रांची: झारखंड की राजनीति में लालू यादव और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की राजनीति भले ही सिमटती जा रही हो, लेकिन चाहने वालों में लालू की भक्ति ज़रा सी भी कम नहीं हुई है. रांची के अख़बार दुर्गा पूजा की खबरों से अटे-पड़े हैं. आम-ओ-खास के ज़ुबान पर पंडालों में बनी कलाकृतियों, पंडालों के कॉन्सेप्ट की चर्चा है. इस बीच अचानक लालू यादव-राबड़ी देवी चर्चा में आ गए हैं. उनकी मूर्ती पंडाल में दुर्गा मूर्ती के ठीक बगल में लगाई गई है. रांची के नामकुम इलाके में बना पंडाल इसका गवाह बना है.
हाथ जोड़े लालू यादव को ‘गरीबों का मसीहा’ बताया गया है. वहीं राबड़ी देवी को ‘राजमाता’ का दर्जा दिया गया है. पूरे पंडाल में विभिन्न रंगों के लालटेन को भी लटकाया गया है.
लालू-राबड़ी की मूर्ती का विरोध
पुरुलिया के रहनेवाले और पंडाल के मुख्य पुजारी की भूमिका में मौजूद बलदेव चटर्जी इस बात से नाराज़ हैं.एक खबरिया चैनल को दिए बयान के मुताबिक लालू-राबड़ी की प्रतिमा को दुर्गा जी के साथ नहीं लगानी चाहिए थी. अगर लगाना ही था तो उसे पंडाल के बाहर मुख्य द्वार पर लगा देते. वह पिछले नौ दिनों से पूजा कर और करवा रहे हैं. लेकिन इस बात की शिकायत आयोजकों से नहीं की है.
नामकुम दूर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष और आरजेडी के झारखंड प्रदेश महासचिव विनोद सिंह ने कहा कि ’हमलोग तो लालू-राबड़ी को भगवान मानते ही हैं. उनकी प्रतिमा भले ही दुर्गा जी के बगल में लगी है, लेकिन दोनों ही खुद हाथ जोड़े हुए हैं. इसके पीछे की वजह ये है कि बीते दो सालों से लालू यादव जेल में सड़ रहे हैं.’
उनके मुताबिक, ’लालू फिलहाल 14 बीमारियों से जूझ रहे हैं उनकी हालत नाजुक बनी हुई है. इसलिए हमलोगों ने सोचा कि लालू जी के लिए विशेष पूजा कराएंगे. उनके मुताबिक बीते दो दिनों से लालू यादव के नाम पर हजारों लोगों को खाना खिलाया गया है. कल यानी दशहरे के दिन गरीबों में कपड़ा भी बांटा जाएगा.’
आरजेडी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे ने कहा कि, ’जिस तरह मां दुर्गा की अराधना से हमारे भीतर के सुसुप्त अध्यात्मिक चेतना जागती है. वैसे ही लालू यादव ने अपने धर्मनिरपेक्षता आंदोलन के द्वारा दबे-कुचले लोगों के स्वाभिमान और उनके राजनीतिक चेतना को जगाया. ऐसे में उनकी प्रतिमा को पंडाल में लगाया जाना एक अच्छी पहल है.’
वहीं बिहार के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने ‘अपने पिता और मां की पंडाल में मूर्ति लगाए जाने पर कहा, इसमें कुछ भी गलत नहीं है.’
तेजस्वी यादव ने आगे कहा ‘मूर्ति पंडाल में लगाने वाले की अपनी आस्था है, वैसे भी मूर्ति हाथ जोड़े हुए है, आशीर्वाद देते हुए नहीं लगाई गई है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है.’
वहीं आरजेडी ने अपने ट्विटर हैंडल से भी इस पहल का स्वागत किया है.
पार्टी के अकाउंट से जारी एक ट्वीट में साफ कहा गया है कि ‘आशाराम की पूजा की जा सकती है. राम रहीम की पूजा की जा सकती है. चिन्मयानंद की पूजा की जा सकती है. पर विवाद तब उठता है जब हाथ जोड़ कर दुर्गा के सामने खड़े लालू जी और राबड़ी देवी की प्रतिमा लगा दी जाती है. विवाद तब उठता है जब कमल की जगह सजावट के लिए पंडाल में लालेटन लगा दिया जाता है.’
पंडाल में आ रहे श्रद्धालु दबी जुबान से इसका विरोध भी कर रहे हैं. नाम न छापने की शर्त पर एक महिला ने कहा कि ‘भगवान अलग हैं इंसान अलग.’
‘अगर आयोजक को लालू यादव से इतना ही प्रेम है तो उनकी मूर्ति अपने घर में लगाकर रखनी चाहिए.’
वहीं पंडाल में एक और व्यक्ति ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि हमलोग लालू राबड़ी को ही प्रणाम कर रहे हैं.’ और किसी नेता की इस तरह मूर्ती लगाना गलत बात है.’
कांग्रेस नेता सुबोधकांत सहाय के सांसद प्रतिनिधि रह चुके और पूर्व कांग्रेसी नेता विनोद सिंह ने कहा कि, ’इलाके में भाजपा समर्थक ज्यादा हैं ऐसे में उनको जलन तो होगी ही न. देश में गोडसे की पूजा मंदिर बनाकर हो रही है, लालू तो कहीं उससे बेहतर हैं.’
