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Monday, 22 December, 2025
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विदेशी लॉजिस्टिक्स कंपनी के लिए मंजूरी दिलाने का आरोप, सैन्य अधिकारी दंपति पर CBI की कार्रवाई

लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा, जो रक्षा उत्पादन विभाग में तैनात थे, फिलहाल सीबीआई की हिरासत में हैं. उनकी पत्नी, जो स्वयं कर्नल हैं, के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. हालांकि कथित रिश्वत प्रकरण में उनकी कोई प्रत्यक्ष भूमिका सामने नहीं आई है.

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नई दिल्ली: दिल्ली और श्रीगंगानगर में एक लेफ्टिनेंट कर्नल और उनकी कर्नल पत्नी के कार्यालय और आवासीय ठिकानों पर छापेमारी करने से एक दिन पहले, सीबीआई ने अधिकारी दंपति के खिलाफ मामला दर्ज किया. आरोप है कि उन्होंने दुबई स्थित लॉजिस्टिक्स कंपनी डीपी वर्ल्ड के लिए सरकारी मंजूरियां दिलाने के बदले रिश्वत ली.

सीबीआई के अनुसार, करीब 3 लाख रुपये की रिश्वत लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा को दी गई. यह रिश्वत डीपी वर्ल्ड के दुबई जाने वाले कार्गो के लिए विदेश मंत्रालय से मंजूरी दिलाने में मदद के बदले दी गई थी.

एजेंसी ने एफआईआर में कहा है कि विनोद कुमार नाम का एक बिचौलिया गुरुवार को दिल्ली में लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा के आवास पर कथित रूप से रिश्वत की रकम पहुंचाने आया था. शर्मा उस समय रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग में अंतरराष्ट्रीय सहयोग और निर्यात शाखा में उप योजना अधिकारी के रूप में प्रतिनियुक्ति पर थे.

सीबीआई ने शर्मा और विनोद कुमार दोनों को गिरफ्तार कर लिया है. दोनों फिलहाल सीबीआई की हिरासत में हैं.

एजेंसी ने शर्मा की पत्नी काजल बाली को भी आरोपी बनाया है. वह कर्नल हैं और श्रीगंगानगर में 16 इन्फैंट्री डिवीजन ऑर्डनेंस यूनिट की कमांडिंग ऑफिसर के पद पर तैनात हैं.

एफआईआर दर्ज करने के बाद, जिसमें डीपी वर्ल्ड के भारत स्थित प्रतिनिधि राजीव यादव और रवजीत सिंह के नाम भी शामिल हैं, सीबीआई ने बेंगलुरु, श्रीगंगानगर और जम्मू में सभी आरोपियों के ठिकानों पर छापेमारी की. इसके अलावा दिल्ली में लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा के सरकारी और निजी आवास पर भी छापा मारा गया.

एजेंसी ने बताया कि शर्मा के आवास से 2.23 करोड़ रुपये बरामद किए गए. इसके साथ ही 3 लाख रुपये भी मिले, जो कथित तौर पर एक दिन पहले रिश्वत के रूप में दिए गए थे.

श्रीगंगानगर में उनकी पत्नी के परिसर से कथित रूप से 10 लाख रुपये और अन्य आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद किए गए.

‘अक्टूबर से आपराधिक साजिश’

अधिकारी दंपति और दुनिया की सबसे बड़ी लॉजिस्टिक्स कंपनियों में से एक डीपी वर्ल्ड के प्रतिनिधि सीबीआई के रडार पर तब आए, जब एजेंसी को सूचना मिली कि उन्होंने एक गिरोह बनाया है. इस गिरोह में लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा कथित तौर पर रक्षा निर्माण और निर्यात से जुड़ी निजी कंपनियों को जरूरी सरकारी मंजूरियां दिलाने में मदद करने के लिए तैयार हुए थे.

सीबीआई के अनुसार, अक्टूबर में रची गई इस साजिश के तहत शर्मा अपनी रैंक और केंद्र सरकार में अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर कंपनी के लिए मंजूरी और क्लियरेंस दिलाते थे. एजेंसी ने यह भी दर्ज किया है कि शर्मा ने अपनी पत्नी को बताया था कि वह अपने निजी इस्तेमाल के लिए रिश्वत की रकम इकट्ठा कर रहे हैं. सीबीआई ने रिश्वत के मामले में उनकी पत्नी को सीधे तौर पर नहीं जोड़ा है.

एजेंसी को यह भी जानकारी मिली कि डीपी वर्ल्ड के प्रतिनिधि यादव और सिंह ने इसी साल अक्टूबर में शर्मा से संपर्क किया था. उन्होंने दुबई जाने वाली एक खेप के लिए विदेश मंत्रालय से मंजूरी दिलाने को कहा था.

सीबीआई ने एफआईआर में दर्ज किया है कि लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा ने अपने संपर्क और प्रभाव का इस्तेमाल कर डीपी वर्ल्ड से जुड़ी खेप के लिए मंजूरी जारी करवाई.

एफआईआर के अनुसार, 8 दिसंबर को राजीव यादव ने पहली बार कथित “अनुचित लाभ” का एक हिस्सा दिलाने की कोशिश की. उस दिन डीपी वर्ल्ड के प्रतिनिधि ने शर्मा से उनकी मौजूदगी और उस पते के बारे में पूछा, जहां रिश्वत की रकम पहुंचाई जानी थी.

सीबीआई ने दर्ज किया कि इसके जवाब में दीपक कुमार शर्मा ने बताया कि वह शाम 7 बजे के बाद अपने दिल्ली स्थित आवास पर उपलब्ध रहेंगे. उन्होंने कथित तौर पर रकम लेने के लिए अपना पता भी साझा किया. हालांकि, सूत्रों के अनुसार उस दिन रिश्वत की रकम नहीं दी जा सकी.

इसके बाद विनोद कुमार ने लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा से संपर्क किया और रिश्वत पहुंचाने के लिए उनके आवास का पता मांगा, ऐसा सीबीआई की एफआईआर में कहा गया है. इसके बाद कुमार उसी शाम उनके घर पहुंचा और 3 लाख रुपये की रिश्वत दी.

कुमार ने कथित तौर पर यह कदम राजीव यादव और मधु के कहने पर उठाया था. मधु को एक अन्य बिचौलिया माना जा रहा है. रिश्वत देने के बाद कुमार ने उन्हें इसकी जानकारी भी दी.

सीबीआई के एक प्रवक्ता ने बयान में कहा कि लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा पर आरोप है कि वह आदतन भ्रष्ट और अवैध गतिविधियों में शामिल रहते हैं. वह रक्षा उत्पादों के निर्माण और निर्यात से जुड़ी निजी कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ आपराधिक साजिश के तहत उनसे अनुचित लाभ या रिश्वत लेते थे और बदले में उन्हें नाजायज फायदे पहुंचाते थे.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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