पटना: बारिश के कारण भीगी गलियों में जब एक सफेद एसयूवी कार पश्चिमी दीदारगंज में रुकती है, तो कोई फुसफुसाता है — “आईआईटी से पढ़े हैं ये” — आवाज़ में जिज्ञासा और सम्मान झलकता है.
कुछ महिलाएं बातचीत रोककर देखने लगती हैं. कांग्रेस उम्मीदवार शशांत शेखर, पटना साहिब विधानसभा क्षेत्र से, नुक्कड़ सभा में बोलने पहुंचे हैं. बारिश की वजह से कुछ कार्यक्रम रद्द करने पड़े, लेकिन वे जितने ज्यादा लोगों तक पहुंच सकें, कोशिश कर रहे हैं.
उनकी पढ़ाई-लिखाई और 1.25 करोड़ रुपये की नौकरी ठुकराने की कहानी अब उनके भाषण का हिस्सा बन चुकी है.
शशांत ने कहा, “जब मैंने आईआईटी किया, तो पहली नौकरी 50,000 रुपये की मिली. आईआईएम के बाद 2017 में 1.25 करोड़ रुपये का ऑफर आया. यही पढ़ाई की ताकत है और यही ताकत आपसे यह सरकार छीन रही है.” वे लोगों से अपील करते हैं कि “इस बार भाजपा को गलती से भी वोट न दें.”
पटना साहिब सीट 2010 से भाजपा के पास है और 6 नवंबर को यहां मतदान होना है.
34 साल के शशांत ने आईआईटी दिल्ली से सिविल इंजीनियरिंग (2014) और आईआईएम कोलकाता से 2017 में ग्रेजुएशन किया है. उनका चुनाव अभियान मुख्य रूप से शिक्षा और विकास पर केंद्रित है.
नुक्कड़ सभा में उन्हें सुनने आई रोहित कुमार ने कहा, “इतनी बड़ी नौकरियां छोड़कर राजनीति में आए हैं. मौका तो बनता है.”
शशांत ने अपना करियर बेंगलुरु से शुरू किया, फिर सैमसंग के इनोवेशन लैब्स में काम किया. अब वे युवाओं के लिए शिक्षा और रोज़गार के मौके बढ़ाने पर फोकस कर रहे हैं.
उन्होंने बाद में आई-पीएसी और इन्क्लूसिव माइंड्स जैसी राजनीतिक परामर्श कंपनियों में काम किया और फिर राजनीति में कदम रखा — इस सोच के साथ कि युवाओं को राजनीति में सक्रिय होना चाहिए.
वे जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर का सम्मान करते हैं और उन्हें “शानदार राजनीतिक सलाहकार” बताते हैं, लेकिन उन्होंने कहा, “जब वे सत्ता में थे, तब उन्होंने बिहार के लिए वह बदलाव नहीं लाया जिसकी बात वे अब करते हैं.”
उन्होंने कहा, “मैं उनकी बातों से सहमत हूं कि बिहार में बदलाव ज़रूरी है, लेकिन जब वे जेडीयू में नंबर दो थे और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे, तब भी वो बदलाव लाया जा सकता था.”
लक्ष्य और वादे
अपनी सोच बताते हुए शशांत कहते हैं कि अगर वे जीतते हैं तो: 1,000 छात्रों को स्कॉलरशिप देंगे, आईआईटी/आईआईएम/मेडिकल कोचिंग की सुविधा शुरू करेंगे और अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल खोलेंगे.
वे डोर-टू-डोर कैंपेन के ज़रिए लगातार मतदाताओं तक पहुंच बना रहे हैं.
कांग्रेस उम्मीदवार का दावा है कि वे सीट जीतेंगे क्योंकि वर्तमान विधायक ने कई कार्यकालों के बावजूद विकास नहीं किया.

इस बार पटना साहिब में दोनों प्रमुख दलों बीजेपी और कांग्रेस ने नए और युवा चेहरे उतारे हैं.
बीजेपी ने सात बार के विधायक नंद किशोर यादव की जगह 45 साल के अधिवक्ता रत्नेश कुशवाहा को टिकट दिया है, ताकि एंटी-इंकम्बेंसी (विरोधी लहर) से बचा जा सके.
यह सीट बीजेपी का पारंपरिक गढ़ मानी जाती है और पार्टी को उम्मीद है कि नए चेहरे से थकान दूर होगी.
दूसरी तरफ, कांग्रेस ने अपने युवा और शिक्षित उम्मीदवार शशांत शेखर के ज़रिए युवाओं और नौकरी चाहने वालों को आकर्षित करने की कोशिश की है.
ग्रेजुएट होने के बावजूद बेरोज़गार बैठे आशीष यादव ने कहा, “युवाओं को चाहिए अच्छी शिक्षा और नौकरी और दोनों यहां नहीं हैं. हर चुनाव में वादे होते हैं, फिर भूल जाते हैं. अबकी बार बदलाव चाहिए.”
महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई-एमएल) ने अपने अभियान में रोज़गार और युवाओं के मुद्दे को केंद्र में रखा है और एनडीए पर आरोप लगाया है कि उसने बिहार के युवाओं के लिए कुछ नहीं किया.
हालांकि, जातीय समीकरण अब भी अहम हैं. बीजेपी ने यादव की जगह कुशवाहा उम्मीदवार उतारा है. शशांत खुद यादव समुदाय से हैं और उन्हें विश्वास है कि इस बार उन्हें समुदाय का साथ मिलेगा.