देवता और देवत्व दोनों पसंद रहे हैं लालू यादव को
लालू यादव पूरी तरह से मांसाहारी रहे हैं लेकिन उनकी भगवान में भी खूब आस्था रही है. वरिष्ठ पत्रकार निराला बिदेसिया कहते हैं, ’लालू यादव ने सत्ता में आते ही अपने गांव फुलवरिया में गांव के देवता ब्रह्म के पूजा स्थान, छठ घाट और देवी मंदिर भव्य बनाया. यही नहीं लालू चालीसा लिखने वाले ब्रह्मदेव पासवान को बिहार हिन्दी अकादमी का अध्यक्ष भी बनाया. यहां तक कि राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रीत्व काल में जो पानी टंकी लगाए गए उसका नाम ‘लारा’ रखा गया. यहां तक कि उनके बेटे ने औरंगाबाद में जो गाड़ी के शोरूम का नाम भी लारा रखा गया.’
लालू यादव अपने ऊपर किए गए कटाक्ष पर भी विरोध नहीं किया करते थे. लालू पर कई कार्टून बना चुके कार्टूनिस्ट पवन कहते हैं कि ‘एक बार पटना की सड़कों पर उनके द्वारा बनाए गए कार्टून को पटना के डीएम ने हटा दिया. यह उन्हें खराब लगा. इसकी शिकायत लेकर वह लालू यादव के पास गए. उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि इस कार्टून का पोस्टर जिस जगह लगा था, उसी जगह फिर से लगा दो.’
पवन ये भी कहते हैं कि ‘मैनें अपने कार्टून के जरिए लालू यादव पर जोरदार कटाक्ष किया, लेकिन कभी उनके गुस्से का शिकार नहीं हुआ. असहमति का भी स्पेस था.
क्रोसना चूहा खाने के शौकीन रहे लालू बन रहे शाकाहारी
क्रोसना चूहा खाने के शौकीन लालू यादव अब शाकाहारी बनने जा रहे हैं. रिम्स में इलाज कराने के दौरान डॉक्टर केवल इस बात से परेशान रहे कि लाख मना करने के बावजूद लालू यादव मांस-मछली खाना नहीं छोड़ रहे थे.
इलाज कर रहे डॉ. डी. के. झा ने बताया कि ‘लालू यादव फिलहाल रिम्स के पेईंग वार्ड में भर्ती हैं उनकी किडनी ने 50 फीसदी काम करना बंद कर चुकी है. लीवर ठीक है लेकिन खून में चर्बी की मात्रा अधिक है. पेशाब में लगातार प्रोटीन लीक हो रहा है, फिलहाल उनकी सेहत स्थिर है.
रांची, झारखंड के नवयुवक संघ को राजद परिवार तहेदिल से आभार प्रकट करता है कि आपने ग़रीबों,उपेक्षितों,उत्पीडितों, उपहासितों, वंचितो के मसीहा लालू जी के सामाजिक कार्यों को कला के माध्यम से रेखांकित करने का सराहनीय कार्य किया है। आप इसके लिए बधाई के पात्र हैं।आपको ढेर सारी शुभकामनाएँ। pic.twitter.com/azvX5jBvzi
— Rashtriya Janata Dal (@RJDforIndia) October 6, 2019
चारा घोटाले मुकदमे में फिलहाल जेल में बंद आरजेडी प्रमुख से हर शनिवार मुलाकात करने का दिन होता है. वार्ड के बाहर सैंकड़ों समर्थकों की भीड़ लगी रहती है. इसमें बिहार से लेकर झारखंड तक के उनके समर्थक होते हैं. नियम के मुताबिक तीन लोग ही उनसे मिल सकते हैं, वह भी जिससे खुद लालू यादव मिलना चाहेंगे. ऐसे में केवल बड़े नेता ही मुलाकात कर पाते हैं.
विधानसभा के 14 सीटों पर लड़ने के मूड में आरजेडी
आगामी विधानसभा चुनाव की बात करें तो आरजेडी यहां हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चुनाव लड़ने को तैयार हैं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अभय कुमार सिंह के मुताबिक ‘वह कुल 14 सीटों पर लड़ने जा रहे हैं. हालांकि सीटों का बंटवारा अभी नहीं हुआ है.’
फिलवक्त आरजेडी का एक भी विधायक नहीं हैं. राज्य की सबसे कद्दावर नेता रहीं अन्नपूर्णा देवी पार्टी छोड़ भाजपा की सांसद बन चुकी हैं. ऐसे में फिलहाल उसके पास राज्य में न तो कई चेहरा है, न ही विधायक. लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद पार्टी दो फाड़ हो चुकी है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गौतम सागर राणा अपने समर्थकों संग अलग आरजेडी बना लिए हैं. हालांकि आरजेडी की ओर से उसे मान्यता नहीं दी गई.
लोकसभा चुनाव में जेवीएम और कांग्रेस के साथ भले ही थे, लेकिन चतरा सीट पर आरजेडी कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ी थी. ये बात अलग है कि दोनों ही नहीं जीत सकी.
(आनंद दत्ता स्वतंत्र पत्रकार हैं.)