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Friday, 14 November, 2025
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महागठबंधन के साथ-साथ लेफ्ट भी पिछड़ रहा, बिहार में सिर्फ छह सीटों पर बढ़त

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में, CPI(ML)-L ने 19 में से 12 सीटें जीती थीं और CPI व CPI(M) ने दो-दो सीटें जीती थीं.

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नई दिल्ली: 2020 विधानसभा चुनाव में मिली बढ़त खोते हुए, इस बार बिहार में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी)-लिबरेशन सिर्फ 20 में से 4 सीटों पर ही आगे चल रही है.

शुक्रवार दोपहर 1 बजे तक चुनाव आयोग की गिनती के अनुसार, CPI(ML)-L घोसी, करकट, पालीगंज और फुलवारी सीटों पर आगे थी.

चुनाव आयोग के आंकड़ों में यह भी दिखा कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) [CPI(M)]—दोनों ही सिर्फ एक-एक सीट पर आगे चल रहे थे.

शुक्रवार दोपहर तक आए रुझान लेफ्ट के लिए झटका हैं. 2020 के बिहार चुनाव में महागठबंधन के तहत लड़ते हुए लेफ्ट पार्टियों ने 29 में से 16 सीटें जीती थीं.

CPI(ML)-L ने उस समय 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 12 सीटें जीत ली थीं—63 प्रतिशत स्ट्राइक रेट के साथ. CPI और CPI(M) ने क्रमशः छह और चार सीटों पर चुनाव लड़ा था और दोनों ने दो-दो सीटें जीती थीं.

CPI(ML)-L के तब के शानदार प्रदर्शन के बावजूद, इस बार सीट-बंटवारे में पार्टी को सिर्फ एक अतिरिक्त सीट ही मिली. महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस बार गठबंधन में नए साथी शामिल हुए—विशेष रूप से मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी और आई.पी. गुप्ता की इंडियन इन्क्लूसिव पार्टी.

2020 के नतीजों को लेकर विश्लेषकों की अलग-अलग राय थी. कुछ ने कहा कि लेफ्ट की सफलता सिर्फ RJD की चुनावी मशीनरी के सहारे थी, जबकि कुछ का मानना था कि इन वैचारिक पार्टियों के जमीनी काम का फल उन्हें मिला.

2020 का चुनाव पहली बार था जब CPI(ML)-L ने RJD-नेतृत्व वाले विपक्ष के साथ गठबंधन किया—एक ऐसी पार्टी के लिए यह बड़ा बदलाव था जिसे हमेशा सबसे ज्यादा वैचारिक कहा जाता है.

लेकिन इस बार के रुझान बताते हैं कि पांच साल पहले लेफ्ट का प्रदर्शन काफी हद तक पूरे गठबंधन के अच्छे प्रदर्शन पर निर्भर था.

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, RJD इस बार 143 में से सिर्फ 26 सीटों पर आगे है, और कांग्रेस 61 में से सिर्फ 4 सीटों पर.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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