केंद्र सरकार का ड्राफ्ट सीड्स बिल 2025, जिस पर 11 दिसंबर तक जनता की राय मांगी गई है, बिल्कुल सही वक्त पर आया है. गांवों के बाज़ारों में नकली पैकेटों से लेकर मंडी में खरीद को लेकर होने वाले विवाद तक—ब्रीडर से किसान तक की पूरी चेन में बहुत कमज़ोर कड़ियां हैं.
पंजाब में, जहां हर सीज़न में बीज की क्वालिटी, एफसीआई के नियम और भूजल का दबाव आपस में टकराते रहते हैं, यह बिल सिर्फ एक कंप्लायंस डॉक्यूमेंट नहीं है. यह खेती की सबसे बुनियादी चीज़—बीज—पर भरोसा दोबारा बनाने का मौका है.
यह पुराने कानून से कैसे बेहतर है?
1966 के सीड्स एक्ट से तीन बड़े बदलाव साफ तौर पर समर्थन के लायक हैं.
पहला — हर वैरायटी का यूनिवर्सल रजिस्ट्रेशन: 1966 का कानून मुख्य रूप से सिर्फ ‘नोटिफाइड’ वैरायटीज़ को नियंत्रित करता था, जिससे ‘ट्रुथफुली-लेबल्ड’ बीजों का एक बड़ा ग्रे मार्केट किसी भी असली निगरानी से बाहर रह जाता था. नया ड्राफ्ट सभी नई वैरायटीज़ के लिए अनिवार्य रजिस्ट्रेशन और पुरानी वैरायटीज़ के लिए ‘डीम्ड रजिस्ट्रेशन’ का रास्ता बनाता है. अगर इसे तय समयसीमा और साफ मानकों के साथ लागू किया गया, तो यह उस बैकडोर को बंद कर देगा जिससे खराब क्वालिटी का बीज दशकों से बाज़ार में घूमता रहा है.
दूसरा — ट्रेसबिलिटी और डिजिटल निगरानी: ड्राफ्ट में ट्रेसबिलिटी पर जोर है—जो आज आसानी से संभव है. हर बीज के लॉट को एक स्कैनेबल आईडी दी जा सकती है, जो ब्रीडर से लेकर डीलर तक हर स्टेज को दिखाती है. इससे किसान काउंटर पर ही बीज की असलियत चेक कर सकता है और अफसर किसी खराब लॉट को जल्दी से उसकी जड़ तक ट्रेस कर सकते हैं. ट्रेसबिलिटी सिर्फ नारा नहीं होना चाहिए, बल्कि किसान की रोज़ की ज़रूरत बननी चाहिए. इसे अनिवार्य करें, क्यूआर/बारकोड को स्टैंडर्ड बनाएं और इसे ई-इनवॉइस से जोड़ें ताकि एक स्कैन में पता चल जाए—बीज किसने बनाया, प्रोसेस किया, स्टोर किया और बेचा और कब.
तीसरा — समझदार पेनल्टी और संतुलित डी-क्रिमिनलाइजेशन: छोटी तकनीकी गलती पर ईमानदार लोगों को जेल नहीं जाना चाहिए; गंभीर धोखाधड़ी पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. ड्राफ्ट में ग्रेडेड पेनल्टी हैं—जिनमें खराब और बिना रजिस्ट्रेशन वाले बीज पर भारी जुर्माना और जेल दोनों शामिल हैं. यह 1966 के नाममात्र जुर्मानों से कहीं बेहतर है. अगर इसकी एन्फोर्समेंट मजबूत रही, तो यह सिस्टम बिजनेस-फ्रेंडली और किसान-सुरक्षात्मक दोनों बन सकता है.
पंजाब के लिए दो जुड़ी हुई बातें खास मायने रखती हैं.
पहली—राज्यवार डीलर लाइसेंसिंग से हटकर केंद्रीय स्तर पर अक्रीडिटेशन/रिकॉग्निशन की ओर बढ़ना. इससे मल्टी-स्टेट कंपनियों के लिए प्रक्रिया आसान होगी, पर खतरा यह है कि अगर राज्यों के पास रोज़मर्रा की जांच का अधिकार कम हुआ, तो “लास्ट माइल” कमज़ोर पड़ सकती है.
