नई दिल्ली : हरियाणा के रेवाड़ी गैंगरेप पीड़िता को जान-बूझकर प्रताड़ित करने और परीक्षा देने से रोकने के आरोप में हरियाणा उच्च शिक्षा विभाग ने नाहड़ सरकारी कॉलेज के तीन प्रोफेसर्स पर कार्रवाई की है. दिप्रिंट की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद सोमवार को शिक्षा विभाग ने मामले का संज्ञान लेते हुए तीनों ही प्रोफेसर्स को सस्पेंड कर दिया गया है.
गौरतलब है कि 2018 में गैंगरेप के बाद पीड़िता की काउंसलिंग की गई थी. उसके बाद उसका नाहड़ के सरकारी कॉलेज में बीएससी कोर्स में दाखिला दिलाया गया था. दूसरे सेमेस्टर के 18 मई को होने वाले केमेस्ट्री पेपर में सहायक प्रोफेसर सुषमा यादव, प्रोफेसर अजीत सिंह व जगत सिंह ने मिलकर पीड़िता को सभी छात्रों के साथ बैठने को मजबूर किया जबकि पीड़िता को कॉलेज ने पुलिस सुरक्षा के बीच अलग कमरे में बैठकर परीक्षा देने की अनुमति दी थी. ये अनुमति पीड़िता की पहचान छुपाने की मंशा से दी गई थी. साथ ही उसको कॉलेज ने रेग्युलर क्लासेज के लिए भी रियायत दी हुई है.
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पीड़िता की मां ने प्रोफेसर्स पर हुई कार्रवाई के बाद दिप्रिंट को बताया, ‘मैं लगातार तीन-चार महीने से चक्कर काट रही थी. सुषमा यादव ने मेरी बेटी को यहां तक कहा कि गैंगरेप आम बात है. स्पेशल महसूस करना बंद करो. सुषमा यादव हमारे ही गांव से आती हैं और उन्होंने जान बूझकर मेरी बेटी को जलील करने के लिए ये किया था.’
गौरतलब है मई में ही मामले की जांच के लिए रेवाड़ी के उपायुक्त यशेंद्र सिंह ने पांच लोगों की एक कमेटी बनाई थी. तमाम बयानों और कागज़ातों के आधार पर कमेटी ने तीनों ही प्रोफेसर्स को दोषी पाया था. अगस्त में जमा कराई गई इस रिपोर्ट में बताया गया था अजीत सिंह और जगत सिंह की ड्यूटी 18 मई को नाहड़ परीक्षा केंद्र में नहीं होने के बावजूद वो वहां मौजूद थे. हालांकि सहायक प्रोफेसर सुषमा यादव ने अपने बचाव में कमेटी को बताया था, ‘इस तरह अलग कमरे में पेपर देने के लिए यूनिवर्सिटी से लिखित में चाहिए. पीड़िता के पास ऐसा कोई साक्ष्य नहीं था.’
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वहीं तात्कालीन प्रिंसिपल श्रीमती कृष्णा ने उस पूरे मामले को लेकर दिप्रिंट से बात की और बताया कि उन्हें बच्ची के साथ हुई घटना का अंदाज़ा नहीं था. जैसे ही उन्हें पता चला कि वो सितंबर में हुए गैंगरेप की पीड़िता है तो उन्होंने माफी मांगी थी. साथ ही प्रोफेसर सुषमा यादव को ड्यूटी से हटाकर किसी और को ड्यूटी पर लगा दिया था.
बता दें कि 18 मई के बाद पीड़िता ने यूनिवर्सिटी से लिखित में परमिशन लेकर बाकी पेपर पुलिस सुरक्षा में ही दिए. उनकी मां का कहना है, ‘मेरी बेटी का एक साल खराब हो गया तो कोई बात नहीं है लेकिन जिस तरह उन प्रोफेसर्स ने मेरी बेटी को जघन्य अपराध के लिए जलील करना चाहा वो बेहद ही गलत था. अगर आज प्रोफेसर्स ऐसा कर रहे हैं तो कल समाज तो मेरी बेटी को जीने ही नहीं देगा.’