दीदारगंज की सभा में आईं 45 साल की आशा यादव ने कहा, “बिहार में वोट जाति पर ही पड़ता है. ये हमारे समाज के हैं, इन्हें ही वोट देंगे. भाई हमारे बच्चों को पढ़ाएंगे खुद पढ़े-लिखे हैं. अब हमारे यहां भी विकास आएगा.”
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, पटना साहिब में वैश्य समुदाय का दबदबा है.
अनुसूचित जाति मतदाता करीब 12%, अन्य पिछड़ा वर्ग (यादव, कुर्मी, कुशवाहा) 54%, आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग 11%, मुस्लिम 13% और ऊंची जातियां 8% हैं.
वैश्य परंपरागत रूप से बीजेपी के साथ रहते हैं, जबकि कांग्रेस को भरोसा है कि उसे यादव और मुस्लिम वोट मिलेंगे. 2020 में नंद किशोर यादव ने कांग्रेस के प्रवीण सिंह कुशवाहा को 18,300 वोटों से हराया था. इस बार प्रवीण को भागलपुर की कहलगांव सीट से टिकट मिला है.
भाजपा का मानना है कि यादव की जगह कुशवाहा को लाने से एंटी-इंकम्बेंसी कम होगी और अन्य जातियों का समर्थन भी मिलेगा. पार्टी को भरोसा है कि व्यापारी वर्ग और महिला मतदाता भी उसके साथ आएंगे.
पटना साहिब, जो पहले पटना ईस्ट कहलाता था, 2008 में परिसीमन के बाद बना शहरी विधानसभा क्षेत्र है. इसका पहला चुनाव 2010 में हुआ था.
बीजेपी की रणनीति
पटना साहिब के निवासी रोहतास सिंह ने कहा, “हमारा वोट मोदी जी के लिए है. नंद किशोर यादव जी बहुत समय से विधायक थे, अब एक नया चेहरा आया है. मोदी जी ने बिहार को बदला है और आगे भी बहुत बदलाव आएगा.”
बीजेपी ने अपने उम्मीदवार रत्नेश कुशवाहा के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को पटना में रोड शो किया और लोगों से एनडीए को वोट देने की अपील की. कांग्रेस उम्मीदवार शशांत शेखर भी इसे अपनी सभाओं में मुद्दा बना रहे हैं.
शेखर ने सभा में कहा, “देखिए, भाजपा इतनी डर गई है कि खुद प्रधानमंत्री को इस सीट के लिए मैदान में उतरना पड़ा.”
बीजेपी का नंद किशोर यादव को बदलकर नया चेहरा लाना उसकी ‘जनरेशन चेंज’ की रणनीति का हिस्सा है. 14 अक्टूबर को विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव ने टिकट न मिलने के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करके “नई पीढ़ी का स्वागत” किया था.
यादव कई विभागों में मंत्री रह चुके हैं और पटना साहिब सीट से सात बार विधायक चुने गए. पार्टी के भीतर कई लोग मानते हैं कि रत्नेश कुशवाहा का चयन यह दिखाता है कि बीजेपी नए और युवा चेहरों को आगे बढ़ा रही है.

पटना की तीन शहरी विधानसभा सीटों में से दो पर बीजेपी ने अपने बुजुर्ग विधायकों की जगह युवा चेहरों को मौका दिया है. जैसे पटना साहिब में सात बार के विधायक नंद किशोर यादव की जगह रत्नेश कुशवाहा को उतारा गया, वैसे ही कुम्हरार से पांच बार के विधायक अरुण कुमार सिन्हा की जगह संजय कुमार गुप्ता को टिकट दिया गया. जबकि बैंकिपुर से मंत्री नितिन नवीन फिर से मैदान में हैं.
बीजेपी का पटना साहिब उम्मीदवार रत्नेश कुशवाहा पेशे से वकील हैं. उन्होंने उस मामले में केंद्र सरकार का पक्ष रखा था, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की दिवंगत मां हीराबेन का एआई-जनित वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. पटना हाई कोर्ट ने उस वीडियो को मानहानिपूर्ण बताया था और कांग्रेस से उसे सभी प्लेटफॉर्म से हटाने को कहा था.

बीजेपी उम्मीदवार कुशवाहा का कहना है कि उन्हें भरोसा है पार्टी जीत दर्ज करेगी. उन्होंने कहा, “पटना साहिब में चुनाव पूरी तरह जाति आधारित नहीं हैं. मुझे विश्वास है कि यादव समुदाय के लोग भी मुझे वोट देंगे.”
उन्होंने आगे कहा कि उनका लक्ष्य पटना साहिब को बिहार की “हेरिटेज और सांस्कृतिक राजधानी” के रूप में विकसित करना है.
हालांकि, पार्टी के कुछ नेताओं को चिंता है कि यादव वोटर नंद किशोर यादव को टिकट न मिलने से नाराज़ हो सकते हैं.
इस पर कुशवाहा ने कहा, “नंद किशोर जी पूरे अभियान का नेतृत्व और समन्वय कर रहे हैं. इसलिए किसी के नाराज़ होने का सवाल ही नहीं है. उन्होंने खुद कहा कि नए चेहरों को मौका दिया जाना चाहिए, इसलिए पार्टी ने मेरा नाम चुना.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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