के साथ मिलकर इंडियन लैंग्वेजेज़ टेक्नॉलजी इंडस्ट्री के लिए भाषांतर 2019 के नाम से एक सिम्पोज़ियम का आयोजन किया.
फिक्की द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक इस दौरान सरकार और निजी क्षेत्र में तकनीक, मीडिया, भाषा सेवा कंपनी और थिंक टैंक से जुड़ी 250 संस्थाओं ने इसमें हिस्सा लिया. इन संस्थाओं ने सकल और बहुभाषी इंटरनेट पर ज़ोर दिया और कहा कि ऐसा होने से भारत डिजिटली सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बन जाएगा.
इस साल के आयोजन का थीम ‘सबके लिए इंटरनेट: भविष्य के आधे अरब यूज़र्स को साधने के लिए भारतीय भाषाओं की क्षमता का दोहन’ था.
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