नई दिल्ली: गुरुवार शाम जंतर मंतर पर मुश्किल से 20 लोग जुटे, दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत के कई हिस्सों में फैल चुकी खराब हवा की गुणवत्ता के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए, जो लोगों का दम घोंट रही है.
दिल्ली और एनसीआर में वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गई थी, गुरुवार तड़के दिल्ली का एक्यूआई 600 तक पहुंच गया.
साइंटिस्ट्स फॉर सोसाइटी, कैंपेन फॉर राइट टू पब्लिक हेल्थ और दिशा स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन सहित कई युवा संगठनों की ओर से आयोजित इस प्रदर्शन में, लोगों ने तख्तियां पकड़ रखी थीं जिन पर लिखा था, “अगर हवा मुफ्त है, तो सांस लेना विशेषाधिकार क्यों है” और “पूंजीवाद का अंत करो, पर्यावरण बचाओ”.
“2023 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ दिल्ली में प्रदूषण से होने वाली मौतें 17,188 तक पहुंच जाएंगी,” कैंपेन फॉर राइट टू पब्लिक हेल्थ से प्रियम्वदा ने मीडिया पेशेवरों के एक समूह से कहा. “ब्लड प्रेशर और शुगर जैसी दूसरी बीमारियों से मरने वालों की संख्या भी इतनी नहीं है.”

प्रदर्शनकारियों का दावा था कि दिल्ली पुलिस ने 10 से 15 दिन का नोटिस मांगा और प्रदर्शन की अनुमति देने से इनकार कर दिया. “कब से कानून हो गया है कि 15 दिन का नोटिस देना पड़े,” एक प्रदर्शनकारी ने कहा.
पीछे से “एक्यूआई 400 पार, अब कहाँ है मोदी सरकार” जैसे नारे सुनाई दे रहे थे. प्रदर्शनकारी मीडिया से फैक्ट्रियों द्वारा पर्यावरण मानकों के उल्लंघन से लेकर दिल्ली सरकार द्वारा वायु गुणवत्ता के डाटा में कथित हेरफेर तक की बातें कर रहे थे.
“मौजूदा हालात [खराब हवा की गुणवत्ता] को छुपाने के लिए, हमारी मुख्यमंत्री कह रही हैं कि सब ठीक है और अगर आप पिछले साल से तुलना करें, तो ज्यादा बदलाव नहीं हुआ,” प्रियम्वदा ने कहा. “लेकिन उसी समय, वह 5.5 लाख रुपये के एयर प्यूरीफायर खरीद रही हैं.”
जिंदगी और मौत का सवाल
विभिन्न संगठनों के सदस्य जब मीडिया के सामने भाषण दे रहे थे, तो प्रदर्शनकारियों का एक समूह रंग-बिरंगी चाक से सड़क पर अपने नारे भी लिख रहा था. लेकिन आयोजक समूह के अलावा, ज्यादा दिल्लीवासी प्रदर्शन में शामिल नहीं हुए.
“हम सिर्फ इसी प्रदर्शन पर नहीं रुकने वाले,” साइंटिस्ट्स फॉर सोसाइटी के प्रेस अधिकारी सूरज ने कहा, जो पीएचडी स्कॉलर्स, शोधकर्ताओं और कई कॉलेजों के छात्रों का मंच है. “हम शहर भर में और यहां तक कि अलग-अलग फैक्टरी साइट्स पर भी ऐसे और प्रदर्शन आयोजित करेंगे.”

दिशा स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन—जो देशभर के कॉलेजों के छात्रों का एक स्वतंत्र संगठन है—के सदस्य भी प्रदर्शन में मौजूद थे. संगठन के एक सदस्य, केशव ने बताया कि यह संगठन कैंपस के भीतर और बाहर, दोनों जगह छात्रों की समस्याओं को उठाता है.
“अगर छात्र ही जिंदा नहीं रहेंगे, तो उनकी मांगें कैसे पूरी होंगी,” उन्होंने कहा, यह जोड़ते हुए कि अब बात जीवन-मृत्यु पर आ गई है. उन्होंने ग्रेटा थनबर्ग जैसी युवा जलवायु कार्यकर्ताओं का भी जिक्र किया, जिन्होंने वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों पर आवाज उठाई. “हमारी पूंजीवादी व्यवस्था सिर्फ मुनाफे की परवाह करती है, और इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है.”
पूंजीवाद पूरे प्रदर्शन के केंद्र में था. कुछ प्रदर्शनकारी बारी-बारी से मीडिया से बात कर रहे थे, जबकि अन्य लोग सड़कों पर बहुरंगी चाक से “स्मैश कैपिटलिज़्म, सेव एनवायरनमेंट” लिख रहे थे.
एक के बाद एक प्रदर्शनकारियों ने अनियंत्रित विकास, प्राकृतिक संसाधनों के बेपरवाह दोहन और पूंजीवाद से बढ़ने वाली उद्योगपतियों की लालच पर बात की.
जब मीडिया के एक सदस्य ने प्रदूषण से निपटने के मौजूदा प्रयासों, जैसे क्लाउड सीडिंग, पर सवाल किया, तो एक प्रदर्शनकारी ने सबसे पहले पिछली सरकारों—जिसमें अरविंद केजरीवाल का दिल्ली मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यकाल भी शामिल था—की नाकाम कोशिशों की आलोचना की.
“क्लाउड सीडिंग सफल होने के लिए आसमान में पर्याप्त बादल होने चाहिए,” उसने कहा, यह जोड़ते हुए कि सर्दियों में आसमान में इतने बादल नहीं होते कि कण उनसे चिपक सकें. “उन्हें प्रदूषण के स्रोत को रोकना चाहिए. अगर वे आज जागकर ऐसे प्रयास करेंगे, तो कुछ भी काम नहीं करेगा.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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