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Saturday, 22 November, 2025
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BJP का ‘लव-कुश’ पावरप्ले: बिहार में सम्राट चौधरी को फिर से डिप्टी CM बनाने के पीछे क्या है कारण

बीजेपी ने पिछड़े वर्ग (OBC) समीकरण पर दांव और मजबूत किया है, कुर्मी-कोइरी डिप्टी CM कॉम्बिनेशन को कायम रखते हुए उसी जातीय बैलेंस को जारी रखा है, जिसने अब तक पार्टी को फायदा दिया है.

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नई दिल्ली: सम्राट चौधरी को बिहार में भारतीय जनता पार्टी के विधायक दल का नेता चुना गया. इससे राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा हो रही है क्योंकि इसका मतलब है कि वे अब राज्य में पार्टी का प्रमुख चेहरा बन गए हैं.

गुरुवार को उन्होंने नीतीश कुमार की कैबिनेट में डिप्टी मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. दूसरे डिप्टी सीएम भी बीजेपी के ही विजय कुमार सिन्हा हैं.

हालांकि, चौधरी को लेकर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं क्योंकि वे पहले राबड़ी देवी सरकार में मंत्री थे. यही बात आरजेडी पर बीजेपी के ‘जंगलराज’ वाले आरोपों से मेल नहीं खाती.

दिल्ली और पटना के कई बीजेपी नेताओं ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि चौधरी और सिन्हा को फिर से डिप्टी सीएम बनाए रखना ‘निरंतरता’ और अनुभव को बरकरार रखने के लिए है. दोनों पहले भी बिहार कैबिनेट में डिप्टी सीएम रह चुके हैं.

प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहे चौधरी ने तारापुर सीट 45,000 से ज्यादा वोटों के बड़े अंतर से जीती.

एमएलसी रहते हुए चौधरी पहले अपने गृह जिला मुंगेर से चुनाव लड़ते थे. इस बार वे तारापुर से त्रिकोणीय मुकाबले में आरजेडी के अरुण शाह और जन सुराज पार्टी के डॉ. संतोष सिंह को हराकर जीते.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने सम्राट चौधरी को नीतीश कुमार का डिप्टी बनाए रखने के जातीय महत्व को समझाते हुए कहा कि कुर्मी और कोइरी बिहार की दो सबसे बड़ी ओबीसी जातियां हैं. नीतीश कुमार कुर्मी हैं और सम्राट चौधरी कोइरी समुदाय से आते हैं.

बीजेपी के एक नेता ने कहा, “सम्राट चौधरी पार्टी का ओबीसी चेहरा हैं और नतीजों से यह साफ है कि कुर्मी-कोइरी राजनीतिक गठजोड़ (जिसे ‘लव-कुश वोट’ कहा जाता है) पूरी तरह हावी है. जनता ने निरंतरता को वोट दिया है, इसलिए इस समीकरण में बदलाव करने का कोई मतलब नहीं था.”

विशेषज्ञों के मुताबिक, कुशवाहा समाज के पास पहले ऐसा नेता नहीं था जिसकी पूरे राज्य में पहचान हो, सम्राट चौधरी इस कमी को पूरा करते हैं. चुनाव में मिली बीजेपी की मजबूती भी दिखाती है कि उन्हें पार्टी का ‘चेहरा’ स्वीकार किया जा रहा है.

पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राकेश रंजन ने बताया कि 2000 तक नीतीश कुमार और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी के बीच अच्छा तालमेल था.

उन्होंने कहा, “पिछले एक साल से मुझे नीतीश कुमार और सम्राट चौधरी के बीच भी वैसा ही तालमेल दिख रहा है. उनकी ट्यूनिंग काफी अच्छी है, सुशील मोदी जैसी. मुझे याद है, जब नीतीश-जी चौधरी के क्षेत्र गए थे, तो उन्होंने लोगों से कहा था कि वे उन्हें भारी संख्या में वोट दें क्योंकि उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है.”

