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Friday, 22 November, 2024
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राष्ट्रगान के दौरान खड़ा न होना क्या अपराध है? कानून शांत है और सुप्रीम कोर्ट अस्पष्ट

जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने फैसले को पलट दिया और कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना वैकल्पिक है.

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पिछले हफ्ते बेंगलुरू में फिल्म देखने गए लोगों को ऐसे ही सवालों का सामना करना पड़ा. कारण यह था कि जब राष्ट्रगान (नेशनल एंथम) बजा तब ये लोग खड़े नहीं हुए.

एक वीडियो के अनुसार, कुछ लोग खड़े न होने वाले लोगों के पक्ष में दिखे तो कुछ लोगों ने उन्हें एंटीनेशनल कहना शुरू कर दिया. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब लोगों को राष्ट्रगान के समय खड़े न होने पर इस तरह की बातों का सामना करना पड़ा हो.

इसी तरह की घटना दिसंबर 2016 में चेन्नई में हुई थी. उस समय 9 लोगों ने राष्ट्रगान के समय खड़े नहीं हुए थे. जिसके बाद फिल्म के दौरान हुए इंटरवल में इन लोगों को प्रताड़ित किया गया.

इसके बाद भी इस तरह की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं. गुवाहाटी में व्हील-चेयर पर बैठे आदमी के साथ भी इस तरह की घटना हो चुकी है.

दि प्रिंट कानूनी स्थिति के बारे में विस्तार से बता रहा है. क्या कानूनी तौर पर यह जरूरी है कि राष्ट्रगान के समय खड़ा हुआ जाए या नहीं?

क्या कहता है कानून

प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट 1971 के सेक्शन 3 के अनुसार उन लोगों पर जो जान बूझकर राष्ट्रगान के बजने के दौरान बाधा पहुंचाते हैं उन्हें तीन साल की जेल हो सकती है.

संविधान के अनुच्छेद 51-A(a) देश के सभी नागरिकों को संविधान, राष्ट्रीय प्रतीकों और संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान के प्रति प्रतिबद्ध होने को लोगों का दायित्व मानता है.


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लेकिन इन प्रावधानों में इस तरह की कोई बात नहीं है कि राष्ट्रगान के समय खड़े होकर ही उसका सम्मान किया जाए. न ही किसी तरह के तरीकों को इसमें शामिल किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2016 में इस विवाद को बढ़ा दिया था. कोर्ट ने सिनेमा घरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्टगान बजाने को अनिवार्य कर दिया था.

आदेश देने वाली बेंच में जस्टिस दीपक मिश्रा और अमिताव रॉय थे. देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना को जगाने के लिए यह किया गया था.

आदेश में कहा गया था, ‘देश के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया जाएगा और हॉल में मौजूद सभी लोगों इसके सम्मान में खड़ा होने के लिए बाध्य हैं.’

कोर्ट ने यह भी आदेश में कहा था कि जब सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बज रहा हो तब किसी को भी बाहर से अंदर न जाने दिया जाए. ताकि कोई किसी तरह का उपद्रव न कर सकें जिससे राष्ट्रगान का अपमान हो.

हालांकि जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने इस फैसले को पलट दिया और कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना वैकल्पिक है.

केंद्र सरकार ने इसे लेकर एक समिति बनाई थी जिसने यह निर्धारित किया था कि राष्ट्रगान को बजाने के लिए किस तरह की परिस्थिति और मौके होंगे.

कोर्ट ने व्हीलचेयर इस्तेमाल करने वालों, विकलांगों, लेप्रोसी, जिन्हें दिखता न हो उन्हें अपने निर्देशों से बाहर रखा है.

क्या है सम्मान

सुप्रीम कोर्ट ने जब राष्ट्रगान को वैकल्पिक करने वाला आदेश दिया तो इसमें अदालत ने यह भी कहा था कि देश के नागरिक राष्ट्रगान से जुड़े एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के तहत खास मौकों पर खड़े होने के लिए बाध्य हैं.

सम्मान से जुड़े मसले पर कोर्ट ने बिजो इमैनुएल वर्सेस स्टेट ऑफ केरल के फैसले का संदर्भ दिया. ‘जिसमें कहा गया था कि जब राष्ट्रगान बजेगा तब खड़े होकर उसका सम्मान किया जाना चाहिए.’


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बिजो इमैनुएल मामले में बेंच ने कहा था, ‘यह कहना सही नहीं होगा कि राष्ट्रगान गाते वक्त साथ न गाना भी असम्मान है.’

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इसी फैसले का संदर्भ देकर राष्ट्रगान का सम्मान करने के लिए बोला था.

कोर्ट के अनुसार, इस कोर्ट ने बिजो इमैनुएल वर्सिस स्टेट ऑफ केरल ( पैराग्रॉऱ 9 और 10 में) राष्ट्रगान के सम्मान की बात पर जोर दिया है.

हम इसे जोड़ने की जल्दबाजी कर सकते हैं कि यह याचिकाकर्ता के अधिकार को बनाए रखता है, लेकिन फिर भी देखा गया है कि एक व्यक्ति जो राष्ट्रगान गाते समय सम्मानपूर्वक खड़ा होता है, उचित सम्मान दिखा रहा है. इस प्रकार, जब राष्ट्रगान गाया जाता है या बजाया जाता है तो उसके सम्मान पर ज्यादा ध्यान रहता है.

कोई भी इस तरह का कानून नहीं है जो राष्ट्रगान बजने के समय खड़े होने को कहता हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार राष्ट्रगान का सम्मान करने के लिए जरूरी है कि उसके बजने के समय खड़ा हुआ जाए.

सरकार का इस पर क्या रुख है

पिछले साल जारी किए गए एक आदेश में गृह मंत्रालय ने कहा था कि जब भी राष्ट्रगान बजे लोगों को इसका ध्यान रखना चाहिए.

मंत्रालय के अनुसार, ‘जब एक डाक्युमेंट्री या फिल्म के एक हिस्से के दौरान राष्ट्रगान बजे, तो दर्शकों से खड़े होने की उम्मीद नहीं की जाती है क्योंकि खड़ा होना फिल्म की प्रदर्शन को बाधित कर सकता है और इससे अव्यवस्था और भ्रम पैदा होगा और इससे गाने की गरिमा में भी इजाफा नहीं होगा.’

सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने को लेकर गृह मंत्रालय ने दिसंबर 2017 में 12 सदस्यीय अंतर-मंत्रालय कमिटी बनाई थी. कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा था इसे लेकर यह कमिटी बनाई गई थी.


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गृह मंत्रालय के विशेष सचिव इस कमिटी की अध्यक्षता कर रहे थे. राष्ट्रगान बजाने की परिस्थितियों और अवसरों को तय करने के सिलसिले में इस कमिटी का गठन किया गया था.

जून 2017 में द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्रालय इसे वैकल्पिक रख सकता है. ये समझते हुए कि 22 राज्य इस पर अपनी कोई साफ स्थिति नहीं रख रहे हैं. इन राज्यों में भाजपा शासित उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश भी शामिल थे.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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