दूसरी—“आपात स्थितियों” में कीमतों की निगरानी का प्रावधान. यह बुआई के समय बेहद महत्वपूर्ण होता है, जब दामों में अटकलें छोटे किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज से बाहर कर सकती हैं.
आखिरी छोर पर फेडरल डिज़ाइन
अगस्त में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का फैसला जिसमें कहा गया कि राज्य केंद्र द्वारा नोटिफाइड हाइब्रिड धान पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते—इस बात की याद दिलाता है कि बीजों का नियम-कानून केंद्र और राज्यों के साझा अधिकार क्षेत्र में आता है. इसके बाद पंजाब ने अपनी तरफ से सख्ती बढ़ाई है और नकली बीज बेचने को गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध बना दिया है. यह गांवों में लंबे समय से जमा गुस्से को भी दिखाता है, जो फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटरों के कारण है. उद्योग के विरोध के बावजूद, चंडीगढ़ से संदेश साफ है — डर का असर बाज़ार में दिखना चाहिए.
ड्राफ्ट राष्ट्रीय कानून को इस हकीकत को पहचानना चाहिए, न कि इसे बराबर लाइन में समेटने की कोशिश करनी चाहिए. आप चाहें तो राष्ट्रीय रजिस्ट्रेशन और केंद्रीय मान्यता बनाए रखें—लेकिन साथ ही राज्यों को समानांतर एन्फोर्समेंट पॉवर्स भी कोडिफाई करें: अचानक सैंपल लेना, ज़ब्ती, मुकदमा चलाना और स्थानीय स्टोरेज व डिस्प्ले के नियम तय करने की क्षमता. दिल्ली मानक तय कर सकती है; लेकिन मोगा और मुक्तसर में वही मानक लागू कराने का काम निरीक्षक ही करेंगे.
किसानों की नज़र से: प्रदर्शन और खरीद
किसान के खेत से देखें, तो किसी भी नियम को तीन सीधे सवालों पर परखा जाता है: क्या बीज ने अच्छा प्रदर्शन किया?, अगर नहीं किया तो नुकसान कौन भरेगा?, और क्या फसल को सही शर्तों पर खरीदा जाएगा?
ड्राफ्ट बिल प्री-मार्केट स्तर (रजिस्ट्रेशन और ट्रेसेबिलिटी) और सख्त कार्रवाई के मामले में मजबूत है, लेकिन जब कोई रजिस्टर्ड बीज, किसान द्वारा सुझाए गए खेती के तरीकों को अपनाने के बावजूद, कम प्रदर्शन करता है, तो मुआवज़े के मामले में यह काफी कमज़ोर है. पंजाब के पिछले दो सीज़न ने बताया कि यह कमी क्यों गंभीर है: मौसम में बदलाव, मंडियों में डिस्कलरिंग और नमी को लेकर विवाद और कुछ हाइब्रिड्स को मिलिंग में लेने से झिझक—इन सबने क्वालिटी विवादों को किसानों के लिए आय के झटके में बदल दिया.
इसका हल साफ है. एक समयबद्ध, बिना किसी दोष साबित करने वाली मुआवज़ा व्यवस्था बनाएं, ताकि साफ बीज विफलता की स्थिति में किसान को तुरंत मुआवज़ा मिले.
यह फंड तीन स्रोतों से आए: बीज कंपनियों की अनिवार्य बीमा पॉलिसी, रजिस्ट्रेशन पर एक छोटा-सा सेस और आपदा वाले साल में राज्य सरकार का अतिरिक्त योगदान.
उपज-नुकसान का फॉर्मूला पहले से ही सार्वजनिक कर दें; एक छोटे किसान को कंपनी की बड़ी कानूनी टीम के खिलाफ लंबी लड़ाई न लड़नी पड़े.
साथ ही, सीज़न शुरू होने से पहले कृषि मंत्रालय, FCI/DFPD और राज्यों के बीच एक समान खरीद मानकों पर समन्वय को संस्थागत रूप दें—जिसमें हाइब्रिड-स्पेसिफिक शर्तें और बाढ़ वाले सालों के लिए पहले से घोषित छूट शामिल हो. बीज मानक और खरीद नियम फसल का पहला बैग बिकने से पहले ही आपस में मेल खाने चाहिए.