नीतीश कुमार और सम्राट चौधरी दोनों कुर्मी-कोइरी समुदाय से आते हैं, जो 1990 के दशक से जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार का मजबूत वोट आधार माना जाता है, जब उन्होंने आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण को चुनौती दी थी.

प्रोफेसर रंजन ने कहा, “सम्राट चौधरी भी नीतीश जी के साथ सहज दिखते हैं. 2020 में पार्टी ने रेनू देवी और तारकिशोर प्रसाद जैसे डिप्टी सीएम बनाकर प्रयोग किए, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए. उसके बाद नीतीश-जी आरजेडी वाले महागठबंधन में चले गए. वापस आते ही सिन्हा और चौधरी को डिप्टी सीएम बनाया गया.”

उन्होंने कहा, “दोनों के बीच रिश्ते अच्छे हैं और लोगों की नजर में वे ‘लव-कुश’ (नीतीश और चौधरी) की जोड़ी दिखते हैं. साथ ही, नीतीश का जो मजबूत वोट है, वह इस संयोजन से एनडीए के साथ बना रहता है.”

सम्राट चौधरी, जो अपनी शैक्षणिक योग्यता और एक हत्या मामले को लेकर विवादों में रहे हैं, परबत्ता सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं. यह सीट खगड़िया जिले में आती है.

बीजेपी का आलोचकों को संदेश

प्रोफेसर रंजन ने आगे कहा कि जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर जिन चार मंत्रियों पर आरोप लगा रहे थे, उन्हें भी नए कैबिनेट में बरकरार रखा गया है. इससे साफ संकेत मिलता है कि पार्टी यह दिखाना चाहती है कि ये आरोप निराधार थे और इन्हें गंभीरता से नहीं लेना चाहिए.

उन्होंने कहा, “यह एक मजबूत संदेश देने जैसा है कि सारे आरोप पूरी तरह बेबुनियाद थे, जिनमें चौधरी पर लगे आरोप भी शामिल हैं.”

सम्राट चौधरी पहले बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. इस फैसले को उस समय पार्टी का ओबीसी वोटरों में अपना आधार बढ़ाने की कोशिश के रूप में देखा गया था. उन्होंने 2014 में आरजेडी छोड़कर जेडीयू को ज्वॉइन किया था. इसके बाद 2017 में वे बीजेपी में आ गए. उनकी राजनीतिक शुरुआत 1999 में आरजेडी से हुई थी, फिर वे 2014 में जेडीयू में चले गए. वे राबड़ी देवी जो आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव की पत्नी हैं, की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं.

एक और बीजेपी नेता ने कहा कि कुर्मी और कुशवाहा को मिलाकर राज्य की कुल आबादी का 7.08 प्रतिशत होते हैं, जबकि यादव 14.26 प्रतिशत हैं.

वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, “पार्टी को राज्य स्तर पर अपने नेतृत्व को मजबूत करना है और चौधरी इस भूमिका के लिए बिल्कुल फिट बैठते हैं. साथ ही जिस समुदाय (कुशवाहा) से वे आते हैं, वह बिहार में यादवों के बाद ओबीसी में सबसे बड़ा समूह है.”

उन्होंने आगे कहा, “उन्होंने खुद को बीजेपी के प्रमुख ओबीसी चेहरे के रूप में स्थापित कर लिया है. उनका डिप्टी सीएम होना 2027 में उत्तर प्रदेश के चुनावों में भी कारगर हो सकता है, जहां ओबीसी वोट बैंक बेहद अहम है.”

इस कदम के पीछे तर्क बताते हुए एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि चौधरी को केंद्रीय नेतृत्व का समर्थन भी प्राप्त है. चौधरी के लिए चुनाव प्रचार करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, “आप लोगों को बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को वोट देना चाहिए. अगर सम्राट चौधरी जीतते हैं, तो मोदी उन्हें बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देंगे.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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