नई दिल्ली: मोहम्मद चांद और नजमा खातून को अपने भाई मोहम्मद जुम्मन की बेचैनी से तलाश करते हुए अब 12 घंटे से ज्यादा बीत चुके हैं. उनकी चिंता जायज़ है: जु्म्मन की आखिरी लोकेशन वही जगह है जहां लाल किले के पास कार ब्लास्ट हुआ, जिसमें कम से कम 12 लोग मारे गए.
रात को जब चांद को विस्फोट की खबर मिली, तो उन्होंने अपने 39 साल के भाई को फोन किया, जो उस इलाके में बैटरी रिक्शा चलाता है, ताकि पता चले कि वह ठीक है या नहीं, लेकिन जु्म्मन का फोन बंद था.
चांद ने दिप्रिंट से कहा, “मैंने रिक्शा मालिक को फोन किया, उन्होंने रिक्शा की जीपीएस लोकेशन चेक की. मालिक ने बताया कि रिक्शा ठीक उसी जगह पर ट्रेस हुआ है जहां धमाका हुआ.”
ब्लास्ट पीड़ितों की सूची में आखिरी नाम है “unknown body parts” — यानी ऐसे शरीर के हिस्से जो पहचानने लायक नहीं बचे. भाई-बहन को डर है कि ये उनके बड़े भाई के हो सकते हैं.

उनकी तकलीफ और दर्द को और बढ़ा रही है यहां की अफरातफरी और लोगों की बेरुखी — चाहे बेपरवाह पुलिसवाले हों या हर बात पर सवाल करने वाले मीडिया वाले.
अस्पताल के बाहर गुस्से में चांद ने कहा, “मैं बस यही मांग रहा हूं कि कोई मुझे गंभीरता से सुने, क्या यह बहुत ज्यादा है?”
लंबी तलाश
रिक्शा मालिक से बात करने के बाद, चांद भागते हुए लाल किले की ओर पहुंचे, लेकिन पाया कि शहर के सबसे व्यस्त बाज़ार में सन्नाटा पसरा है.
उन्होंने कहा कि लाल किले की ओर चलना भी डरावना लग रहा था, क्योंकि अब वह पूरा इलाका पुलिस से घिरा हुआ था, जैसे कोई किला.
अचानक, एक ऐसी जगह में, जिसे वह अपनी उंगलियों की तरह जानते हैं, उनकी आवाजाही रोक दी गई. उन्होंने बताया कि वे एक ऊंचे खंभे से कूदकर उस जगह के पास जाने की कोशिश कर रहे थे जहां ब्लास्ट हुआ, लेकिन पूरा इलाका छावनी बना हुआ था.
चांद ने सोमवार रात कहा, “उन्होंने कहा कि सभी लोग, चाहे ज़िंदा हों या मर चुके हों, उन्हें एलएनजेपी अस्पताल भेज दिया गया है और मुझे वहीं जाकर पूछताछ करनी चाहिए. तो मैं यहां आया और अब फिर पुलिस बैरिकेड के पीछे खड़ा हूं और कोई जवाब नहीं.”
एक वक्त ऐसा आया कि उनका गुस्सा फूट पड़ा. उन्होंने एलएनजेपी अस्पताल के गेट नंबर 4 को जोर से पीटा और अंदर जाने की मांग की.
वे गार्ड्स पर चिल्लाए, “ये मुझे अंदर जाने नहीं दे रहे कि मैं अपने भाई को ढूंढ सकूं. यह ठीक नहीं है. मुझे अंदर जाने दो, जाने दो!”
गेट के बाहर परिवारों की भीड़ अपने रिश्तेदारों के बारे में जानकारी पाने को बेताब थी. किसी का गुस्सा फूट रहा था, कोई लड़ने को तैयार था और कुछ लोग नशे में भी थे.
एक परिवार के किसी सदस्य ने चिल्लाकर कहा, “बस बता दो कि वे ठीक हैं या नहीं. अगर मर गए हैं, तो वह भी बता दो. हमें अपने लोगों को देखने का हक है.”
धीरे-धीरे, गार्ड्स ने कुछ लोगों को अंदर जाने दिया, जिन्हें इमरजेंसी वॉर्ड की तरफ जाने की इजाज़त मिली.
ब्लास्ट में मारे गए अमर कटारिया के पिता रोते हुए बाहर निकले, “वह हमें छोड़कर चला गया. अब हमारे बीच नहीं है. वो हमें छोड़कर क्यों चला गया!”
चांद चिंता में बार-बार अपने नाखून चबा रहे थे. जब वह गेट के पास गए, तो ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों ने उनसे बहुत बदतमीज़ी की और उन्हें भगा दिया.
एक घंटे तक वहां खड़े रहने और लगातार अंदर जाने की गुहार लगाने के बाद, पत्रकारों ने प्रशासन से बात की और तब जाकर चांद को अंदर जाने की इजाज़त मिली, लेकिन चांद ने अपनी बहन को भेजा.
नजमा दो घंटे तक एक-एक शव देखती रहीं, लेकिन उनका भाई कहीं नहीं था. फिर उन्हें कैज़ुअल्टी ले जाया गया, लेकिन वह घायल मरीजों में भी नहीं था.

अस्पताल के कर्मचारियों ने उनसे घर जाने को कहा और भरोसा दिलाया कि कोई अपडेट होगी तो फोन किया जाएगा.
लंबी रात अब लंबी सुबह में बदल गई. भाई-बहन लाल किले के पास अपने भाई का रिक्शा ढूंढने गए. उन्होंने पास के कूड़े के ढेर तक में सुराग तलाशा. कुछ भी नहीं मिला.
फिर वे मौलाना आज़ाद कॉलेज की मोर्चरी की ओर गए, लेकिन उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया.
नजमा ने कहा, “हम बहुत परेशान हैं. उन्होंने हमें अंदर जाकर शव देखने नहीं दिया. हमें वापस भेज दिया और मेरा भाई पूरी रात फोन नहीं उठा रहा. हमें जवाब क्यों नहीं मिल रहा?”
उन्होंने कहा, “हम गरीब हैं, इसलिए कोई हमारी बात नहीं सुन रहा.”
थके हुए भाई-बहन आखिरकार घर लौट गए…और उनकी घर लौटने की सवारी थी…एक बैटरी रिक्शा.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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