नई दिल्ली: महाराष्ट्र में सरकार के गठन पर गतिरोध खत्म होने की उम्मीद नहीं दिखने के मद्देनज़र वहां संवैधानिक संकट की स्थिति बन सकती है.
राज्य में 24 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद दो सप्ताह बीत चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर सहयोगी दलों भाजपा और शिवसेना में मतभेद के चलते सरकार का गठन नहीं हो पा रहा है.
वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल शनिवार 9 नवंबर को समाप्त हो रहा है, और इसलिए अटकलें लगाई जाने लगी हैं कि महाराष्ट्र में शायद राष्ट्रपति शासन लगाया जाए.
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लेकिन भाजपा (105) और शिवसेना (56) के विधानसभा की 288 सीटों में से 161 सीटें जीतने के बाद अपने मतभेदों को दूर नहीं कर पाने की स्थिति में भी शायद ऐसी नौबत नहीं आए.
विधानसभा अस्तित्व में आ जाएगी
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार पिछली सरकार का कार्यकाल समाप्त होने के तुरंत बाद नई विधानसभा अस्तित्व में आ जाएगी, भले ही नई सरकार का गठन नहीं हो पाता हो.
इसका मतलब ये हुआ कि नए विधायकों को शपथ दिलाई जाएगी, और उन्हें वेतन, भत्ते आदि मिलने शुरू हो जाएंगे.
कश्यप ने कहा कि सबसे पहले तो सरकार बनाने का दावा किए जाने की बात सही नहीं है. उन्होंने कहा, ‘संविधान में सरकार बनाने के लिए दावा पेश किए जाने का कोई प्रावधान नहीं है… ये एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति है जोकि प्रचलन में आ गई है.’
कश्यप के अनुसार ये राज्यपाल का विशेषाधिकार है और वह अपने विवेक है से तय करते हैं कि सरकार के गठन के लिए किसे आमंत्रित किया जाए.
उन्होंने कहा, ‘राज्यपाल विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को आमंत्रित कर सकते हैं या फिर वो चुनाव पूर्व के सबसे बड़े गठबंधन को सरकार बनाने के लिए कह सकते हैं. जो भी हो, आखिरकार उन्हें सदन में अपना बहुमत साबित करना होगा.‘
‘अगर वे बहुमत साबित करने में नाकाम रहते हैं, तो राज्यपाल दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के नेता को सरकार बनाने के लिए कह सकते हैं… और अगर वे भी बहुमत साबित करने में असमर्थ रहते हैं, तो राज्यपाल फिर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं. लेकिन हर हाल में राष्ट्रपति शासन अंतिम विकल्प होना चाहिए.’
राज्य में छह महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है, जिसके बाद चुनाव आयोग को महाराष्ट्र में नए सिरे से चुनावों की घोषणा करनी होगी. हालांकि यदि इस दरम्यान सदन के भीतर बहुमत साबित करने में सक्षम कोई राजनीतिक गठजोड़ उभरता हो तो वैसी स्थिति में राष्ट्रपति शासन को खत्म किया जा सकता है.
कश्यप ने कहा कि संविधान में वैसे तो कोई समयसीमा नहीं दी गई है कि जिसके पहले राज्यपाल किसी दल को सरकार बनाने के लिए बुलाने पर बाध्य हो, फिर भी अब तक उन्हें किसी पार्टी या गठबंधन को सरकार गठन के लिए आमंत्रित करना चाहिए था.
वास्तव में, इस तरह के गतिरोध की स्थिति में राज्यपाल सभी विधायकों को मतदान के ज़रिए अपना नेता का चुनाव करने का संदेश भी भेज सकते हैं.
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यों तो चुनाव परिणाम आने के बाद सरकार और गठबंधन निर्माण को लेकर वार्ताएं अक्सर अनौपचारिक माध्यमों के जरिए होती है, पर कश्यप का कहना है कि ‘आदर्श रूप से… इस तरह की बातचीत पार्टी कार्यालयों में, सड़कों पर या राजभवन में नहीं, बल्कि सदन के भीतर होनी चाहिए’.
ज्ञात हो कि बहुमत साबित करने में पहले विकल्प की नाकामी पर दूसरे गठबंधन को आमंत्रित किए जाने के कई उदाहरण मौजूद हैं. राष्ट्रपति ने 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी को केंद्र में सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था, पर 13 दिन बाद वह बहुमत साबित करने में विफल रहे, और उसके बाद संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी थी.
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