FPOs को बीज पर को-ब्रांडिंग की अनुमति
पहले के बीज विधेयक ड्राफ्ट किसानों के अधिकार को मानते थे कि वे अपना बचाया हुआ बीज रख सकते हैं, उपयोग कर सकते हैं, बदल सकते हैं और बेच सकते हैं—बस एक शर्त के साथ: उसे ब्रांड नाम से नहीं बेच सकते.
इसका इरादा यह था कि बिना क्वालिटी जांच के कोई भी “कमर्शियल” ब्रांडिंग कर असलियत छिपाकर बीज न बेच सके, लेकिन अब फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (FPOs) के बढ़ने से यह तस्वीर बदल गई है. केंद्र सरकार चाहती है कि FPOs किसान उत्पाद को इकट्ठा करें, प्रोसेस करें और बाज़ार में बेचें. इसी कारण उन्हें फंड, क्रेडिट और टैक्स में छूट भी दी जाती है.
अगर नया सीड्स एक्ट, पुराने के तरह ही “नो ब्रांड नेम” की शर्त को FPO-aggregated seed पर लागू कर देगा, तो यह एक महत्वपूर्ण सुधार को ही कमज़ोर कर देगा.
इसका संतुलित रास्ता साफ है: कुछ शर्तों के साथ FPOs को फार्म सेव्ड सीड पर को-ब्रांडिंग की अनुमति दी जाए.
ये तीन शर्तें पूरी होनी चाहिए:
- हर बैच को एक मान्यता प्राप्त लैब में तय किए गए न्यूनतम मानकों पर पास होना चाहिए.
- पूरी ट्रेसेबिलिटी—जिसमें किसान की पहचान और स्टोरेज रिकॉर्ड शामिल हों—राष्ट्रीय पोर्टल पर अनिवार्य रूप से अपलोड किए जाएं.
- गलत दावों की स्थिति में जिम्मेदारी FPO की बोर्ड पर हो, किसी एक सदस्य पर नहीं.
इससे फर्जी या रातों-रात गायब होने वाले ब्रांड बाहर रहेंगे और किसान संगठनों को वैल्यू चेन में ऊपर बढ़ने का मौका मिलेगा.
ईमानदार डीलरों को दोषी बनाए बिना डीलर की जिम्मेदारी
पंजाब में हज़ारों छोटे इनपुट डीलर हैं, जो किसान के लिए सबसे पहली सलाह और सामान देने वाली कड़ी होते हैं. ऐसे डीलरों को उन गलतियों के लिए बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता, जो उन्होंने की ही नहीं.
कानून को मैन्युफैक्चरर-फर्स्ट (निर्माता-पहले) जिम्मेदारी का नियम अपनाना चाहिए—खासतौर पर फैक्ट्री-सील पैक के अंकुरण और जेनेटिक शुद्धता के मामले में.
साथ ही, अगर डीलर: सील पैक बेचते हैं, तय की गई स्टोरेज शर्तें पूरी करते हैं, ट्रेसेबल इनवॉइस रखते हैं और निरीक्षण के दौरान ज़रूरी सैंपल दे देते हैं, तो उन्हें सेफ हार्बर (सुरक्षा) मिलनी चाहिए.
सज़ा उन्हीं डीलरों को मिलनी चाहिए जो छेड़छाड़ करते हैं, जानबूझकर गलत ब्रांडिंग करते हैं, या मान्यता प्राप्त सप्लाई चेन के बाहर काम करते हैं. इससे डर उस जगह रहेगा जहां होना चाहिए—धोखाधड़ी करने वालों पर और सच्चे रिटेलर बिज़नेस से बाहर नहीं होंगे.
ट्रेसेबिलिटी सिर्फ जांच के लिए नहीं
अगर केंद्र सरकार इमरजेंसी प्राइस-कंट्रोल की ताकत रखती है, तो इसे ट्रेसेबिलिटी सिस्टम से मिले पारदर्शी संकेतों से जोड़ना चाहिए.
जैसे: स्टॉक और बुआई के वक्त का अनुपात, राज्यों के बीच असामान्य कीमत अंतर और बीज के असामान्य मूवमेंट पैटर्न. पब्लिक डैशबोर्ड कीमतों को अपने-आप अनुशासित कर देंगे, इससे पहले कि सरकार को दखल देना पड़े. इससे राज्यों को भी सही वक्त पर कदम उठाने में मदद मिलेगी.
एक पैकेट पर लगा क्यूआर कोड धोखाधड़ी से बचाने के साथ-साथ बाज़ार को संकेत देने का साधन भी बन सकता है.
पानी बचाने वाले बीज विकल्प
पंजाब के लिए बीज नीति, पानी की नीति भी है. कम अवधि वाले, पानी बचाने वाले धान और गैर-धान खरीफ फसलों के विकल्पों को तेज़-रफ्तार रजिस्ट्रेशन और खेती संबंधी तकनीकी मदद मिलनी चाहिए, लेकिन किसान तब तक बीज या फसल नहीं बदलेंगे, जब तक खरीद नीति उसका समर्थन न करे.
इसका मतलब: पानी बचाने वाली किस्मों की सरकारी खरीद की गारंटी, हाइब्रिड्स को मिलरों द्वारा पहले से तय स्वीकार्यता और ऐसी एक्सटेंशन सेवाएं, जो बीज चयन को भूजल बचत के नतीजों से जोड़ें. वरना, समझदार किसान वही लंबी अवधि वाले धान उगाएगा, जिसे मिलें पसंद करती हैं और जिसे FCI पुराने नियमों के तहत आसानी से खरीद लेता है.
इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि बीज नियमों को FCI की हाइब्रिड धान खरीद नीति से जोड़ा जाए—ताकि जो बीज किसान जून में भरोसे से बोता है, उसे अक्टूबर में छोटी-छोटी गलतियों के बहाने से रिजेक्ट न कर दिया जाए.
कानून बनने से पहले कुछ छोटी लेकिन ज़रूरी सुधार: पंजाब-पहला चेकलिस्ट
- केंद्रीय रजिस्ट्रेशन रखें, लेकिन राज्यों की प्रवर्तन शक्तियों को कानून में साफ-साफ लिखें.
- जिम्मेदारी की चेन साफ करें: फैक्ट्री-सील पैकों पर सबसे पहले निर्माता की जिम्मेदारी; सही तरह से सील, ठीक से स्टोर और ट्रेस करने लायक स्टॉक बेचने वाले डीलरों को सुरक्षित छूट; छेड़छाड़ और गलत लेबलिंग पर कड़े दंड.
- मुआवज़ा सच में मिले—समय-सीमा में, बिना दोष तय किए और एक सार्वजनिक फॉर्मूले के साथ.
- FCI के साथ मिलकर काम करना कानून में शामिल करें—समान स्पेसिफिकेशन, हाइब्रिड-स्पेसिफिक अलग सूची और प्राकृतिक आपदा वाले सालों में पहले से घोषित ढील.
- ट्रेसबिलिटी का इस्तेमाल सिर्फ निगरानी के लिए नहीं, बल्कि प्रतियोगिता और सही दाम तय करने के लिए भी हो.
- FPO को को-ब्रांडिंग की अनुमति दें—बशर्ते मानक + ट्रेसबिलिटी का पालन हो और बोर्ड-स्तर पर जिम्मेदारी तय हो.
- मान्यता प्राप्त बीज लैब और जोखिम-आधारित निरीक्षणों में निवेश करें ताकि कार्रवाई तेज, निष्पक्ष और विज्ञान आधारित हो.
ड्राफ्ट बीज विधेयक, 2025 बड़े विचारों पर सही है: यूनिवर्सल रजिस्ट्रेशन, ट्रेसबिलिटी और असली दंड. पंजाब के किसानों के लिए यह तभी पूरी तरह काम करेगा जब इसमें संघीय ढांचा और किसान-केंद्रित बारीकियां भी सही तरीके से शामिल हों. अगर ऊपर दिए सुझावों को शामिल किया जाए, तो भारत आखिरकार वही बोएगा जिसकी पंजाब लंबे समय से मांग करता रहा है—एक किसान-हितैषी, संघीय सोच वाला बीज कानून, जो बुरे लोगों को रोकता है और अच्छे लोगों को प्रोत्साहित करता है.
(केबीएस सिद्धू पंजाब के पूर्व IAS अधिकारी हैं और स्पेशल चीफ सेक्रेटरी के पद से रिटायर हुए हैं. उनका एक्स हैंडल @kbssidhu1961 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
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